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अमेरिकी तेल बाजार में आई ऐतिहासिक गिरावट, भारतीय बाजार पर पड़ेगा कितना असर?

अमेरिकी तेल बाजार में ऐतिहासिक गिरावट आई है। सोमवार को अमेरिका के वायदा बाजार में कच्चे तेल की कीमत में भारी गिरावट दर्ज की गई और यह ऐतिहासिक रूप से लुढ़कते हुए निगेटिव में चला गया। यह कीमत शून्य से 36 डालर नीचे चला गया है। ऐसे में सवाल ये पैदा हो रहे हैं कि क्या अमेरिका के तेल बाजार में गिरावट आने से इसका फर्क भारत में पड़ेगा? ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब आज हम आप को बताएंगे और जानेंगे दुनिया में कैसे चलता है तेल का खेल?

क्या हलचल है अमेरिकी बाजार में

सोमवार को अमे​रिका के वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) मार्केट में कच्चे  तेल की कीमत मई के वायदा सौदों के लिए गिर गया और इसकी कीमत गिरकर माइनस 37.63 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया, लेकिन हमें यह जानना आवश्यक है कि इसकी कीमत गिरने के क्या मायने हो सकते हैं? बता दें कि फिलहाल इसका असर मार्केट पर नहीं पड़ेगा, बल्कि फ्यूचर में पड़ेगा।

दरअसल, पूरी दुनिया इस समय कोरोना संकट से जूझ रही है। इसके कारण दुनियाभर में तालाबंदी का माहौल है। लॉकडाउन को देखते हुए जिन कारोबारियों ने मई महीने के लिए सौदे किए थे, वे अब इसे लेने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि लॉकडाउन के चलते दुनिया भर में तेल की खपत कम हुई है, ऐसे में उनके पास पहले से ही तेल जाम पड़ा है। इसी कारण उत्पादक अपने पास से रकम देकर कह रहे हैं कि आप हमसे खर्च ले लो, लेकिन सौदे को पूरा करो और आप हमसे तेल ले जाओ। माना जा रहा है कि ऐसी स्थिति कच्चे तेल मार्केट के इतिहास में पहली बार आई है।

भारत का नुकसान या फायदा?

दरअसल, अमेरिका के बाजार में अगर तेल मुफ्त भी हो जाता है, तो भारत के पेट्रोलियम मार्केट में इसका बहुत असर नहीं दिखता, क्योंकि भारत में अमेरिका से तेल नहीं आता। भारत में ज्यादातर तेल लंदन और खाड़ी देशों का मिक्स पैकेज होता है, जिसे इंडियन क्रूड बास्केट कहते हैं। ऐसे में भारत के लिए अमेरिकी क्रूड मार्केट का रेट ज्यादा महत्व नहीं रखता है। बता दें इंडियन क्रूड बास्केट में 80 फीसदी तेल ओपेक यानि खाड़ी देशों का और 20 फीसदी तेल लंदन ब्रेंट क्रूड तथा अन्य का होता है।

डबल्यूटीआई क्रूड ऑयल, इसे अमेरिका के कुंओं से निकाला जाता है। इसे भारत लाना काफी महंगा है, इसलिए अमेरिकी क्रूड ऑयल भारत में नहीं आते, जबकि दुनिया में सबसे अच्छी क्वालिटी का ऑयल ब्रेंट क्रूड को माना जाता है। वहीं खाड़ी देशों का यानि दुबई या ओमार क्रूड ऑयल थोड़ा हल्का होता है, लेकिन भारत समेत एशियाई बाजार में इसी ऑयल को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है।

पेट्रोलियम की कीमत भारत में कैसे तय होती है

लोगों के मन में अक्सर ये सवाल होता है कि अगर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट है तो फिर पेट्रोल डीजल के दाम क्यों नहीं गिर रहे? इसका कारण ये है कि भारत में क्रूड के दामों से तेल की कीमत तय नहीं होती है। पेट्रोल और डीजल के दामों के लिए पेट्रोलियम कंपनियां हर दिन पेट्रोल डीजल का ऐवरेज रेट देखती हैं और फिर उस हिसाब से तय करती हैं। इसके अलावा भारत में कई तरह के केंद्रीय और राज्य स्तरीय टैक्स लगते हैं। इसी वजह से कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से हमारे यहां उसका तुरंत प्रभाव देखने को नहीं मिलता है।

एक्सपर्ट मान रहे हैं कि ये दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। कोरोना संकट की वजह से दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पस्त है और कई जानकारों का मानना है कि इससे उबरने के लिए साल भर भी लग सकते हैं। कोरोना संक्रमण के रोकथाम के लिए भारत में भी लॉकडाउन घोषित है। ऐसे में यहां भी पिछले दिनों तेल की मांग में भारी गिरावट दर्ज की गई। यह खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं हैं, क्योंकि खाड़ी देशों की पूरी इकॉनमी कच्चे तेल पर निर्भर है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि खाड़ी के देशों में करीब 80 लाख भारतीय काम करते हैं, जो हर वर्ष 50 अरब डालर रकम भारत भेजते हैं। ऐसे में अर्थव्यवस्था गड़बड़ होने का मतलब है कि रोजगार का संकट आना।

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