अध्यात्म

आपको पता है कौन थे इरावन, जिसकी विधवा बन खुद भगवान् श्री कृष्ण ने बहाये थे अपने आसूं

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति के इतिहास वर्ग में आता है. महाभारत को हिन्दुओं के कुछ बड़े ग्रंथों में से एक माना जाता है. इतना ही नहीं महाभारत को जीवन का सार भी कहा जाता है. इसके साथ ही महाभारत को पांचवां वेद माना जाता है. इसे प्रत्येक भारतीयों को पढ़ना चाहिए. महाभारत में वह सब कुछ है, जो किसी के भी सम्पूर्ण जीवन में घटित होता है या होने वाला है. महाभारत में धर्म से लेकर राजनीति तक का ज्ञान बताया गया है. आध्यात्मिक दृष्टी से भी यह ग्रंथ काफी ज्ञान से परिपूर्ण है. इस ग्रन्थ में जीवन के मूल्यों का सार भी मिलता है.

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इस महाभारत में महान योद्धा और अर्जुन पुत्र इरावन का भी जिक्र मिलता है. कथाओं की माने तो इस युद्ध में वह नृशंसता से कौरवों का नाश करते जा रहे थे, मगर धार्मिक ज्ञान में ज्यादा झुके होने के कारण वह कभी भी अविवाहित नहीं मरना चाहते थे, इस युद्ध के दौरान उन्होंने विवाह करने की जिद पकड़ ली. ऐसे में खुद भगवान श्री कृष्ण ने मोहिनी का रूप लेकर इरावन से विवाह किया था. इस युद्ध में आठवें दिन इरावन वीरगति को प्राप्त हुए थे. इस दिन कृष्ण खुद को विधवा मानकर विलाप करते रहे थे.

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आपको बता दें कि इरावन अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र थे. उलूपी का अर्जुन से विवाह वनवास के दौरान हुआ था. वहीं उन्हें इरावन हुआ था. महाभारत कथा के मुताबिक इरावन पांडवों की तरफ से लड़े और कौरव पक्ष के योद्धाओं अवंती राजकुमार विंद, अनुविंद, शकुनि के भाइयों गज, गवाक्ष, ऋषभ, आर्जव, शुक्र, चर्मवान, दुयोधन के साले सुदक्षिण, भूरिश्रवा के चार पुत्रों को उन्होंने मृत्यु के घाट उतारा था. इस युद्ध के आठवे दिन कौरवों की ओर से लड़ रहे राक्षस अम्बलुष ने इरावन को मारा था. कुछ कहानियों में यह भी लिखा गया है कि इरावन पांडवों की विजय के लिए देवी चामुण्डा को खुद की बलि देना चाहता था, लेकिन पांडव तैयार नहीं हुए थे.

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इरावन की इस बात पर श्रीकृष्ण ने भी पांडवों को समझाया था कि, इरावन का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा. देवी चामुण्डा का आशीर्वाद मिलने से विजय अवश्य प्राप्त होगी. इरावन की इच्छा का सम्मान करते हुए पांडव इसे नियति मानकर राजी हो गए. मगर उसने अंत में यह इच्छा रख दी कि वह अविवाहित नहीं मरना चाहता है. मरने से पहले उसे विवाह करना है. उसके विवाह के बाद ही उसे मरना है. ऐसे में पांडवों के समर्थक राजाओं में से कोई भी उनसे अपनी बेटी का विवाह कराने के लिए आगे नहीं आया.

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इसी वजह से स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने मोहिनी रूप धर उससे विवाह किया और पत्नी की तरह अंतिम विदाई भी दी. भारत में यह भी मान्यता है कि हिन्दू धर्म मानने वाले किन्नर इरावन को पूजते हैं.

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इसके साथ ही पौराणिक किवदंतियों के अनुसार एक दिन के लिए उनकी मूर्ति को साक्षात इरावन मानते हुए उससे विवाह भी किया जाता है. वहीं एक दिन विलाप भी किया जाता है. बता दें कि ये रस्म किन्नरों में बेहद ही पवित्र मानी जाती है.

 

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