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अपरा एकादशी 2020: 18 मई को है अपरा एकादशी, जानिए कब है शुभ मुहूर्त, क्या है पूजा विधि और व्रत कथा

अपरा एकादशी के व्रत(Apara ekadashi vrat katha) का बड़ा महत्व है, क्योंकि इसे करने से केवल भगवान विष्णु ही नहीं, बल्कि माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होकर घर को समृद्धि से भर देती हैं। पद्म पुराण में बताया गया है कि जो अपरा एकादशी का व्रत करते हैं, वे भवसागर तर जाते हैं और प्रेत योनि के कष्ट उन्हें नहीं भुगतने पड़ते हैं।

अपरा एकादशी के व्रत(Apara ekadashi vrat katha)

कब है अपरा एकादशी (apara Ekadashi)?

अपरा एकादशी का व्रत हिंदू पंचांग के मुताबिक हर वर्ष जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। वहीं, ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष यह व्रत मई या जून में होता है। इस बार 18 मई 2020 को अपरा एकादशी मनाई जा रही है।

अपरा एकादशी की तिथि व शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि 17 मई 2020 को दोपहर 12:42 बजे शुरू हो रही है और 18 मई 2020 को दोपहर 3:08 बजे यह समाप्त हो जाएगी। 19 मई 2020 को सुबह 5:28 बजे से सुबह 8:12 बजे तक पारण का समय निर्धारित है।

क्या है अपरा एकादशी का महत्व?

अपरा एकादशी के बारे में बताया जाता है कि इस दिन विष्णुसहस्राणंनम का जो पाठ करते हैं, भगवान विष्णु की विशेष कृपा उन पर बरसती है। सारे पाप व्रती के धुल जाते हैं। व्रत जो लोग नहीं कर सकते हैं, उन्हें भी भगवान विष्णु की पूजा इस दिन करनी चाहिए और चावल का सेवन भूल से भी नहीं करना चाहिए।

अपरा एकादशी के व्रत(Apara ekadashi vrat katha)

अपरा एकादशी की पूजन विधि

एक दिन पहले से ही एकादशी के व्रत के नियमों का पालन करना शुरू कर देना है। ब्रह्म मुहूर्त में अपरा एकादशी के दिन उठकर घर की साफ-सफाई कर लेनी है और स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लेना है। घर के मंदिर में अब भगवान विष्णु और बलराम की मूर्ति, उनकी फोटो या फिर कैलेंडर के सामने दीए जलाने हैं। भगवान विष्णु की मूर्ति पर अक्षत, फूल, नारियल, मेवे और मौसमी फल चढ़ाने हैं। तुलसी के पत्ते भगवान विष्णु की पूजा करते वक्त जरूर होने चाहिए। धूप दिखाकर अब श्री हरि विष्णु की आरती करनी है।

फिर सूर्यदेव को जल अर्पित करके एकादशी की कथा सुननी और सुनानी है। निर्जला व्रत इस दिन करना है। तुलसी के पास शाम में गाय के घी का एक दीपक जला देना है। रात के वक्त सोना नहीं है और भगवान का भजन-कीर्तन करना है। अगले दिन जब पारण कर रहे हों तो किसी ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को यथासामर्थ्य भोजन कराकर और दक्षिणा देकर ही विदा करना उचित होगा। अन्न और जल ग्रहण करके फिर व्रत का पारण कर सकते हैं।

अपरा एकादशी के व्रत(Apara ekadashi vrat katha)

अपरा एकादशी की व्रत कथा

अपरा एकादशी को लेकर प्रचलित कई पौराणिक कथाओं में से एक कथा किसी राज्य के राजा महीध्वज को लेकर है, जो कि बहुत ही नेक इंसान था और जिसके राज्य में प्रजा बहुत ही खुश थी। वहीं, महीध्वज का भाई ब्रजध्वज दुष्ट प्रवृत्ति का था। षड्यंत्र रच कर उसने महीध्वज को मरवा कर फेंक दिया। महीध्वज इसके बाद प्रेत बन गया।

एक ओर ब्रजध्वज राजा बनकर प्रजा को परेशान कर रहा था तो प्रेत बनने की वजह से महीध्वज भी अब आने-जाने वालों को परेशान करने लगा था। एक दिन एक पहुंचे हुए ऋषि वहां से गुजरे तो उन्होंने महीध्वज को अपने तपोबल से पकड़ लिया। उसके लिए अपरा एकादशी का व्रत रखा और जो पुण्य प्राप्त हुआ प्रेत को दान कर दिया। इससे महीध्वज को प्रेत जीवन से आजादी मिल गई और वह वैकुंठ गमन कर गया।

अपरा एकादशी की एक अन्य कथा

अपरा एकादशी से जुड़ी एक और कथा के मुताबिक एक राजा ने अपने राज्य में मनमोहक उद्यान तैयार करवाया था, जहां ऐसे-ऐसे पुष्प खेलते थे कि देवता भी आकर्षित हो गए थे और उन्होंने फूलों की चोरी करनी शुरू कर दी थी। अपने उद्यान को वीरान होता देख चिंतित होकर राजा ने भगवान विष्णु को समर्पित किए जाने वाले पुष्पों को उद्यान के चारों ओर बिखेर दिया। रोज की तरह देवता और अप्सराएं फूल चोरी करने आईं तो एक अप्सरा का पैर गलती से भगवान श्रीहरि को समर्पित एक फूल पर पड़ गया, जिससे उसके सारे पुण्य समाप्त हो गए और अपने साथियों के साथ वह स्वर्गलोक लौट नहीं पाई।

अगले दिन राजा उसकी सुंदरता को देखकर मोहित हो गया। उसने उससे पूछा कि वह उसकी मदद कैसे कर सकता है, इस पर अप्सरा ने बताया कि यदि राजा की प्रजा में से कोई भी जेष्ठ कृष्ण एकादशी का उपवास रखे और उसका पुण्य उसे दान कर दे तो वह वापस लौट सकती है। राजा ने इनाम की घोषणा करके रकम बढ़ाते-बढ़ाते आधा राज्य देने तक पहुंच गया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पा रही थी। अंत में एक सेठानी के बारे में पता चला कि जाने-अनजाने उसने अपरा एकादशी का व्रत किया है।

फिर पूरे सम्मान के साथ सेठ-सेठानी को बुलाकर राजा ने अनुरोध किया तो उसने अप्सरा को अपने पुण्य दान कर दिए और अप्सरा स्वर्गलोक लौट गई। वादे के मुताबिक राजा ने आधा राज्य सेठ-सेठानी के हवाले कर दिया। अपरा एकादशी के महत्व को राजा ने समझा और उसने अपने राज्य में 8 से 80 वर्ष तक के सभी लोगों के लिए वर्ष की हर एकादशी के उपवास को अनिवार्य भी कर दिया।

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