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साल 1954 से ही भारत की जमीन पर कब्जा करना चाहता है चीन, अब तक 14 बार दिखा चूका है चालबाज़ी

भारत और चीन सीमा विवाद साल 1954 में शुरू हुआ था और आज तक ये विवाद खत्म नहीं हुआ है। ये पहला मौका नहीं है जब चीन की और से चालबाजी की गई हो। इससे पहले भी चीन ने कई बार भारत के साथ चालबाजी की है।

साल 1954 में शुरू हुआ था ये विवाद

साल 1950 में भारत ने चीन के साथ राजनयिक संबंध बनाए थे। लेकिन राजनयिक संबंध बनाए जाने के ठीक चार साल बाद चीन ने अपने असली रंग दिखना शुरू कर दिए। चीन ने भारत के लद्दाख इलाके को अपना बताया। दरअसल चीन की और से एक किताब ‘अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न चाइना’ में चीन का जो नक्शा छापा गया, उसमें चीन ने लद्दाख को अपना हिस्सा बताया। इसके अलावा साल 1958 में चीन की दो मैगजीन चाइना पिक्टोरियल’ और ‘सोवियत वीकली’ में भी भारत के कुछ हिस्सों को चीन का बताया गया। चीन की इन हरकतों पर भारत सरकार ने अपना विरोध जताया। जिसके बाद चीन ने ये कहा कर विरोध खत्म किया की ये नक्शे पुराने हैं।

1954 में की घुसपैठ की कोशिश

साल 1954 में चीन ने घुसपैठ की कोशिश की थी। उस समय चीन ने उत्तर प्रदेश के बाराहोती को अपना इलाका बताया था और कहा था कि चीन इस हिस्से को वू जी नाम से बुलाता है। हालांकि भारतीय सेना ने तभी इसका विरोध किया और चीन को पीछे हटना पड़ा.।

1956 में अरुणाचल प्रदेश के इलाकों को बताया अपना

चीन ने अरुणाचल प्रदेश के कई सारे इलाकों पर भी अपना हक बताया। चीन ने साल 1956 में अरुणाचल प्रदेश के शिपकी ला इलाके में घुसपैठ की। इसके अलावा जुलाई 1958 में चीनी सैनिकों ने खुरनाक किला जो कि लद्दाख के पास है, उसपर कब्जा कर लिया। इसके अलावा 1958 में चीन अरुणाचल प्रदेश के लोहित फ्रंटियर डिविजन के अंदर तक आ गया था। .

भारत के हिस्से में बनाई सड़क

चीन से साल 1958 में शिंजियांग से लेकर तिब्बत के बीच हाईवे बनाया और ये हाईव भारतीय हिस्सों से भी गुजरा था। भारत सरकार ने इस मसले पर अपनी आवाज उठाई और अपनी दो टीम भेजी, जिसमें से एक टीम को चीन ने बंधक बना लिया। चीन ने कहा कि उसने अपने ही इलाके में सड़क को बनाया है।

मैकमोहन रेखा मानने से किया इंकार

साल 1914 में ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के बीच मैकमोहन लाइन तय हुई थी। उस समय तत्कालीन विदेश सचिव सर हेनरी मैकमोहन ने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किमी लंबी सीमा बनाई थी। मैकमोहन रेखा में अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा बताया गया था। जब चीन ने इस रेखा को मान लिया था। लेकिन साल 1959 में चीनी राष्ट्रपति झोऊ इन लाई ने भारत के तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिख कहा कि वो मैकमोहन रेखा को नहीं मानतें है और अरुणाचल तिब्बत का दक्षिण हिस्सा है। इसलिए अरुणाचल भी उसका है। लेकिन भारत ने चीन की इस बात को नहीं स्वीकार किया।

भारत से किया युद्ध

साल 1962 में चीन ने भारत के सामने एक व्यापारिक समझौता पेश किया और कहा कि अगर भारत व्यापारिक समझौते के लिए तैयार होता तो उस स्थिति में चीन की सेना 20 किमी पीछे हो जाएगी। भारत ने चीन की इस बात को स्वीकार कर लिए। हालांकि इसी दौरान भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हो गई और दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ। जो कि 22 नवंबर 1962 को खत्म हुआ।

हुए राजनयिक संबंध खराब

13 जून 1967 को भारत और चीन के राजनयिक संबंध खराब हुए औ चीन ने भारतीय दूतावास में काम कर रहे 2 अधिकारियों पर जासूसी का आरोप लगाया। जिसके दोनों देशों ने दूतावास को सीज कर दिया था।

साल 1967 में की फायरिंग

चीन की और से 1967 में फिर फायरिंग की गई और चीन ने तिब्बत-सिक्किम सीमा पर नाथूला में मोर्टार दागे। नाथूला में भारत के 88 जवान शहीद हुए। जबकि चीन के 300 सैनिक मारे गए। वहीं, छोला इलाके में हुई लड़ाई में चीन के 40 सैनिकों की जान गई थी। वहीं साल 1975 में अरुणाचल प्रदेश में चीनी सेना ने भारतीय सेना पर फायरिंग की। जिसमें भारत के 4 जवान शहीद हुए।.

करगिल युद्ध के दौरान बनाई सड़क

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए करगिल युद्ध के दौरान चीन ने पैंगोंग शो झील के किनारे 5 किमी लंबी सड़क बनाई। इसे लेकर दोनों देशों की सेना के बीच झड़प भी हुई थी। इसके अलावा साल 2000 में चीन ने लद्दाख में भारतीय सीमा के अंदर सड़क और बंकर बनाए।

2013 में की घुसपैठ

साल 2013 में चीन की सेना ने लद्दाख के दीपसंग घाटी में घुसपैठ की। जिसके बाद अक्टूबर में दोनों देशों के बीच बॉर्डर डिफेंस को ऑपरेशन अग्रीमेंट हुआ।

चुनार में की सड़क बनाने की कोशिश

चीन ने साल 2014 में लद्दाख के चुनार में सड़क बनाने की कोशिश की। जिसका पीएम मोदी ने विरोध किया। जिसके बाद में ये मुद्दा हल हुआ।

डोकलाम में किया सड़क निर्माण

साल 2017 में चीन ने डोकलाम में सड़क निर्माण करने की कोशिश की। जिससे की दोनों देशों के बीच विवाद हुआ था। लेकिन बातचीत कर भारत और चीन ने इस मसले को भी हल कर लिया।

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