अध्यात्म

यहां बारिश के लिए कुंवारी लड़कियों से बिना कपड़े जुटवाते हैं खेत, जाने और क्या-क्या होता है

बारिश का मौसम शुरू हो गया है। की जगहों पर भयंकर बारिश हो रही है तो कहीं सूखा पड़ा हुआ है। बारिश का इंतजार हर किसी को रहता है। खासकर किसानों का जीवन इसी पर निर्भर करता है। ऐसे में देशभर में बारिश करवाने के लिए तरह तरह के टोन टोटके और परंपराओं का सहारा लिया जाता है। इनमें से कुछ परंपराएं तो काफी अजीबोगरीब है। जैसे मेंढक-मेंढकी की शादी करवाना या खेत में कुँवाली लड़कियों से बिना कपड़े खेती करवाना। आज के इस आर्टिकल में हम बारिश के लिए होने वाले अजीब टोटकों और उनसे जुड़ी मान्यताओं के बारे में जानेंगे।

मेंढक-मेंढकी की शादी

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बारिश के लिए मेंढक और मेंढकी की शादी करवाना सबसे फेमस परंपरा है। पहले ये मूल रूप से असम में होती थी, हालांकि अब इसे देश के अन्य हिस्सों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु में भी किया जाता है। लोक प्रथाओं की माने तो मेंढक-मेंढकी की शादी और मैसम का आपस में कनेक्शन होता है। जब भी मानसून आता है तो मेंढक बाहर निकलकर टर्राता है और  मेंढकी को आकर्षित करने की कोशिश करता है। इसलिए मेंढक-मेंढकी की शादी एक सिम्बल (प्रतीक) के रूप में की जाती है। इससे दोनों मिलन के लिए रेडी हो जाते हैं और बारिश आने के चांस बढ़ जाते हैं।

बिना कपड़ों के लड़कियों से खेती करवाना

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आपको जान हैरानी होगी की बारिश होने के लिए एक परंपरा ऐसी भी है जिसमें कुंवारी लड़कियों से नग्न अवस्था में खेत जुतवाए जाते हैं। जब ऐसा होता है तो मर्दों को दूर ही रखा जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि यदि खेत जोत रही महिलाओं को कोई देख लेता है तो उसके परिणाम गंभीर होते हैं। वैसे तो ये परंपरा बहुत पुरानी है लेकन बिहार, UP और तमिलनाडु के कुछ ग्रामीण इलाकों में इसे आज भी किया जाता है। किसानों की मान्यता है की महिलाओं को इस अवस्था में देख बारिश के देवता को शर्म आ जाती है और वे बारिश कर देते हैं।

तुंबा बजाना

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यह परंपरा बस्तर में फेमस है। यहाँ गोंड जनजाति के लोग भीम (पांडव) को अपना लोक देवता मानते हैं। कहा जाता है की भीम जब भी तुंबा बजाते थे, तो बारिश आने लगती थी। आपकी जानकारी के लिए बता दें की तुंबा एक प्रकार का वाद्ययंत्र है।  गोंड में एक समुदाय है जो इसे बजाता है। उन्हें भीमा कहा जाता है। गोंड जनजाति के लोग इन भीमा का बहुत सम्मान करते हैं। जब भी कोई समारोह होता है तो इन्हें विशेष रूप से बुलाया जाता है।

कीचड़ से नहाना

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बस्तर के ही नारायणपुर इलाके में मुड़िया जनजाति के लोग इस परंपरा को निभाते हैं। वे अपने में से किसी शख्स को चुनकर उसे भीम देव का प्रतिनिधि बना देते हैं। इसके बाद उसे कीचड़ और गाय के गोबर से कवर कर दिया जाता है। इस जनजाति के लोगों की मान्यता है कि ऐसा होने पर देवता को सांस लेने में तकलीफ होती है। इसलिए वे राहत के लिए वो बारिश करवाते हैं ताकि कीचड़ धुल जाए।

वैसे आपके क्षेत्र में बारिश के लिए किस प्रकार के टोने टोटके किए जाते हैं हमे कमेन्ट में जरूर बताएं।

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