अध्यात्म

महिलाओं के लिए इस वजह से बेहद ही खास है वट सावित्री व्रत, पढ़ें इससे जुड़ी कथा

10 जून, गुरूवार को वट सावित्री का व्रत है। हर साल ये व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को आता है। इस दिन व्रत रखना गुणकारी साबित होता है। मान्यता है कि जो महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखती हैं। उनके पति की आयु लंबी होती है और घर में सुख शांति बनीं रहती है। इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती है। हालांकि उत्तर भारत में ये व्रत अमावस्या को, तो दक्षिण भारत में ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है।

व्रत का महत्व

vat savitri

ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष में त्रिदेव का वास होता है। वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु और डालियों में शंकर का निवास होता है। जबकि इस पेड़ की लटकी हुई शाखाओं को देवी सावित्री का रूप माना जाता है। इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं।

इस तरह से करें पूजा

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इस दिन वट पेड़ की पूजा की जाती है। साथ में ही यमराज का भी पूजन किया जाता है। पूजा करते हुए लाल रंग के वस्त्र, सिन्दूर, पुष्प, अक्षत, रोली, मोली,भीगे चने, फल और मिठाई एक थाली में रखी जाती है। फिर कच्चे दूध और जल को वृक्ष की जड़ों पर अर्पित किया जाता है। उसके बाद थाली पर रखी चीजें पेड़ पर अर्पित की जाती है। उसके बाद सत्यवान-सावित्री की कथा पढ़ी जाती है।

पूजा में भीगे हुए चने अर्पण करने का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि यमराज ने चने के रूप में ही सत्यवान के प्राण सावित्री को दिए थे। सावित्री चने को लेकर सत्यवान के शव के पास आईं और चने को सत्यवान के मुख में रख दिया। इससे सत्यवान पुनः जीवित हो गए।

व्रत से जुड़ी कथा

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भविष्य पुराण के अनुसार देवी सावित्री राजा अश्वपति की बेटी थी। सावित्री की शादी सत्यवान से हुई थी। लेकिन नारदजी ने सावित्री से भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि- ‘सत्यवान अल्पायु हैं’। ये बात सुनते ही सावित्री दुखी हो गई। लेकिन सावित्री ने हिम्मत नहीं हारी। वहीं एक दिन जब सावित्री और सत्यवान लकड़ी लेने जंगल गए। तो लकड़ियां काटते हुए सत्यवान को अचानक से कुछ होने लगा। जिसके बाद सत्यवान ने सावित्री से कहा कि ‘प्रिये! मेरे सिर में बहुत व्यथा। इसलिए थोड़ी देर विश्राम करना चाहता हूँ। सावित्री अपने पति के सिर को अपनी गोद में लेकर बैठ गई। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए गए।

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सावित्री ने उन्हें पहचाना और कहा-”आप मेरे पति के प्राण न लें”। यमराज नहीं माने और उन्होंने सत्यवान के शरीर से प्राण खींच लिए। सत्यवान के प्राण लेकर वे अपने लोक चल पड़े। सावित्री भी उनके पीछे चल दीं। बहुत दूर जाकर यमराज ने सावित्री से कहा अब तुम लौट जाओ। इसके आगे तुम नहीं जा सकती हो।

सावित्री ने कहा कि मैं सुखपूर्वक चल रही हूं। आप परेशान न हों। सावित्री के पति धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने उन्हें वर मांगने को कहा। सावित्री ने यमराज से तीन वर मांगे और कहा कि मेरे अंधे सास-ससुर को आंखें दे दें। मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनू और उनका अपना राज्य वापस मिल जाए। सावित्री की इन कामनाओं को पूरा कर दिया।

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