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चार कंधों पर सवार होकर आया दूल्हा, गर्व से फूल गया पिता का सीना, दुल्हन की तरह सजा मुक्तिधाम

बिलासपुर जिले के सेऊ गांव में एक बेहद भावुक कर देने वाला नजारा दिखा। यहां शहीद जवान अंकेश भारद्वाज को पिता बाँचा राम ने दूल्हे की तरह घर से अंतिम विदाई दी। इस मौके पर मुक्तिधाम को दुल्हन की तरह सजाया गया। इस मुक्तिधाम का हाल ही में नवनिर्माण हुआ था। ऐसे में इसमें पहली बार शहीद अंकेश भारद्वाज का अंतिम संस्कार किया गया। शहीद के छोटे भाई ने इस दौरान मुखाग्नि दी।

बैंडबाजों के साथ निकली शहीद की शव यात्रा

दरअसल अरूणाचल के केमांग में हिमस्खलन की चपेट में आकर जवान अंकेश भारद्वाज शहीद हो गए थे। पिता बेटे के शव का इंतजार पाँच दिनों से कर रहे थे। शनिवार को बेटे का शव न आने पर उनका गुस्सा फूट पड़ा था। फिर रविवार सुबह 22 वर्षीय शहीद अंकेश का पार्थिव शरीर भोटा स्थित विश्रामगृह आया था। पिता ने इच्छा जताई थी कि वे बेटे का स्वागत बैंडबाजों से करना चाहते हैं। ऐसे में शव को भोटा से सेऊ गांव से भव्य तरीके से लाया गया।

पिता ने पहना कोट, पेंट, टाई

इस शव यात्रा में अंकेश को तिरंगे में लिपट कर लाया गया। वहीं इस दौरान युवाओं ने बाइक रैली और 300 मीटर तिरंगा यात्रा निकाली। अंकेश के घर को इस दौरान शादी समारोह की तरह सजाया गया। पिता बांचा राम ने इस दौरान कोट, पेंट, टाई और सिर पर टोपी लगाई। शहीद अंकेश को नमन करने रैली और उनके निवास स्थल पर हजारों की संख्या में लोग आए। शहीद के शव को पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ मुक्तिधाम तक ले जाया गया।

बेटे की शहादत पर किया गर्व

इस दौरान पिता ने बेटे की शहादत पर गर्व महसूस किया। बोला “मेरा बेटा शेर की तरह आया था और शेर की तरह चला गया।” वहीं अंकेश के छोटे भाई ने बड़े भाई से प्रेरित होकर सेना में जाने की इच्छा प्रकट की। दूल्हा बने अंकेश की अंतिम विदाई देखकर हर किसी ने उन्हें सेल्यूट किया। यह नजारा देख वहाँ मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो गई।

दुल्हन की तरह सजा मुक्तिधाम

शायद यह पहली बार था जब जब ग्रामीणों ने किसी मुक्तिधाम को दुल्हन की तरह सजाया था। वहाँ का नजारा देख ऐसा लग रहा था मानो किसी की बारात आ रही है। गाँव में पटाखों की लड़ियाँ भी बिछाई गई थी। लगातार बैंडबाजे भी बजते रहे। यह पूरी प्लानिंग शहीद के पिता की ही थी। वे चाहते थे कि गाँव में शादी की तरह घर और आसपास के इलाकों को सजाय जाए। वह अपने बेटे को एक शानदार विदाई देना चाहते थे। उनका कहना था कि वह इसका हकदार है। उन्हें बेटे की शहादत पर नाज है।

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