अध्यात्म

नारद जयंती आज! जानिए आख़िर भगवान विष्णु को नारद जी ने क्यों दिया था श्राप?

भगवान विष्णु, नारद मुनि के श्राप की वज़ह से राम के रूप में हुए थे अवतरित...

दुनिया के पहले सफ़ल संचारक और भगवान के दूत नारद की आज जयंती है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों के मुताबिक देवर्षि नारद का प्राकट्य दिवस ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि है। ऐसी मान्यताएं है कि भगवान विष्णु का कोई परम् भक्त था तो वह देवर्षि नारद ही थे। सामान्यतया यह धारणा लोगों में होती है कि इधर का उधर करने की आदत देवर्षि नारद में थी, लेकिन सच तो यह है कि ऐसा कुछ भी नहीं था। वह तो एक सफ़ल संचारक थे। नारद भक्ति सूत्र को जब हम पढ़ते हैं। तब हमें पता चलता है कि वह देवताओं के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान का काम करते थे। इसलिए उन्हें पत्रकारिता का “आदिपुरुष” भी कहा जाता है।

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देवर्षि नारद मुनि विभिन्न लोकों की यात्राएं करते थे, जिनमें पृथ्वी, आकाश और पाताल सभी शामिल है। वह विभिन्न लोकों का भ्रमण कर वहां की यथा स्थिति से देवी-देवताओं को अवगत कराते थे। वहीं श्रीकृष्ण ने गीता में नारद जी को अपना ही स्वरूप मनाते हुए कहा है कि, “देवर्षीणांचनारदः।” अर्थात देवर्षियों में, मैं नारद मुनि हूँ। वहीं मालूम हो कि नारद मुनि व्यास, बाल्मीकि तथा शुकदेव के गुरु है। नारद मुनि की सबसे बड़ी ख़ासियत यह थी कि वह लोकमंगलकारी धरा की परिकल्पना करते थे, तभी तो वह राक्षसों को भी सही राह पर चलने का मार्गदर्शन देते थे। नारद मुनि की ही देन है कि रामायण और श्रीमद्भागवत पुराण मनुष्यों तक पहुँच सकी। ऐसे में जब आज नारद जयंती है तो आइए जानते हैं नारद मुनि द्वारा भगवान विष्णु को दिए श्राप के बारे में। आख़िर क्यों नारद मुनि ने भगवान विष्णु जिनके वह चहेते थे उनको दिया शाप और क्या कहा उस श्राप के माध्यम से…

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धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक देवर्षि नारद को एक बार इस बात का अभिमान हो गया कि कामदेव भी उनकी तपस्या और ब्रह्मचर्य को भंग नहीं कर सकते। जिसके उपरांत नारद मुनि ने यह बात देवादिदेव महादेव को बताई। जब यह बात देवर्षि नारद भगवान शिव को बता रहें थे तो भगवान भोलेनाथ को नारद मुनि के शब्दों में अहंकार दिखा। फ़िर क्या था भोलेनाथ ने नारद से कहा कि भगवान श्रीहरि के सामने अपना अभिमान इस प्रकार प्रदर्शित मत करना।

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इसके बाद नारद भगवान विष्णु के पास गए और शिवजी के समझाने के बाद भी उन्होंने श्रीहरि को पूरा प्रसंग सुना दिया। नारद भगवान विष्णु के सामने भी अपना अभिमान दिखा रहे थे। जिसके बाद भगवान ने सोचा कि नारद का अभिमान तोड़ना ही होगा, यह शुभ लक्षण नहीं है। ऐसे में जब नारद कहीं जा रहे थे, तब रास्ते में उन्हें एक बहुत ही सुंदर नगर दिखाई दिया, जहां किसी राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन किया जा रहा था। नारद मुनि भी स्वयंवर देखने पहुँच जाते हैं।

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जिसके बाद सुंदर रूप देखकर राजकुमारी ने उन्हें अपने पति के रूप में चुनने का फ़ैसला कर लिया। यह देखकर शिवगण नारदजी की हंसी उड़ाने लगे और कहा कि पहले अपना मुख दर्पण में देखिए। जब नारदजी ने अपने चेहरा वानर के समान देखा तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। नारद मुनि ने उन शिवगणों को अपना उपहास उड़ाने के कारण राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया। शिवगणों को श्राप देने के बाद नारदजी भगवान विष्णु के पास गए और क्रोधित होकर उन्हें बहुत भला-बुरा कहने लगे। इतना ही नहीं माया से मोहित होकर नारद मुनि ने श्रीहरि भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस तरह आज मैं स्त्री का वियोग सह रहा हूं उसी प्रकार मनुष्य जन्म लेकर आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा। जिस श्राप के कारण भगवान विष्णु को “भगवान राम” के रूप में धरती पर अवतरित होना पड़ा और स्त्री वियोग का वह श्राप भोगना पड़ा।

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