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निर्भया के दोषी अक्षय के फांसी के बाद की पहली तस्वीर, चेहरा पड गया था सफेद, बेटे ने दी मुखाग्नि

बीते 20 मार्च को सुबह 5:30 बजे निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटका दिया गया। इनमें से एक अक्षय ठाकुर का शव मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार औरंगाबाद स्थित उसके गांव में पहुंचा, जहां उसके 9 साल के बेटे ने उसका अंतिम संस्कार किया। अक्षय ठाकुर की पत्नी और उसका भाई शव लेकर गांव पहुंचे थे, जहां उसका अंतिम संस्कार किया गया। अक्षय को फांसी दिए जाने के बाद उसके गांव के कई घरों में बताया जाता है कि खाना भी नहीं बनाया गया।

अक्षय ठाकुर 2011 में गया था दिल्ली

पढ़ाई छोड़कर 2011 में अक्षय दिल्ली चला गया था और वहां उसकी मुलाकात राम सिंह से हुई थी। उसके परिवार में उसकी पत्नी और एक बच्चा है। फांसी दिए जाने से पहले कोर्ट के बाहर उसकी पत्नी बेहोश हो गई थी। फांसी से पहले एक दूसरे से चारों मिलना चाहते थे, मगर जेल प्रशासन ने इसकी इजाजत नहीं दी।

अक्षय ठाकुर की आखिरी इच्छा

आखरी इच्छा पूछे जाने पर अक्षय और पवन ने चुप्पी साध ली थी, जबकि विनय ने अंगदान की इच्छा जताकर लिखकर भी दे दिया। वहीं मुकेश ने अपनी बनाई एक पेंटिंग जेल के अधिकारियों को रखने के लिए कहा और उनसे कहा कि परिवार को उसका शव सौंपते समय साथ में हनुमान चालीसा और एक फोटो भी उन्हें दी जाए। फांसी दिए जाने के दिन तिहाड़ जेल के बाहर भीड़ इकट्ठा होकर न्यायपालिका को धन्यवाद बोल रही थी।

छठा दोषी निर्भया का नाबालिग था और वारदात के समय वह 17 साल का था। नाबालिग के तौर पर मुकदमा चलाए जाने के बाद 31 अगस्त, 2013 को बलात्कार और हत्या का दोषी मानते हुए 3 वर्षों के लिए उसे सुधार गृह में भेजा गया था, जिसके बाद उसे आजाद कर दिया गया।

दोषियों के बारे में

बस क्लीनर के तौर पर मुकेश काम करता था और गैंगरेप के बाद निर्भया और उसके दोस्तों को इसने बुरी तरह से पीटा था। फल बेचने का काम पवन करता था और वारदात के वक्त वह बस में था। जेल में वह ग्रेजुएशन भी कर रहा था। मुख्य आरोपी राम सिंह ने 2013 में जेल में आत्महत्या कर ली थी। वह बस ड्राइवर के तौर पर काम करता था। जिम ट्रेनर के तौर पर विनय काम करता था और घटना के दिन वह बस को चला रहा था। पिछले साल उसने जेल में सुसाइड की भी कोशिश की थी, पर बच गया था।

क्या हुआ उस रात?

दिल्ली के मुनिरका बस स्टॉप पर 16-17 दिसंबर, 2013 की रात को पैरामेडिकल की छात्रा अपने दोस्त के साथ बस में चढ़ी थी, जहां बस ड्राइवर को मिलाकर 6 लोग बस में मौजूद थे। छात्रा के दोस्त की किसी बात पर इनसे लड़ाई हुई जिसके बाद सभी 6 लोगों ने मिलकर छात्रा का गैंगरेप किया और लोहे की रॉड से बड़ी क्रूरता दिखाई। छात्रा के दोस्त को इन्होंने बुरी तरह से पीटा। दोनों को इन्होंने महिपालपुर में सड़क पर फेंक दिया। सफदरजंग अस्पताल में छात्रा का इलाज न हो सका तो सिंगापुर में इलाज के लिए भेजा गया, पर 29 दिसंबर, 2013 को माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में यहां छात्रा ने अंतिम सांस ली।

खारिज हुईं याचिकाएं

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एक दिन पहले फांसी के इन दोषियों की छह याचिकाएं खारिज हुईं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पवन और अक्षय की दूसरी दया याचिका ठुकराई। फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचने पर अक्षय और उसके बाद मुकेश की भी याचिका खारिज हुई। पवन की क्यूरेटिव पिटिशन सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो गई। दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट के बाद हाईकोर्ट से भी दोषियों को झटका लगा। आखिरकार दोषी फांसी पर लटका दिए गए।

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