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मोदी सरकार की अवैध मुस्लिमों पर सख्ती देख संयुक्त राष्ट्र उड़े होश, कहा – इसीलिए तो मोदी से मुस्लमान की…!

नई दिल्ली – मोदी सरकार देश में अवैध रुप से रह रहे मुस्लमानों (रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों) को म्यांमार वापस भेजने कि तैयारी कर रही है। मोदी सरकार के इस फैसले पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि मोदी सरकार के इस फैसले से वो वापस उस देश में जाने को मजबुर हो जाएंगे जहां उनपर बेइतंहा अत्याचार होंगे। United Nations on rohingya Muslims.

रोहिंग्या मुस्लमानों को लेकर चिंतित हुआ संयुक्त राष्ट्र  

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के उपप्रवक्ता फरहान हक ने कहा है, ‘हम शरणार्थियों को लेकर चिंतित हैं। किसी शरणार्थी को ऐसे देश में नहीं भेजा जा सकता, जहां उसपर अत्याचार हो सकता है।’ उन्होंने इस संबंध में मोदी सरकार से बात करने कि भी बात कही है। आपको बता दें कि गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू ने पिछले हफ्ते ही संसद में बताया था कि मोदी सरकार ने राज्य प्राधिकारियों को रोहिंग्या समेत अवैध प्रवासियों को देश से निर्वासित करने का आदेश दिया है।

क्‍या है रोहिंग्या मुसलमानों का पूरा मामला

दरअसल, 1982 में म्यांमार सरकार ने राष्ट्रीयता कानून बनाया था, जिसके तहत रोहिंग्या मुसलमानों की म्यांमार की नागरिकता खत्म कर दी गई थी। इस कानून के लागू होने के बाद से ही म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार से निकालने में लगी हुई है। हालांकि, इस विवाद की शुरुआत लगभग 100 साल पहले हुई थी, लेकिन वर्ष 2012 में म्यांमार के राखिन राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद म्यांमार सरकार इसको लेकर काफी गंभीर हो गई। आपको बता दें कि यह दंगा उत्तरी राखिन में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्ध धर्म के लोगों के बीच हुआ था, जिसमें 50 से ज्यादा मुस्लिम और करीब 30 बौद्ध लोग मारे गए थे।

 रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर क्‍या है विवाद

म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान और बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के बीच विवाद 1948 में तब से चला आ रहा है जब म्यांमार आजाद हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि राखिन राज्य में जिसे अराकान भी कहा जाता है, 16वीं शताब्दी से ही यहां मुसलमानों का वास था। इस दौरान म्यांमार में ब्रिटिश शासन था। 1826 में पहले एंग्लो-बर्मा युद्ध खत्म होने के बाद अराकान पर ब्रिटिश शासन हो गया। ब्रिटश शासन में बांग्लादेश से मजदूरों को अराकान लाया जाने लगा। जिसके कारण म्यांमार के राखिन में बांग्लादेशी नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ने लगी। बांग्लादेश से जाकर राखिन में बसे इन लोगों को ही रोहिंग्या मुसलमान कहा जाता है। रोहिंग्या मुसलमानों की बढ़ती संख्या के कारण म्यांमार सरकार ने 1982 में राष्ट्रीय कानून लागू कर इनकी नागरिकता खत्म कर दी।

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