विशेष

पिता की मौत के बाद बेटे ने बनवाई ऐसी मूर्ति की लगता है घर में साथ में ही बैठे हैं

नीचे तस्वीर में बैठे इस शख्स को देखकर आपको यकीन नहीं होगा कि यह कोई जीता जागता व्यक्ति नहीं बल्कि एक मूर्ति है, जिसे सोफे पर बैठाया गया है। ‌पुलिस की वर्दी में बैठे इस शख्स का नाम रावसाहेब शामराव कोरे है। फर्क बस इतना है कि असल में यहां कोई व्यक्ति बैठा ही नहीं है बल्कि यह केवल उनकी सिलिकॉन से बनी मूर्ति है जिसे उनके बेटे ने पिता की याद में बनवाया है। मूर्ति इतनी बारीकी से बनाई गई है की आंखें, बाल और स्कीन यहां तक की आंखों पर मौजूद बोंहे हुबहू असली ही नज़र आती है।

raosaheb-shamarao-courier-silicon-statue-made-in-his-memory-by-his-son-arun-kore

मूर्ति बनवाने वाले रावसाहेब के बेटे अरुण कोहरे ने बताया कि पिता आबकारी विभाग में निरीक्षक थे और पिछले साल ड्यूटी के दौरान कोरोनावायरस होने के बाद उनका निधन हो गया था। तब से ही उन्हें पिता की याद सताए जा रही थी, परिवार भी उन्हें काफी मिस कर रहा था इसी समस्या को सुलझाने का अरुण को एक आईडिया आया और उन्होंने पिता की सिलिकॉन की मूर्ति बनवाने के बारे में सोचा।

तस्वीर में मां बेटा दोनों अपने परिवार के मुखिया को ऐसे देख रहे हैं जैसे वह अभी बोल उठेंगे। यह मूर्ति देखने में जितनी अच्छी लगती है उससे कहीं ज्यादा मेहनत इसे बनाने में लगी है। मूर्ति को बनाने के लिए बेंगलुरु के जाने-माने कलाकार श्रीधर को 5 महीने तक कड़ी मेहनत करना पड़ी तब जाकर यह मूर्ति साकार रूप ले सकी।

raosaheb-shamarao-courier-silicon-statue-made-in-his-memory-by-his-son-arun-kore

अरुण दावा करते हैं कि यह सिलिकॉन की मूर्ति महाराष्ट्र में पहली इस तरह की मूर्ति है। वह बताते हैं कि पिता न केवल आबकारी विभाग में निरीक्षक थे बल्कि समाज में भी वह काफी सक्रिय रहते थे। कोली समाज के लोग उन्हें अपना नेता मानते थे पिता के दयालु और मिलनसार स्वभाव के कारण कि यहां पर लगातार लोग मूर्ति देखने आ रहे हैं।

उन्होंने बताया कि समाज के लोगों को पिता पर इसलिए भी गर्व है कि आबकारी विभाग में पद पर रहते हुए भी उन पर भ्रष्टाचार का एक भी दाग नहीं था। अरुण ने उन्हें पुलिस की वर्दी ही बनाई है ताकि लोग उन्हें इस रूप में याद करें।

raosaheb-shamarao-courier-silicon-statue-made-in-his-memory-by-his-son-arun-kore

मूर्ति की खासियत

मूर्ति की सबसे बड़ी खासियत तो यह है कि यह एक सजीव इंसान की तरह दिखती है जैसा कि इसमें दिख भी रहा है। दूसरा इस मूर्ति के कपड़ों को रोजाना बदला भी जा सकता है। अरुण ने ही बताया की सिलिकॉन की इस मूर्ति की उम्र करीब 30 साल होती है और इसीलिए अब वह इस मूर्ति को देखकर काफी खुश हैं क्योंकि अब उन्हें अपने पिता की कमी महसूस नहीं हो रही है।

Back to top button