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सड़क किनारे गुमटी लगा ट्रक सुधारने वाले की बेटी बनी डॉक्टर, जानिए उसकी सफलता का राज़

बेटियां घर की लक्ष्मी होती हैं. बस उन्हें बेटो जैसी पढ़ने लिखने की पूर्ण आज़ादी और मान सम्मान मिलना चाहिए. हमने अभी तक कई ऐसे उदाहरण देखे हैं जहाँ बेटी ने माता पिता का सीना गर्व से ऊँचा किया हैं. वे भी बेटो की बराबरी कर सकती हैं. इस बात में कोई भी शक नहीं हैं. बल्कि कई मामलो में तो वो बेटो को भी पीछे छोड़ देती हैं. एक बेटी घर के हालातों को अच्छे से समझती हैं और अपने माता पिता के प्रति अपने कर्तव्य का भी लगन से पालन करती हैं. आज हम आपको एक ऐसी ही बेटी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने अपनी मेहनत और लगन से गरीब पिता का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया.

इनसे मिलिए. ये हैं अर्जुमंद जहां. रायबरेली की रहने वाली अर्जुमंद के पिता अबू सईद (52) पेशे से एक ट्रक मिस्त्री हैं. शहर के किला बाजार स्थित सैयद राजन मुहल्ला में रहने वाले अबू की शहर के सिविल लाइंस स्थित प्रयागराज-लखनऊ राजमार्ग के किनारे एक छोटी सी गुमटी हैं. इसमें बैठ ये आने जाने वाले ट्रक के रिपेयर का काम करते हैं. उनका एक बेटा भी हैं जिसका नाम आमिर सुहैल हैं. अर्जुमंद के पिता की आर्थिक स्थिति कोई ख़ास नहीं हैं. उनका परिवार पिता की इस छोटी सी गुमटी से होने वाली कमाई पर ही निर्भर रहता हैं. हालाँकि ये सभी बहुत जल्दी बदल गया जब उनकी बेटी भी पिता की तरह रिपेयरिंग का काम करने लगी. बस फर्क ये हैं कि पिता ट्रक की रिपेयरिंग करते हैं तो उनकी बेटी शरीर की रिपेयरिंग करती हैं, अर्थात वो अब डॉक्टर बन चुकी हैं.

दरअसल अर्जुमंद बचपन से ही पढ़ने में बहुत अच्छी थी. उसके पिता अबू सईद ने भी अपने बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं किया. अपने घर की स्थिति ठीक ना होने के बावजूद बेटी को अच्छे से पढ़ाया लिखाया. अबू और उनकी बेगम यानी अर्जुमंद की माँ शमीम जहां ने भी इस बात में पूरा सहयोग दिया. माता पिता का एक ही सपना था कि उनी बेटी पढ़ लिख कर डॉक्टर बन जाए. बेटी ने भी माँ बाप के इस सपने को पूरा करने में जी जान लगा दी.

अपनी प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के बाद अर्जुमंद ने एमबीबीएस के कॉलेज में दाखिला लेने के लिए कोचिंग क्लास ज्वाइन की. पहली कोशिश में अर्जुमंद की रैंक कमजोर थी, हालाँकि उसने हिम्मत नहीं हारी और दोबारा कोशिश की. आखिर उसकी मेहनत रंग लाइ और उसे झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल गया. यहाँ से एमबीबीएस करने के बाद एमडी करना चाहा जिसके लिए किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ मिला. यहाँ तो पढ़ाई में वे गोल्डमेडलिस्ट भी बन गई. इसके बाद रायबरेली में एम्स नियुक्तियां निकली, ऐसे में अर्जुमंद ने इसमें अप्लाई किया और उन्हें रेडियो डाइग्नोसिस की जॉब मिल गई.

बता दे कि अर्जुमंद के घर की हालात इतनी खराब थी कि उसमे टीवी तक नहीं था. बाद में अर्जुमंद ने जब कॉलेज में हाईस्कूल टॉप किया था तो गिफ्ट में उन्हें टीवी मिल गया था. उनके घर में पहला मोबाइल भी तब आया जब बेटी कोचिंग के लिए कानपूर गई. ऐसे में पिता ने बेटी को जैसे तैसे मोबाइल दिलाया ताकि उससे बातचीत हो सके. अर्जुमंद जब भी सफलता का कोई झंडा गाड़ती थी तो उसके पिता को भी बुलाया जाता था. ऐसे में इस सम्मान और बेटी की उपलब्धियों को देख उनकी आँखों से आंसू निकल जाया करते थे.

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