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वैक्सीन के बावजूद डॉ. के के अग्रवाल की मौत की वज़ह आई सामने, डॉ. विमल छाजेड़ ने बताई यह वज़ह..

कोरोना वैक्सीन भी डॉक्टर अग्रवाल को क्यों नहीं बचा पाई, असली वजह इस डॉक्टर ने बताई

देश में कोरोना वैक्सीन को लेकर पहले से ही अलग-अलग प्रकार की भ्रांतियां फ़ैली है। ऐसे में अब पद्मश्री से सम्मानित हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर केके अग्रवाल की कोरोना से मौत ने सबको झकझोर दिया है। लोग इस बात को लेकर खासे परेशान हुए कि आखिर वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी डॉ अग्रवाल की जान क्यों नहीं बच सकी? कई एक्सपर्ट डॉक्टरों ने इसे लेकर राय जाहिर की और कोमोरबिडिटी की आशंका जताई है।

doctor kk agrwal death

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही की “कोमोरबीडीटी” क्या होती है? तो पहले आपको बता दें कि जब व्‍यक्ति एक ही समय पर एक से ज्यादा गंभीर बीमारियों का का शिकार हो। तो उसे “कोमोरबिडिटी” कहा जाता है। लेकिन किसी को ये पक्के तौर पर जानकारी नहीं कि आखिर हजारों मरीजों का इलाज करने वाले और लाखों लोगों को अपनी बातों से प्रभावित करने वाले डॉ अग्रवाल को क्या वाकई कोई बीमारी थी?

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इसी बीच अब देश के एक मशहूर हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ बिमल छाजेड़ ने ये बता दिया है कि डॉ अग्रवाल को बचाया क्यों ना जा सका और उन्हें पहले से क्या बीमारियां थी। डॉ छाजेड़ सोशल मीडिया पर खासे लोकप्रिय हैं। उन्होंने बुधवार को एक वीडियो पोस्ट किया और उसमें बताया कि उन्होंने काफी जांच परख के बाद ये पता लगाया है कि डॉक्टर अग्रवाल दो गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। डॉक्टर छाजेड़ के मुताबिक डॉ अग्रवाल क्रोन्स और पल्मोनरी एम्बोलिज्म नामक बीमारी से पीड़ित थे, जिसकी वज़ह से उनकी मौत हुई। आइए समझते हैं इन दोनों बीमारियों के बारे में…


क्रोन्स बीमारी…

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ये एक ऑटो इम्यून बीमारी है। जिसमें शरीर की इम्यूनिटी ही इंसान की दुश्मन बन जाती है। इस बीमारी में आंतों में सूजन आ जाती है, जो मुंह से लेकर गुदा तक पेट और आंत संबंधी तंत्र के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकती है। इस बीमारी के लक्षणों में पेट में दर्द, दस्त, बुखार और वजन घटना शामिल है। इसमें कुछ ऐसी दवाइयां भी ली जाती हैं जिससे इम्यूनिटी और कम हो जाती हैं।

पल्मोनरी एम्बोलिज्म…

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ये एक हृदय रोग है जिसमें फेफड़ों तक रक्त ले जाने वाली रक्तवाहिका में रक्त का थक्का जम जाता है। इससे फेफड़ों में रक्तसंचार बाधित होता है। आमतौर पर ये खून के थक्के पैरों की नसों से गुजरते हुए ऊपर आकर फेफड़ों की रक्त वाहिकाओं में अटक जाते हैं। ये अपने आप में काफी गंभीर रोग है। जिसमें मरीज की जान जाने की संभावना रहती है।

डॉ छोजेड़ के मुताबिक, इन्हीं दो गंभीर बीमारियों की वजह से डॉ अग्रवाल का निधन हो गया। डॉ अग्रवाल आखिरी वक्त तक ऑक्सीजन लेते हुए भी मरीजों के लिए काम करते रहे, जबकि कोरोना मरीजों को आराम करने की सलाह दी जाती है। दो बीमारियों से जूझते डॉ अग्रवाल की हालत इसलिए और गंभीर हो गई और वैक्सीन भी उन्हें बचा नहीं सकी।

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डॉ छोजेड़ ने जोर देकर कहा कि कोरोना वैक्सीन 90 फीसदी तक आपको मौत से बचाने में सक्षम होती है, इसलिए वैक्सीन लेने के बाद हो रही मौतों को लेकर मन में डर ना पालें। वैक्सीन के दोनों डोज लेने के बाद भी अगर कोरोना हुआ भी तो हल्का असर दिखाकर निकल जाएगा। पर अगर वैक्सीन के दोनों डोज लेने के बावजूद किसी की मौत होती है, उसकी कोई ना कोई वजह जरूर होती है जिसमें कोमोरबिडिटी एक बड़ा कारण है।

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कौन है डॉ केके अग्रवाल…

मध्यप्रदेश में जन्मे डाॅ केके अग्रवाल ने 1979 में नागपुर विश्वविद्यालय से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। जिसके बाद 1983 में एमडी करने के बाद डाॅ अग्रवाल ने 2017 तक नई दिल्ली के मूलचंद मेडिसिटी में बतौर सीनियर कंसल्टेंट काम किया। इस दौरान उन्होंने मेडिकल साइंसेज पर कई सारी किताबें लिखीं हैं। साल 2014 में डॉ अग्रवाल को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष रूप में चुना गया।

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मेडिकल के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए साल 2010 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। इसके साथ ही वर्ष 2005 में मेडिकल कैटेगरी के सर्वोच्च पुरस्कार डॉ बीसी रॉय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें विश्व हिंदी सम्मान, राष्ट्रीय विज्ञान संचार पुरस्कार, फिक्की हेल्थ केयर पर्सनैलिटी ऑफ द ईयर अवार्ड, डॉ डीएस मुंगेकर राष्ट्रीय आईएमए पुरस्कार और राजीव गांधी उत्कृष्टता पुरस्कार भी मिल चुके हैं।

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