अध्यात्मदिलचस्प

माता-पिता, बेटे-बेटियां पूरा परिवार सांसारिक जीवन त्यागकर लिया संन्यास: देखें तस्वीरें

एक परिवार के सभी 6 सदस्य यानी माता-पिता, 2 बेटे और 2 बेटियां सांसारिक जीवन छोड़कर करने जा रहे हैं दीक्षा ग्रहण

संसार में ज्यादातर लोग ऐसे हैं जो जीवन भर सांसारिक भोग, मोह और पचड़ों में पड़े रहते हैं, बुजुर्ग होने बाद और मृत्यु निश्चित होने की बात जानते हुए भी उनका ये मोह नहीं छूटता, और मरते वक्त भी बड़े कष्ट के साथ इस दुनिया को छोड़ते हैं। लेकिन इसी संसार में चंद ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें सांसारिक भोग और मोह को छोड़ने में ज्यादा देर नहीं लगती। संयम, साधना और आध्यात्म का मार्ग ही उन्हें ज्यादा आनंद प्रदान करता है, और एक तपस्वी का जीवन अपनाने के लिए वो सहर्ष तैयार हो जाते हैं।

ऐसा ही एक मामला छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव से आया है जहां एक परिवार के सभी 6 सदस्य यानी माता-पिता, 2 बेटे और 2 बेटियां सांसारिक जीवन छोड़कर दीक्षा ग्रहण करने जा रहे हैं। क्या है पूरा मामला आपको आगे बताते हैं-

पूरे परिवार की दीक्षा

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में एक पूरा का पूरा परिवार सांसारिक मोह-माया छोड़ रहा है। जैन समाज के डाकलिया परिवार के 6 सदस्य माता-पिता, दो बेटों और दो बेटियों ने संयम के मार्ग पर चलने का फैसला किया है। ये परिवार राजनांदगांव शहर के स्थानीय जैन बगीचे में आयोजित पांच दिवसीय दीक्षा महोत्सव में शामिल हुआ। दीक्षा महोत्सव रविवार से शुरू हुआ है।

जानकारी के मुताबिक, डाकलिया परिवार के भूपेंद्र डाकलिया, उनकी पत्नी सपना डाकलिया, बेटी महिमा डाकलिया, मुक्ता डाकलिया, बेटे देवेंद्र डाकलिया और हर्षित डाकलिया दीक्षा महोत्सव में शामिल हुए। परिवार ने मीडिया से कहा कि पूरा परिवार गुरुवार को दीक्षा ग्रहण करेगा। अब पूरा जीवन सांसारिक मोह माया को त्यागकर बिताना है। गुरुओं से आशीर्वाद लेकर संयम के मार्ग पर चलना है। गौरतलब है कि इस दीक्षा महोत्सव में 5 दिन अलग-अलग रस्में होंगी।

दीक्षा के बाद बनते हैं साधु-साध्वी

जैन धर्म के लोग जब दीक्षा लेते हैं तो इसका अर्थ होता है सभी भौतिक सुख-सुविधाएं त्यागकर एक सन्यासी का जीवन बिताने के लिए खुद को समर्पित कर देना। जैन धर्म में इसे ‘चरित्र’ या ‘महानिभिश्रमण’ भी कहा जाता है। दीक्षा समारोह एक कार्यक्रम होता है जिसमें होने वाले रीति रिवाजों के बाद से दीक्षा लेने वाले लड़के साधु और लड़कियां साध्वी बन जाती हैं। दीक्षा लेने के लिए और उसके बाद सभी साधुओं और साध्वियों को अपना घर, कारोबार, महंगे कपड़े, ऐशो-आराम की जिंदगी छोड़कर पूरी तरह से सन्यासी जीवन में डूब जाना पड़ता है। इस प्रक्रिया का आखिरी चरण पूरा करने के लिए सभी साधुओं और साध्वियों को अपने बाल अपने ही हाथों से नोचकर सिर से अलग करने पड़ते हैं।

जीवन भर पांच व्रत का पालन जरूरी

दीक्षा लेने वाले व्यक्ति को जैन धर्म से जुड़े पांच व्रत का आजीवन कड़ाई से पालन करना होता है। ये 5 व्रत हैं-

  1. अहिंसा: किसी भी जीवित प्राणी को अपने तन, मन या वचन से हानि ना पहुंचाना

2. सत्य: हमेशा सच बोलना और सच का ही साथ देना

3. अस्तेय: किसी दूसरे के धन, संपत्ति या सामान पर बुरी नजर ना डालना और चोरी और लालच से दूर रहना

4. ब्रह्मचर्य: अपनी सभी इन्द्रियों पर काबू करना और किसी के भी साथ संबंध ना बनाना

5. अपरिग्रह: जितनी जरुरत है उतनी ही चीजें अपने पास रखना, जरूरत से ज्यादा संचित ना करना

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