अध्यात्म

वाह !! जाने इस चमत्कारिक वृक्ष के बारे में जिसे छूने मात्र से मिट जाती है थकान

हालांकि पारिजात के पेड़ तो पूरे देश में पाये जाते हैं, पर किंटूर में स्थित पारिजात वृक्ष अपने आप कई मायनों में अनूठा है और यह अपनी तरह का पूरे भारत में इकलौता पारिजात वृक्ष है। उत्तरप्रदेश के बाराबंकी नामक जिले से लगभग 38 किलोमीटर कि दूर है किंटूर गांव, जहां पर ये दिव्य वृक्ष लगा है। ऐसा कहा जाता है कि इस इस वृक्ष को मात्र छूने मात्र से सारी थकान मिट जाती है।

ज़्यादातर तो पारिजात का वृक्ष 10 से 25 फीट तक ऊंचा होता है, परंतु किंटूर में स्थित पारिजात वृक्ष लगभग 45 फीट ऊंचा और 50 फीट चौड़) है। इस वृक्ष की जो सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अपनी तरह का इकलौता वृक्ष है, क्योंकि इस पारिजात वृक्ष पर बीज नहीं लगते हैं तथा इस वृक्ष की कलम बोने से भी दूसरा वृक्ष तैयार नहीं होता है।

पारिजात वृक्ष पर जून के आस-पास बेहद खूबसूरत सफेद रंग के फूल खिलते हैं। पारिजात के फूल केवल रात को खिलते हैं और सुबह होते ही मुरझा जाते हैं। इन फूलों का लक्ष्मी पूजन में विशेष महत्त्व है। पर एक बात ध्यान रहे कि पारिजात वृक्ष के वे ही फूल पूजा में काम लिए जाते हैं जो वृक्ष से टूट कर गिर जाते हैं, वृक्ष से फूल तोड़ने की मनाही है।

पारिजात वृक्ष का वर्णन हरिवंश पुराण में भी आता है। हरिवंश पुराण में इसे कल्पवृक्ष कहा गया है जिसकी उत्पत्ति समुन्द्र मंथन से हुई थी और जिसे इंद्र ने स्वर्गलोक में स्थापित कर दिया था। हरिवंश पुराण के अनुसार इसको छूने मात्र से ही देव नर्तकी उर्वशी की थकान मिट जाती थी।

पारिजात वृक्ष का वर्णन हरिवंश पुराण में भी आता है। हरिवंश पुराण में इसे कल्पवृक्ष कहा गया है जिसकी उत्पत्ति समुन्द्र मंथन से हुई थी और जिसे इंद्र ने स्वर्गलोक में स्थापित कर दिया था। हरिवंश पुराण के अनुसार इसको छूने मात्र से ही देव नर्तकी उर्वशी की थकान मिट जाती थी।

एक बार देवऋषि नारद जब धरती पर श्री कृष्ण से मिलने आये तो अपने साथ पारिजात के सुन्दर पुष्प ले कर आये। उन्होंने वो पुष्प श्री कृष्ण को भेट किये। श्री कृष्ण ने वो पुष्प साथ बैठी अपनी पत्नी रुक्मणि को दे दिए। लेकिन जब श्री कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्य भामा को पता चला कि स्वर्ग से आये पारिजात के सारे पुष्प श्री कृष्ण ने रुक्मणि को दे दिए तो उन्हें बहुत क्रोध आया और उन्होंने श्री कृष्ण के सामने ज़िद पकड़ ली कि उन्हें अपनी वाटिका के लिए पारिजात वृक्ष चाहिए।

सत्यभामा की ज़िद के आगे झुकते हुए श्री कृष्ण ने अपने दूत को स्वर्ग से पारिजात वृक्ष लाने के लिए भेजा पर इंद्र ने पारिजात वृक्ष देने से मना कर दिया। दूत ने जब यह बात आकर श्री कृष्ण को बताई तो उन्होंने स्व्यं ही इंद्र पर आक्रमण कर दिया और इंद्र को पराजित करके पारिजात वृक्ष को जीत लिया। इससे रुष्ट होकर इंद्र ने पारिजात वृक्ष को फल से वंचित हो जाने का श्राप दे दिया और तभी से पारिजात वृक्ष फलविहीन हो गया।

श्री कृष्ण ने पारिजात वृक्ष को ला कर सत्यभामा की वाटिका में रोपित कर दिया, पर सत्यभामा को सबक सिखाने के लिया ऐसा कर दिया कि जब पारिजात वृक्ष पर पुष्प आते तो गिरते वो रुक्मणि कि वाटिका में। और यही कारण है कि पारिजात के पुष्प वृक्ष के नीचे न गिरकर वृक्ष से दूर गिरते हैं। इस तरह पारिजात वृक्ष, स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गया।

पारिजात वृक्ष के ऐतिहासिक महत्त्व व इसकी दुर्लभता को देखते हुए सरकार ने इसे संरक्षित घोषित कर दिया है। भारत सरकार ने इस पर एक डाक टिकट भी जारी किया है।

पारिजात को आयुर्वेद में हरसिंगार भी कहा जाता है। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसके पत्तों का सबसे अच्छा उपयोग गृध्रसी (सायटिका) रोग को दूर करने में किया जाता है। इसके फूल दिल के लिए भी अच्छी औषधि माने जाते हैं।

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