Spiritual

ये हैं महाभारत के 15 मायावी योद्धा, अपनी मायावी शक्तियों से देवताओं तक को कर दिया था परेशान

महाभारत युद्ध, भारत वर्ष का सबसे बड़ा युद्ध कहलाता है। इस युद्ध में एक से बढ़कर एक पराक्रमी योद्धा थे। जिन्हें अनेक किस्म के अस्त्र शस्त्र का ज्ञान था। ये योद्धा विचित्र विचित्र सिद्धियां और चमत्कार जानते थे। इस युद्ध में स्वयं श्रीकृष्ण भी थे, जो विष्णु के अवतार हैं। लेकिन कोई किसी से कम योद्धा नहीं था। वो चाहे पांडवों की ओर से लड़ रहे हों, चाहे कौरवों की ओर से। दोनों ही तरफ से वीर पराक्रमी योद्धा थे, जो पूरी तरह से युद्ध कौशल में निपुण माने जाते हैं। तो आज हम महाभारत के समय के 15 ऐसे योद्धाओं की बात करेंगे, जो परम पराक्रमी योद्धा कहे गए हैं।

सहदेव

पांडवों में सबसे ज्यादा अगर लोग किसी को जानते हैं तो वो अर्जुन हैं। और जानें भी क्यों ना, पांडवों में सबसे अधिक पराक्रमी वही थे। लेकिन इन पांच भाईयों में सबसे छोटे सहदेव थे। और सहदेव के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वो भविष्य देख सकते थे।  भविष्य में क्या होने वाला है, उन्हें इन सबकी जानकारी थी। सहदेव को ये भी मालूम था कि महाभारत होने वाला है। और कौन किसको मारने वाला है।  लेकिन सहदेव को श्रीकृष्ण का शाप था कि अगर उसने इस बारे में किसी को बताया तो उसकी मृत्यु हो जाएगी।

बर्बरीक 

बर्बरीक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धर्नुधर में से एक थे। उनके लिए सिर्फ तीन बाण ही काफी थे, पांडवों और कौरवों की पूरी सेना को समाप्त करने के लिए। बता दें, बर्बरीक भीम के पौत्र थे। लेकिन बर्बरीक ने युद्ध के मैदान में दोनों खेमों के मध्य बिंदू एक पीपल के पेड़ के नीचे खड़े होकर ये घोषणा कर दी कि, मैं उस पक्ष की तरफ से लड़ूंगा। जो हार रहा होगा।

संजय

श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया गीता का ज्ञान सिर्फ दो लोगों ने सुना था। एक अर्जुन और दूसरे संजय। संजय ने वेदादि विद्याओं का अध्ययन किया था। और हस्तिनापुर की राजसभा में मंत्री बन गए थे। संजय के पास जो ज्ञान था, आज के युग में उसे टैलिपैथिक विद्या कहते हैं। संजय दूरदृष्टि थे। उन्होंने पूरा महाभारत धृतराष्ट्र को अपनी आंखों से देखकर सुनाया था।

अश्वत्थामा

अश्वत्थामा गुरू द्रोण के पुत्र थे। और उन्हें हर तरह की विद्या आती थी। वे सभी विद्या में पूरी तरह से पारंगत थे। अश्वत्थामा चाहते तो कुछ ही दिनों में पूरा युद्ध समाप्त कर सकते थे। लेकिन श्रीकृष्ण की वजह से ऐसा नहीं हुआ। श्रीकृष्ण जानते थे कि द्रोण और अश्वत्थामा दोनों मिलकर ही युद्ध समाप्त कर सकते हैं।

कर्ण

दानवीर के नाम से प्रसिद्ध कर्ण से यदि उनके कवच और कुंडल न हथियाए गए होते और यदि कर्ण ने इन्द्र द्वारा दिए गए अस्त्र का प्रयोग घटोतकच पर न करके अर्जुन पर किया होता तो, शायद महाभारत युद्ध का परिणाम कुछ और ही होता।

भीम

वायुपुत्र भीम, गदा युद्ध में सबसे पारंगत थे। ऐसा कहा जाता है कि भीम में हजार हाथियों का बल था। उनका पुत्र था घटोत्कच, जो भीम से भी अधिक शक्तिशाली था।

घटोत्कच

भीम पुत्र घटोत्कच कद काठी में इतना विशालकाय था कि वो एक लात मारकर रथ कई फूट पीछे फेंक सकता था। वहीं वह सैनिकों को अपने पैरों तले कुचल देता था। बता दें, भीम और हिडिम्बा का पुत्र घटोत्कच था।

दुर्योधन

दुर्योधन का शरीर वज्र की समान कठोर था। उसके शरीर को बाणों से कोई फर्क नहीं पड़ता था। धनुष के बाणों से उसके शरीर को छेदा नहीं जा सकता है। उसकी कमजोरी उसकी जांघ थी। उसकी जांघें प्राकृतिक थे। इसी वजह से श्रीकृष्ण के छल के कारण भीम ने दुर्योधन के जांघ पर वार करके उसके दो फाड़ कर दिए थे।

भीष्म पितामह

शांतनु और गंगा पुत्र भीष्म का असली नाम देवव्रत था। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था। वे स्वर्ग के आठ वस्तुओं में से एक थे। उन्हें एक बार शाप मिला था, इसलिए उनका जन्म मनुष्य योनि में हुआ था। ।

जरासंध

जरासंध को ऐसा वरदान प्राप्त था, जिससे कि उसके शरीर के दो फाड़ होने के बावजूद जुड़ जाते थे। इसलिए श्रीकृष्ण ने भीम को इशारों में समझाया था कि जरासंध की दो फाड़ करके उन्हें विपरित दिशा में फेंक दिया जाए।

अभिमन्यु

अर्जुन पुत्र अभिमन्यु ने सारी विद्या अपनी मां के कोख में रहकर ही सीख ली थी। माता सुभद्रा के गर्भ में रहकर ही उन्होंने चक्रव्यूह भेदना सीख  लिया था। लेकिन वह चक्रव्यूह को तोड़ना इसलिए नहीं सीख पाए क्योंकि जब चक्रव्यूह तोड़ने की शिक्षा दी जा रही थी, तो सुभद्रा सो गई थी।

बलराम 

बलराम दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों में से एक थे। चूंकि वो महाभारत युद्ध में शामिल नहीं हुए, वरना सेना की आवश्यकता ही नहीं होती। बलराम के दोनों ही पक्षों से घनिष्ठ संबंध थे। बलराम को बलभद्र भी कहा जाता है। कहा जाता है कि जब श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को दुर्योधन ने बंदी बना लिया था, तो बलराम ने अपने हल से हस्तिनापुर की धरती हिला दी थी। और इस भूकंप से दुर्योधन भी हिल गया था।

इरावन

इरावन अर्जुन का पुत्र था। और ये बात सुनने में थोड़ी अजीब है कि, युद्द के लिए इरावन की बलि दी गई थी। बलि देने से पहले इरावन की इच्छा थी कि वो शादी कर ले। लेकिन उससे शादी के लिए कोई लड़की तैयार नहीं हुई। इस स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण ने मोहिनी का रूप लिया और इरावन से न केवल शादी की बल्कि बलि से पहले एक पत्नी की तरह उसे विदा करते हुए रोए भी। यही इरावन आज देशभर के किन्नरों का देवता है।

एकलव्य

एकलव्य का नाम तो आप सभी ने सुना ही होगा। एकलव्य, अर्जुन से भी बड़ा धनुर्धारी था। । जरासंध की सेना की तरफ से उसने मथुरा पर आक्रमण करके यादव सेना का लगभग सफाया कर दिया था। कहते हैं कि महाभारत के युद्ध के पहले श्रीकृष्ण ने एकलव्य को भी युद्ध करके निपटा दिया था अन्यथा वह महाभारत में कोहराम मचा देता। एकलव्य के वीरगति को प्राप्त होने के बाद उसका पुत्र केतुमान सिंहासन पर बैठता है और वह कौरवों की सेना की ओर से पांडवों के खिलाफ लड़ता है। महाभारत युद्ध में वह भीम के हाथ से मारा जाता है।

शकुनि

मायावी शकुनि कुरू वंश का नाश चाहता था। उसके पास इतना मायावी ज्ञान था कि उसके पासे उसकी ही बात मानते थे। उसने युद्ध में अर्जुन पर कई तरह के माया का प्रयोग किया था। जिससे अर्जुन की तरफ  हजारों तरह के हिंसक पशु दौड़ने लगे थे। आसमान से लोगों के गोले और पत्थर गिरने लगे थे। कई तरह के अस्त्र शस्त्र सभी दिशाओं से आने लगे थे। अर्जुन इस माया जाल से कुछ समय के लिए तो घबरा गए थे लेकिन उन्होंने दिव्यास्त्र का प्रयोग कर इसको काट दिया था।

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