अध्यात्म

भोलेनाथ के तांडव रूप से ठहर गई थी दुनिया, शास्त्रों में वर्णित है भगवान शिव से जुड़े यह 5 रहस्य

देवों के देव कहे जाने वाले भगवान शिव से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख शास्त्रों में किया गया है। इनका स्वरूप दूसरे देवताओं से बिल्कुल भिन्न है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि दूसरे सभी देवी देवता वस्त्र, आभूषण आदि धारण करते हैं, लेकिन भगवान शिव न आभूषण धारण करते हैं और ना ही वस्त्र। उनका रूप सबसे अनूठा है, वो शरीर पर भस्म लगाते हैं और गले में सर्प धारण करते हैं, लेकिन आपने कभी सोचा है कि शिवजी ऐसा क्यों करते हैं? अगर नहीं, तो आइये हम आपको आज भगवान शिव से जुड़े सभी रहस्यों के बारे में बताएंगे। चलिए शुरू करते हैं…

भस्म लगाने का रहस्य

शास्त्रों के अनुसार दुनिया की कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो भगवान शिव को आकर्षित कर सके। उन्हें आकर्षण से मुक्त कहा जाता है। शिवजी के लिए ये संसार, मोह माया सब कुछ राख के समान है, सब कुछ एक दिन भस्मीभूत होकर खत्म हो जाएगा। भस्म इसी बात का प्रतीक है और इसी वजह से शिवजी का भस्म से अभिषेक किया जाता है। माना गया है कि भस्म के अभिषेक से वैराग्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है। लिहाजा आप भी अपने घर में धूप बत्ती की राख से भगवान शिव की अभिषेक कर सकते हैं, लेकिन माना गया है कि महिलाओं को भस्म से अभिषेक नहीं करना चाहिए।

तांडव नृत्य का रहस्य

महादेव का शिव तांडव नृत्य प्रसिद्ध है। हालांकि जब लोग तांडव शब्द सुनते हैं, तो उनके मन में शिव के क्रोध का ही दृश्य उभरकर सामने आता है। बता दें कि शिव तांडव के दो रूप हैं। रौद्र तांडव शिव के प्रलयकारी क्रोध का परिचायक है और दूसरा आनंद प्रदान करने वाला आनंद तांडव है। रौद्र तांडव करने वाले शिव रूद्र कहे जाते हैं और आनंद तांडव करने वाले शिव नटराज शिव के नाम से प्रसिद्ध हैं। शास्त्रों के अनुसार आनंद तांडव से ही सृष्टि अस्तित्व में आती है और रूद्र तांडव में सृष्टि का विलय हो जाता है।

जाने क्या है गले में लिपटे सर्प का रहस्य?

भगवान शिव के गले में हर समय लिपटे रहने वाले सर्प के बारे में अक्सर आपके दिमाग में सवाल उठते होंगे कि आखिर शिवजी के गले में हमेशा सर्प क्यों लिपटा रहता है? बता दें कि शिव के गले में हर समय लिपटे रहने वाले नाग कोई और नहीं बल्कि नागराज वासुकी हैं। वासुकी नाग ऋषि कश्यप के दूसरे पुत्र थे। कहा जाता है कि नागलोक के राजा वासुकी शिव के परम भक्त थे।

माथे पर चंद्रमा का रहस्य

एक बार जब महाराजा दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रसित होने का श्राप दिया, तो इस श्राप से बचने के लिए चंद्रमा ने भगवान शिव की अराधना की। चंद्रमा के पूजा पाठ से भगवान शिव काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने चंद्रमा के प्राणों की रक्षा की। इतना ही नहीं शिवजी ने चंद्रमा को अपने सिर पर धारण कर लिया। चंद्रमा की जान तो बच गई, लेकिन आज भी चंद्रमा के घटने बढ़ने का कारण महाराज दक्ष का शाप ही माना जाता है।

तीसरी आंख का रहस्य

शिवजी एक बार हिमालय में सभा कर रहे थे। इस सभा में सभी देवता, ऋषि-मुनी और ज्ञानीजन मौजूद थे। इसी बीच सभा में माता पार्वती आईं और उन्होंने अपने दोनों हाथों से भगवान शिव की दोनों आंखों को ढंक दिया। शास्त्रों में वर्णन किया गया है कि माता पार्वती ने जैसे ही भगवान शिव के आंखों को ढंका, पूरे संसार में अंधेरा छा गया और धरती पर मौजूद सभी जीव-जंतुओं में खलबली मच गई। संसार की ऐसी दुर्दशा देख भगवान शिव व्याकुल हो उठे और उन्होंने अपने माथे पर एक प्रकाश पुंज प्रकट किया, यही भगवान शिव की तीसरी आंख बनी।

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