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बैंड बाजे से निकली बंदर की शव यात्रा, मृत्यु भोज में आए 5 हजार लोग, मुंडन भी करवाया

आप सभी इंसानों के अंतिम संस्कार, अस्थी विसर्जन और मृत्यु भोज पर जरूर गए होंगे। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे अनोखे मामले के बारे में बताने जा रहे हैं जहां एक बंदर की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार और मृत्यु भोज किया गया। मानवता की अनूठी मिसाल का यह मामला मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के खिलचीपुर तहसील के गांव डालूपुरा का है। यहां जब एक बंदर की मौत हुई तो पूरे गाँव ने इसका शौक मनाया।

बैंड बाजे से निकली अंतिम यात्रा

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बंदर का अंतिम संस्कार हिंदू मान्यता के अनुसार किया गया। इस दौरान बकायदा बैंड बाजे के साथ बंदर की अंतिम यात्रा निकाली गई। फिर उसका अंतिम संस्कार किया गया। वहीं बंदर के दसवें पर उसकी अस्थियों को उज्जैन जाकर विसर्जित किया गया। इतना ही नहीं एक शख्स ने इस दौरान अपना मुंडन भी कराया। इसके बाद गाँव वापस आकार बंदर के 11वें पर मृत्यु भोज रखा गया।

बंदर के मृत्यु भोज पर आए 5 हजार से अधिक लोग

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गांव के रहने वाले हरिसिंह ने बंदर की मौत के बाद अपना मुंडन करवाया। सोमवार को मृत्युभोज भंडारा भी हुआ। बन्दर के मृत्यु भोज के लिए ग्रामीणों ने आपस में चंदा इकट्ठा किया। डालूपुरा गांव के अलावा आस-पास के ग्रामीणों को भी इस मृत्यु भोज का न्योता दिया गया। गांव के डालूपुरा स्कूल के परिसर में भव्य पांडाल लगाया गया। यहां गाँव में हलवाई से से खाने में पूड़ी, कढ़ी, सेव व नुक्ती बनवाई गई। बंदर के इस मृत्यु भोज भंडारा में जिलेभर से लगभग 5 हजार से ज्यादा लोग आए।

बजरंगबली का रूप था बंदर

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ग्रामीणों का मानना है कि बंदर बजरंगबली का रूप होते हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि मानव सभ्यता के इतिहास के मुताबिक भी बंदर हमारे पूर्वज हैं। ऐसे में जब बंदर की मौत हुई तो ग्रामीणों ने उसकी शव यात्रा निकालने और मृत्यु भोज रखने की बात सोची।

ऐसे हुई बंदर की मौत

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राजगढ़ जिले के खिलचीपुर तहसील के नजदीक स्थित गाँव में एक बंदर ठंड से कांपते हुए आया था। उसे इस हालत में देख गाँववालों ने बंदर को आग के आगे बैठा कर गर्मी देने का प्रयास किया। हालांकि इससे कोई फायदा नहीं हुआ और बंदर की तबियत बिगड़ने लगी। ऐसे में गाँववाले उसे खिलचीपुर डाक्टर के पास ले गए। यहां इलाज करवाने के बाद वे बंदर को वापस अपने साथ गाँव ले आए। लेकिन 29 दिसम्बर की रात को बन्दर की मौत हो गई।

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बन्दर के साथ गाँववालों का लगाव हो गया था। उसकी मौत ने उसे भावुक कर दिया। फिर सभी गाँववालें एकत्रित हुए और धार्मिक रीति-रिवाजों से बंदर का अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया। गाँव में बैंड बाजे के साथ मृत बंदर की शव यात्रा निकाली गई। इसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए। महिलाएं भी इस दौरान बन्दर की अंतिम यात्रा के पीछे भजन गाते हुए चलती दिखाई दी। गाँव के बाहर ही बंदर का अंतिम संस्कार हुआ।

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