अध्यात्म

भगवान को सिर्फ सच्चे भाव से ही प्रसन्न किया जा सकता है, पढ़ें कृष्ण व पारसंवी की ये अनोखी कथा

भगवान केवल अपने भक्तों के भाव को देखते हैं, जो भक्त सच्चे भाव से अपने प्रभु की पूजा करता है। उसकी पूजा सदा सफल रहती है। इस संदर्भ से एक कथा भी जुड़ी हुई है। ये कथा महाभारत काल की है। कथा के अनुसार जब पांडव और कौरवो के बीच युद्ध होने जा रहा था। तब भगवान कृष्ण ने इस युद्ध को रोकने की काफी कोशिश की थी। इसी कोशिश के तहत भगवान कृष्ण हस्तिनापुर आए थे। हस्तिनापुर आकर कृष्ण जी ने दुर्योधन के सामने शांति का प्रस्ताव रखा था। लेकिन दुर्योधन ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया और युद्ध की बात पर आड़े रहे।

भगवान कृष्ण ने भी दुर्योधन को अधिक मनाने की कोशिश नहीं की। क्योंकि वो समझ गए थे कि दुर्योधन केवल युद्ध ही चाहता है। ऐसे में कोई सा भी प्रस्ताव दुर्योधन के सामने रखा जाए, वो उसे स्वीकार नहीं करने वाला है। वहीं लंबा सफर कर हस्तिनापुर आए भगवान कृष्ण ने कुछ नहीं खाया था। ऐसे में दुर्योधन ने भगवान कृष्ण जी को खाना खाने को कहा। लेकिन भगवान कृष्ण जानते थे कि दुर्योधन का भाव क्या है। इसलिए उन्होंने भोजन करने से मना कर दिया। कारण पूछने पर श्री कृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि किसी का आतिथ्य स्वीकार करने के तीन कारण होते हैं। भाव, प्रभाव और अभाव। लेकिन तुम्हारा ऐसा भाव नहीं है। जिसके वशीभूत तुम्हारा निमंत्रण स्वीकार किया जाए। तुम्हारा ऐसा प्रभाव भी नहीं है जिससे भयभीत होकर तुम्हारा निमंत्रण स्वीकार करुं और मुझे ऐसा अभाव भी नहीं है जिससे मजबूर होकर तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार किया जाए।

लेकिन कृष्ण जी को काफी भूख लगी हुई थी। इसलिए उन्होंने महात्मा विदुर के घर जाकर भोजन करने का सोचा। दरअसल महात्मा विदुर और उनकी पत्नी पारसंवी कृष्ण जी के काफी बड़े भक्त थे। महात्मा विदुर हस्तिनापुर के मंत्री होने के साथ साथ साधु और स्पष्टवादी थे। यही कारण था कि दुर्योधन उनसे सदा गुस्सा ही रहते थे और उनकी निन्दा करते रहते थे। धृतराष्ट्र और भीष्म पितामह के कारण ही दुर्योधन द्वारा किए जाने वाले अपमान को वो सहन कर लेते थे। श्रीकृष्ण में उनकी अनुपम प्रीति थी। इनकी धर्मपत्नी पारसंवी भी परम साध्वी थीं।

दुर्योधन के महल से निकल कर कृष्ण जी महात्मा विदुर के घर पर पहुंच गए। उस दौरान महात्मा विदुर घर में नहीं थे और उनकी पत्नी पारसंवी नहा रही थीं। श्रीकृष्ण की आवाज सुनते ही वो बिना वस्त्र के भागकर बाहर आ गई। उनकी अवस्था को देख श्रीकृष्ण ने अपना पीताम्बर पारसंवी पर डाल दिया। इसके बाद  श्रीकृष्ण ने कहा कि उन्हें भूख लगी है। ये बात सुनकर पारसंवी श्रीकृष्ण के लिए केले ले आयीं। श्रीकृष्ण के प्रेमभाव में वो इतनी मग्न थीं कि केले छील छील कर श्रीकृष्ण को खाने को दे रही थी। तभी महात्मा विदुर आ गए और वो चौंक गए। पारसंवी को डांटने लगे।

वहीं भगवान कृष्ण हंसने लगे। भगवान ने कहा, विदुर जी आप बड़े बेसमय आए, मुझे बड़ा ही सुख मिल रहा था। मैं तो ऐसे ही भोजन के लिए सदा अतृप्त रहता हूं। ये सुनने के बाद विदुर जी भगवान को केले का गूदा खिलाने लगे। भगवान ने कहा, विदुर जी आपने केले तो मुझे बड़ी सावधानी से खिलाए, पर न मालूम क्यों इनमें छिलके जैसा स्वाद नहीं आया। ये सुनकर विदुर की पत्नी की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी क्योंकि वो समझ गईं कि भगवान सिर्फ भाव के भूखे होते हैं।

Back to top button