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कहानी महिला आईपीएस अधिकारी आशा गोपाल की जिन्होंने श‍िवपुरी में इनामी डकैतों को क‍िया था ढेर

इस लेडी अफसर के तबादले का शहरवासियों ने किया था विरोध, रोने लगे थे लोग

आप सभी ने अभी तक कई कर्तव्यनिष्ठ आईएएस- आईपीएस अधिकारियों के बारे में सुना होगा। जिनके काम करने का सलीका ही उनकी पहचान बन गया। जी हां ऐसी ही एक आईपीएस अधिकारी रही है आशा गोपाल। जिन्हें मध्यप्रदेश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी होने का गौरव प्राप्त है। इतना ही नहीं आशा गोपाल वह नाम है जिसको सुनते ही एक समय गुंडे-मवाली से लेकर डाकू तक कांपते थे। जी हां 1976 में आशा गोपाल ने यूपीएससी क्लियर की थीं। जिसके बाद उन्हें मध्यप्रदेश कैडर मिला था।

ऐसे हुई आशा गोपाल के सफर की शुरूआत…

बता दें कि आशा गोपाल का जन्म 14 सितंबर 1952 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ था। उनके पिता अधिकारी थे, और मां शिक्षाविद्। शुरुआती पढ़ाई के बाद उन्होंने मोतीलाल विज्ञान महाविद्यालय भोपाल से वनस्पति विज्ञान में एमएससी की। इसके बाद उन्हें प्रोफेसर की नौकरी भी मिल गई, लेकिन उनका मन तो यूपीएससी क्लियर करके अधिकारी बनने का था। इसलिए उन्होंने अपना पूरा ध्यान सिविल सेवा पर लगाया और साल 1976 में इसमें वह कामयाब भी हो गईं।

बता दें कि किरण बेदी के बाद आशा दूसरी महिला थीं, जिन्हें स्वतंत्र रूप से एक जिले की कमान मिली थी। इनकी पहली पोस्टिंग ही डकैत प्रभावित इलाके शिवपुरी में हुई। जहां उन्होंने कई ईनामी डकैतों का एनकाउंटर कर दिया था। देश में ये पहली बार था जब ऐसे किसी अभियान का नेतृत्व एक महिला अधिकारी कर रहीं थीं। आशा गोपाल का ये सख्त कदम उन्हें रातों-रात सुर्खियों में ले आया था।

IPS Asha Gopal

गौरतलब हो कि एक मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उस समय में मशहूर डाकू देवी सिंह के गैंग की छुपे होने की जानकारी जब इस महिला अधिकारी को मिली तो लगभग 100 पुलिसकर्मियों के साथ शिवपुरी से 125 किमी पूर्व में राजपुर गांव की ओर वह निकल पड़ीं। जहां डकैतों के छुपे होने की खबर थी। रात के अंधेरे में पुलिस ने उस गन्ने के खेत को घेर लिया, जिसमें देवी सिंह और उसका गिरोह छिपा हुआ था। पुलिस ने सुबह तक इंतजार किया और फिर डकैतों को सरेंडर करने के लिए कहा। लेकिन डकैतों ने सरेंडर करने की बजाय गोलियां चलानी शुरू कर दी। जिस पर पुलिस की ओर से भी फायरिंग की गई और इस एनकाउंटर में डकैत देवी सिंह सहित चार दस्यू की मौत हो गई थी।

आशा गोपाल को अपनी बहादुरी के लिए मिले कई अवॉर्ड…

IPS Asha Gopal

वहीं मालूम हो कि आशा गोपाल की बहादुरी और डकैत प्रभावित क्षेत्र में सेवा के प्रति प्रतिबद्धता के लिए उन्हें 1984 में राष्ट्रपति पुलिस पदक और मेधावी सेवा पदक से सम्मानित किया गया था। इसके बाद उन्होंने 1999 में एक जर्मन पुलिस अधिकारी से शादी की और उनकी पोस्टिंग जहां भी हुई, बदमाश उनके नाम से वहीं कांपने लगते थे। गौरतलब हो कि 1980 के दशक में मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध डकैत प्रभावित क्षेत्रों में कई कठिन पोस्टिंग को उन्होंने सफलतापूर्वक पूरा किया। उन्होंने 24 वर्षों तक मध्य प्रदेश पुलिस को अपनी सेवा दी। जिसके बाद उन्होंने पुलिस महानिरीक्षक के रूप में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लीं।

जब आशा गोपाल का ट्रांसफर रुकवाने के लिए सड़क पर आए लोग…

IPS Asha Gopal

वहीं आईपीएस आशा गोपाल से जुड़ी एक और दिलचस्प कहानी है। जी हां सन 1987 मेें वह जबलपुर की एसपी थीं। उस दौरान क्राइम ब्रांच के प्रभारी रहे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अनिल वैद्य की मानें तो आशा गोपाल बेहद सख्त पुलिस अफसर थीं। उनका ऐसा खौफ था कि बड़े-बड़े गुंडे उनका नाम सुनते ही कांप उठते थे। उन्होंने शहर में गुंडा विरोधी अभियान चलाया और दर्जनों गुंडों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था।

ऐसे में शहर में अपराध और अपराधी दोनों ही कम हो गए। करीब सात माह के कार्यकाल के बाद उनका सागर ट्रांसफर कर दिया गया। ट्रांसफर की सूचना मिलते ही जनता सड़क पर आ गई। लोगों ने लामबंद होकर उनका स्थानांतरण आदेश वापस लेने की मांग की। चेंबर आफ कामर्स जैसे संगठनों ने भी खुलकर जनता की मांग का समर्थन किया और ऐसे में खुद आशा गोपाल आगे आईं और उन्होंने लोगों से कहा कि सरकारी नौकरी में स्थानांतरण एक सामान्य प्रक्रिया है। एसपी की समझाइश पर ही जनता मानी थी।

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