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सबसे पहले यहां चिता की भस्म से होती है होली, भोलेनाथ के नारों से गूंज उठता है आकाश

भारत उत्सवों का देश है, यहां लोग उत्सव और त्योहार मनाने के बहाने ढूंढते रहते हैं. लेकिन उत्सव यहां की हवाओं में बसे हुए हैं, भारत की परम्पराओं में उत्सव भी अच्छे से घुले हुए हैं. होली और दीपावली हर बड़ा त्योहार अपने साथ कई उत्सव लेकर आता है. इतना ही नहीं विविधताओं से भरे भारत में त्योहारों को मनाने के तरीके भी भिन्न भिन्न हैं.

इन त्योहारों का अपने आप में बड़ा महत्व है, उनमें से होली सबसे खास है, होली हर जगह अपने अलग अंदाज में मनाई जाती है, एक तरफ जहां बरसाना, मथुरा में लट्ठमार होली परम्पराओं से चली आ रही है तो वहीं कई जगहों पर कालांतर में कपड़ा फाड़, कीचड़ उछाल और मटियामेट होली भी खेली जाती है. हर जगह की होली का अपना महत्व है और हर जगह की होली अपने आप में खास है.

लेकिन होली के 4-5 दिन पहले बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में एक बेहद अनोखी और रोमांचक होली खेली जाती है. इस होली को देखने के लिए पूरे विश्व के पर्यटक भारत आते हैं. ये होली अपने आप में सबसे खास होती है. माना जाता है कि होली सबसे पहले भगवान भोलेनाथ यानी कि भगवान शिव खेलते हैं और फिर उनके बाद उनके औघड़ भक्त खेलते हैं.

आपको बता दें कि हम और आप फाल्गुन मास की शुक्ल पूर्णिमा पर होली मनाते हैं जबकि भगवान भोलेनाथ की होली फाल्गुन शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है. इस दिन बनारस के मणिकर्णिका घाट पर जो होली होती है वो बेहद रोमांचक होती है. फाल्गुन शुक्ल एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान भोलेनाथ चिता की राख से होली खेलते हैं.

माना जाता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ विवाह के बाद मां पार्वती को पहली बार ससुराल से विदा कराने के लिए गौना बारात ले जाते हैं. अब उनकी बारात होती है तो आप जानते ही हैं कि उसमें बाराती कैसे होंगे. ढोल नगाड़े के साथ हवा में उड़ता गुलाल और अबीर इस तरह से बाबा भोलेनाथ की बारात निकलती है. यह एकादशी का दिन होता है इसके धार्मिक महत्व के कारण इसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है.

काशी में विश्वनाथ गली से डमरुओं और शंखनाद के बीच झूमते हुए भक्त चांदी की पालकी पर भोलेनाथ की बारात निकालते हैं. भोर से ही बारात का उल्लास दिखने लगता है पूरी भारतीय परम्परा के साथ भगवान भोलेनाथ का गौना होता है. वेद मंत्रो के बीच वर-वधू का पंचामृत स्नान होता है और फिर श्रृंगार होता है. विधिवत तरीके से गौना विधि पूरी हो जाती है.

माना जाता है कि गौना बारात में भोलेनाथ के भक्तगण होते हैं इसलिए बाकी गण उसमें शामिल नहीं हो पाते तो भगवान भोलेनाथ अगले दिन मणिकर्णिका घाट जाते हैं जहां उनके सभी औघड़ भक्त होते हैं, और वहां पर भगवान अपने औघड़ भक्तों के साथ राख की होली खेलते हैं. भगवान मणिकर्णिका घाट पर स्नान करते हैं और फिर चिता की राख अपने पूरे बदन पर मलते हैं. उनके साथ उनके सभी भूत प्रेत औघड़ भक्त राख की होली खेलते हैं.

इसी होली पर मशहूर एक फगुआ गीत पद्मश्री छन्नूलाल मिश्र का है, जिसके बोल हैं ‘खेलें मसाने में होली दिगंबर, खेलें मसाने में होली’. मसान यानी कि श्मसान में बाबा भोलेनाथ होली खेलते हैं. होली को शायद इससे अच्छे से और कोई व्यक्त नहीं कर सकता.

सुनिए पंडित छन्नूलाल मिश्र की गायकी-

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