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गणपति अथर्वशीर्ष (Ganpati Atharvashirsha) का पाठ पढ़ने से दूर हो जाते हैं जीवन के सारे कष्ट

Ganpati Atharvashirsha: शस्त्रों में भगवान गणेश जी को प्रथम देवता का स्थान दिया गया है। इसलिए किसी भी प्रकार की पूजा करते हुए सबसे पहले गणेश जी का नाम लिया जाता है और इनका नाम लेने के बाद ही पूजा का आरंभ किया जाता है। पूजा के अलावा किसी भी तरह का शुभ कार्य जैसे, विवाह, ग्रह प्रवेश और इत्यादि को शुरू करने से पहले भी भगवान गणेश जी का नाम लिया जाता है और इनका नाम लेने के बाद ही इन शुभ कार्य को आरंभ किए जाते हैं।

Ganpati Atharvashirsha

भगवान गणेश को यश, बुद्धि और ज्ञान का देवता माना जाता है और इनकी पूजा करने से जीवन में कभी भी कोई विपत्ति नहीं आती है। भगवान गणेश से जुड़े मंत्रों का जाप करना उत्तम माना जाता है और इनकी पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में भगवान गणेश जी के कई सारे मंत्रों और पाठों का जिक्र किया गया है। शास्त्रों (Ganpati Atharvashirsha) में लिखे गए ये मंत्र और पाठ बेहद ही चमत्कारी माने जाते हैं और इनको पढ़ने से भगवान गणेश प्रसन्न हो जाते हैं।

Ganpati Atharvashirsha

श्री गणपति अथर्वशीर्ष (Ganpati Atharvashirsha) गणेश जी का स्त्रोत है और इस स्त्रोत का पाठ करने से उच्च फल की प्राप्ति होती है। जीवन में मात्रा एक बार इस स्त्रोत का पाठ करने से आपकी सभी परेशानियां खत्म हो जाती हैं। श्री गणपति अथर्वशीर्ष (Ganpati Atharvashirsha) स्त्रोत संस्कृत भाषा में लिखा गया है और ये स्त्रोत पढ़ने से श्री गणपति जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

श्री गणपति अथर्वशीर्ष (Ganpati Atharvashirsha) स्त्रोत पढ़ने से मिलने वाले लाभ

  • अगर किसी व्यक्ति के जीवन में बुरा वक्त चल रहा है तो वो रोज भगवान गणेश जी की पूजा करे और श्री गणपति अथर्वशीर्ष पाठ पढ़े। गणेश जी का नाम लेने से और यह पाठ पढ़ने से बुरा वक्त जल्द ही खत्म हो जाता है।
  • गणेश जी की पूजा करने से दोषों से भी मुक्ति मिल जाती है और रोग भी दूर हो जाते हैं।
  • किसी भी कार्य में बाधा आने पर आप गणेश जी के इस स्त्रोत्र का पाठ कर लें। यह स्त्रोत्र पढ़ने से कार्य सफल होने में आ रही सभी बाधाएं तुरंत दूर हो जाएगा।
  • अगर आपकी कोई इच्छा है जो कि पूर्ण नहीं हो रही है तो आप श्री गणपति अथर्वशीर्ष (Ganpati Atharvashirsha) पाठ पढ़ लें। यह पाठ पढ़ने से आपकी इच्छा जल्द ही पूर्ण हो जाएगी।
  • किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले आप श्री गणपति अथर्वशीर्ष (Ganpati Atharvashirsha) स्त्रोत्र का पाठ करवा लें। इस पाठ को करवाने से शुभ कार्य अच्छे से हो जाएगा और उसमें कोई बाधा भी नहीं आएगी।

श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्त्रोत्र को पढ़ते समय ध्यान रखें

  • यह बेहद ही महत्वपूर्ण होता है कि इस स्त्रोत्र के शब्दों को सही से पढ़ा जाए। इसलिए श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्त्रोत्र (Ganpati Atharvashirsha) को पढ़ने से पहले आप इस स्त्रोत्र में लिखे शब्दों का अच्छे से उच्चारण करना सीख लें। क्योंकि गलत उच्चारण करने से इस स्त्रोत को पढ़ने का लाभ नहीं मिलता है।
  • श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्त्रोत्र (Ganpati Atharvashirsha) को पढ़ते समय आप अपने सामने गणेश जी की मूर्ति जरूर रखें और इस मूर्ति के सामने एक दीपक जला दें। दीपक जलाने के बाद गणेश जी को भोग लगा दें और यह पाठ पढ़ने का संकल्प लें। इसके बाद आप इस पाठ को पढ़ना शुरू कर दें।
  • इस पाठ को पढ़ने के बाद गणेश जी की आरती करें। आरती होने के बाद गणेश जी को लगाया गया भोग लोगों में प्रसाद के रूप में बांट दें।
  • आप चाहें तो इस पाठ को पंडित से भी पढ़वा सकते हैं।
  • यह पाठ आप बुधवार के दिन ही पढ़ें। क्योंकि यह दिन गणेश जी से जुड़ा होता है।

श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्त्रोत

श्री गणपति अथर्वशीर्ष (Ganpati Atharvashirsha)
मंगलकारी आहे श्री गणपति अथर्वशीर्ष
गणपति अथर्वशीर्ष
ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽ सि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।

ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।

अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो माँ पाहि-पाहि समंतात्।।3।।

त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽषि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माषि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽषि।।4।।

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारिकाकूपदानि।।5।।

त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।

गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।
नाद: संधानं। सँ हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।

एकदंताय विद्‍महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।

एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।

नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।

एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।
स सर्वत: सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।

इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।

अनेन गणपतिमभिषिंचति
स वाग्मी भवति
चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति
स विद्यावान भवति।
इत्यथर्वणवाक्यं।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्
न बिभेति कदाचनेति।।14।।

यो दूर्वांकुरैंर्यजति
स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति
स मेधावान भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति
स वाञ्छित फलमवाप्रोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।
महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।।16।।

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