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दिन में सब्जी का ठेला..रात में की पढ़ाई, सिविल जज की परीक्षा दी, पूरे प्रदेश में आई दूसरी रैंक

हम कुछ न कुछ बनने का सपना जरूर देखते हैं। कुछ लोग सिर्फ हालातों का रोना ही रोते रहते हैं और जीवन में सफलता नहीं हासिल कर पाते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हालातों से लड़ते हैं। मेहनत करते हैं और अपने सपनों को पूरा करने की जिद में लग जाते हैं। फिर तो सफलता हासिल करने के बाद ही दम लेते हैं।

कुछ ऐसा ही सपना एक सब्जी का ठेला लगाने वाले युवक ने भी देखा था। वो जज बनकर लोगों को न्याय दिलाना चाहता था। इसके लिए वो दिन भर सब्जी का ठेला लगाता और रात में पढ़ाई करता था। फिर उसने जज बनने की परीक्षा दी और जब रिजल्ट आया तो उसके खुशी के आंसू छलक पड़े। आइए जानें पूरी खबर क्या है।

मध्य प्रदेश की है खबर

संघर्ष के बाद सफलता की ये कहानी मध्य प्रदेश के सतना जिले से सामने आई है। यहां एक सब्जी का ठेला लगाने वाले ने वो कमाल कर दिखाया, जो अच्छे अच्छे लोग नहीं कर पाते हैं। अमरपाटन में रहने वाले शिवाकांत कुशवाहा एक गरीब परिवार से हैं। उनके पिता का नाम कुंजी लाल था और वो मजदूरी करके परिवार चलाते थे।

पिता की मजदूरी से काम नहीं चलता था तो मां ने भी मजदूरी करना शुरू कर दिया। जैसे तैसे घर का राशन आ पाता था। दिन भर मजदूरी करने के बाद उनके परिजन सब्जी बेचते तब दो बार के राशन का जुगाड़ हो पाता था। इसी बीच परिवार को धक्का तब लगा जब साल 2013 में उनकी मां शकुन बाई का कैंसर से निधन हो गया।

घर की जिम्मेदारी और मां का सपना

शिवाकांत पढ़ाई में अच्छे थे। इसी वजह से उन्होंने पढ़ना जारी रखा। घर की जिम्मेदारी संभालने के लिए वो सब्जी का ठेला लगाने लगे। वहीं मां का सपना था कि उनका बेटा जज बने। इस वजह से उन्होंने रीवा के ठाकुर रणमत सिंह कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई की। दिन भर वो ठेले पर सब्जी बेचते और रात में पढ़ाई करने बैठ जाते थे।

उनके दो भाई और एक बहन भी है। पिता के साथ उन्होंने भी जिम्मेदारी संभाल ली थी। बीच-बीच में वो कोर्ट में प्रैक्टिस के लिए भी जाया करते थे। विपरीत हालात में भी उन्होंने हार नहीं मानी। इसी दौरान उनकी शादी हो गई। उनकी पत्नी निजी विद्यालय में शिक्षिका थीं। उन्होंने भी पति को सपोर्ट करना शुरू कर दिया।

दी जज की परीक्षा, पूरे प्रदेश में आई ये रैंक

मां का सपना पूरा करने के लिए शिवाकांत ने जज बनने की ठान ली थी। उन्होंने सिविल जज की परीक्षा देनी शुरू की। वो परीक्षा की तैयारी के साथ ही सब्जी भी बेचा करते थे। उन्होंने पहली बार जज का एग्जाम दिया तो असफल हो गए। इसके बाद असफलता ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। एक के बाद एक चार बार उनको असफलता मिली।

इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उनकी पत्नी ने बताया कि वो 24 में से 18 घंटे पढ़ाई करने लगे। फिर पांचवी बार वो सिविल जज के एग्जाम में बैठे। इस बार जब रिजल्ट आया तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। ओबीसी वर्ग में पूरे मध्य प्रदेश में उन्होंने दूसरा स्थान हासिल किया था। उनकी मां का सपना पूरा हो गया और वो जज बन गए।

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