दिलचस्पविशेष

कभी खेत में चलाता था ऊंट गाड़ी फिर बना आईपीएस (IPS) अफसर, तो वर्दी पहन सबसे पहले किया मां बाप को सैल्यूट

कुछ करने की ललक हो तो कोई भी बाधा नहीं रोक सकती आपके क़दम, गरीब किसान के लड़के की कहानी बयाँ करती है कुछ ऐसा ही ...

शायद ही कोई व्यक्ति हो। जिसने ॐ शांति ॐ (Om Shanti Om) फ़िल्म न देखी हो और जिसने भी यह फिल्म देखी है। उसने यह डायलॉग (Dialogue) जरूर सुना होगा। जिसमें शाहरुख खान कहते हैं कि, “अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो सारी कायनात उसे तुम से मिलाने में लग जाती है।” अब इस डायलॉग को हम जिस भी संदर्भ में देखना चाहे। देख सकते हैं। इसी को कहीं न कहीं लॉ ऑफ अट्रैक्शन (Law of Attraction) कहा जाता है। कहने का अर्थ यह है कि आप जैसा सोचते हैं या करते है। वास्तव में वही सोच हकीकत बनती है। अब आप सभी के मन मे यह ख़्याल आ रहा होगा कि यहाँ ॐ शांति ॐ फ़िल्म के डायलॉग और लॉ ऑफ अट्रैक्शन का ज़िक्र किसलिए कर रहें। तो चलिए सीधा मुद्दे की बात पर आते हैं। कहते हैं कि हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही हमारे साथ होता है।

premsukh delu

जी हां ऐसी ही एक कहानी से आप सभी को रूबरू कराने जा रहें। जिसकी सोच और मेहनत ने आज उसे वह सबकुछ दिया है। जिसकी एक सामान्य आदमी सिर्फ़ कल्पना करके रह जाता है। हम बात कर रहें है एक ग़रीब किसान के बेटे की। जिसने अपनी एकाग्रता और मेहनत के बदौलत बहुत बड़ा मुक़ाम हासिल किया है। यह ग़रीब किसान का बेटा एक समय खेती-किसानी के काम मे लग गया था। इतना ही नहीं ऊंट गाड़ी तक चलाया, लेकिन फ़िर अपनी मेहनत, लगन और सोच के बदौलत छह वर्ष के भीतर 12 सरकारी नौकरी की परीक्षा उत्तीर्ण की। ऐसे में अब समझ आ गया होगा कि शुरुआत में ॐ शांति ॐ फ़िल्म के डायलॉग और लॉ ऑफ अट्रैक्शन का ज़िक्र क्यों किया था।

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वैसे अब आप सभी इस किसान के लड़के का नाम जानने के लिए उत्सुक हो रहें होंगे। तो थोड़ा धैर्य रखिए। उसका नाम वगैरह सभी से आपको परिचित कराएंगे। जी हां हम बात कर रहें हैं आईपीएस (IPS) प्रेमसुख डेलू (Premsukh Delu) की। जो राजस्थान के बीकानेर ज़िले के एक छोटे से गांव रहने वाले है। बता दें कि इनके गांव का नाम ‘रासीसर’ है। परिवार में कुल चार भाई-बहन है। जिनमें ये सबसे छोटे हैं। इनके पिता एक किसान है।

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परिवार का गुजर-बसर खेती से ही चलता है। खेत भी अधिक नही था जिस वज़ह से पैसों की कमी हमेशा बनी रहती थी। जिसके कारण प्रेमसुख पढ़ाई के साथ साथ पिता की किसानी में सहायता भी करते थे। इतना ही नहीं वह खेत मे ऊंट गाड़ी चलाने का काम भी करते थे। आईपीएस प्रेमसुख की शुरुआती पढ़ाई गांव में ही हुई। आर्थिक स्थिति ठीक नही थी तो 10 की पढ़ाई भी सरकारी स्कूल से ही की। जिसके बाद उन्होंने बीकानेर के डूंगर कॉलेज से 12 वीं की परीक्षा पास की। ग्रेजुएशन की पढ़ाई उन्होंने महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय से किया। जहां उन्होंने अपनी मेहनत और लगन की बदौलत इतिहास विषय मे गोल्ड मैडल जीता।

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यह सब एक तरफ़ उनकी मेहनत की बदौलत चल रहा था, लेकिन दिक्कतें उनके जीवन मे कम होने का नाम नही ले रही थी। कभी उनके पास क़िताब-कॉपी खरीदने के लिए पैसे नहीं होते थे तो कभी कुछ। फ़िर भी जैसे तैसे उनके माता-पिता उनकी पढ़ाई में कोई दिक़्क़त नहीं आने देते। कैसे भी करके देर-सवेर उनके लिए पढ़ाई के लिए ज़रूरी सामान का इंतज़ाम करते। इसी को लेकर प्रेमसुख बताते है कि, ” मेरे पिता बहुत मेहनत करते थे। अपनी जरूरतों को दरकिनार कर वह मेरी पढ़ाई की हर छोटी से छोटी ज़रूरत को पूरा करते थे। उनकी मेहनत, त्याग और मेरे प्रति उनका प्यार हमेशा मेरे लिए प्रेरणास्रोत रहा। पिता के हालात और उनकी मेहनत को देखते मैंने सरकारी नौकरी पाने का दृढ़संकल्प लिया।”

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प्रेमसुख बताते हैं कि उनका पहला लक्ष्य सरकारी नौकरी पाना था इसलिए उन्होंने 2010 में पटवारी की परीक्षा बीकानेर से दी। जिसमें वह सफल भी रहे और बीकानेर के एक गांव में पटवारी के पद पर तैनात हुए। इसी साल उन्होंने ग्राम सेवक के रूप में प्रदेश में दूसरा स्थान हासिल किया। इतना ही नहीं 2011 में उन्होंने असिस्टेंट जेलर के साथ-साथ बीएड (B.Ed) की परीक्षा पास कर टीचर की नौकरी भी की।

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टीचर की नौकरी करते हुए कुछ दिन बाद उनका सिलेक्शन तहसीलदार के पद पर हो गया। इस दौरान वह अजमेर में तहसीलदार के पद पर भी रहे। तहसीलदार के पद पर रहते हुए उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी करना शुरू की। प्रेमसुख का कहना है कि नौकरी करते हुए परीक्षा की तैयारी करना बहुत कठिन काम होता है। ऐसे में यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा की तैयारी करना तो और भी मुश्किल हो जाता है।


प्रेमसुख बताते हैं कि जैसे उनके ड्यूटी का समय खत्म होता था। वह तुरंत पढ़ाई में लग जाते थे। इधर उधर की बातों में वह समय नहीं गंवाते थे। इतना ही नहीं समय के अभाव में उन्होंने कोई कोचिंग भी नहीं की। इन सबके बावजूद उन्होंने 2015 में यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की और 170 वीं रैंक देश में लाई। जबकि वह हिंदी माध्यम के छात्रों में तीसरे स्थान पर रहें। कुल-मिलाकर देखें तो प्रेमसुख की कहानी हमें यह बताती है कि अगर कुछ करने का जज़्बा हो तो मुसीबत कितनी भी क्यों न हो, वह छोटी पड़ जाती है। बस दिल में कुछ कर गुजरने का हौसला होना चाहिए।

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