बुरे समय में दुखी नहीं होना चाहिए और सुखों के पलों में हमें अधिक उल्लसित नहीं होना चाहिए
महाभारत ग्रंथ में कई ऐसी नीतियों का जिक्र किया गया है जिनकी मदद से इंसान अपने जीवन में सुख के साथ रहे सकता है। जीवन में कई बार बुरा समय आता है तो कई बार अच्छा समय। इन दोनों समय के दौरान इंसान को किस तरह से व्यवहार करना चाहिए। इसके बारे में महाभारत के आदिपर्व में एक श्लोक लिखा गया है। इस श्लोक के जरिए लोगों को ये समझाने की कोशिश की गई है कि अगर हम शांति से काम लें तो हमारा जीवन तनाव मुक्त और खुशियों के साथ बीत सकता है।
महाभारत के आदिपर्व में लिखा गया श्लोक
दु:खैर्न तप्येन्न सुखै: प्रह्रष्येत् समेन वर्तेत सदैव धीर:।
दिष्टं बलीय इति मन्यमानो न संज्वरेन्नापि ह्रष्येत् कथंचित्।।
इस श्लोक के जरिए ये कहा गया है कि हमें बुरे समय में दुखी नहीं होना चाहिए। इसी तरह से सुखों के पलों में हमें अधिक उल्लसित नहीं होना चाहिए। सुख हो या दुख इंसान को हमेशा शांत ही रहना चाहिए। इस बात को समझाने से जुड़ी एक प्रचलित लोक कथा भी है और ये प्रचलित लोक कथा इस प्रकार है।
एक कथा के अनुसार एक आश्रम में एक गुरु अपने शिष्यों के साथ रहता था। ये लोग भिक्षा मांगकर ही अपना गुजारा किया करते थे। एक दिन आश्रम में एक व्यक्ति आया और इस व्यक्ति ने अपनी गाय आश्रम में छोड़ दी। गाय को देख सभी शिष्य खुश हो गए और खुश होकर उन्होंने अपने गुरु से कहा कि, गुरु जी एक व्यक्ति हमारे आश्रम में एक गाय छोड़ गया है। अब हम लोगों को रोज इस गाय का दूध पीने को मिल सकें। अपने शिष्य की बात सुनकर गुरु ने कहा, ये तो अच्छी बात है।
एक महीने बाद इस गाय का मालिक फिर से आया और अपने साथ गाय को वापस ले गया। गाय के जाने से सभी शिष्य दुखी हो गए और उन्होंने अपने गुरु जी से कहा, गुरु जी गाय चले गई। अब हम लोगों को ताजा दूध पीने को नहीं मिल पाएगा। अपने शिष्यों की बात सुनकर गुरु ने हंसते हुए कहा चलो अच्छा है गाय को वो ले गया। गाय का गोबर और उसकी देखभाल करने से तुम लोग बच गए। गुरु जी की ये बात सुनकर एक शिष्य ने कहा, आपको इस बात से दुख नहीं है कि गाय चले गई है और हमें अब ताजा दूध नहीं मिलेगा।
गुरु ने कहा जब गाय आई थी तुम लोग कुछ ज्यादा ही खुश हो गए थे और जब गाय वापस चले गई है तब तुम कुछ ज्यादा ही दुखी हो रहे हो। जीवन में जब भी कोई सुख का पल आए तो हमें अधिक खुश नहीं होना चाहिए। इसी तरह से जब जीवन में दुख आए तब हमें अधिक दुखी नहीं होना चाहिए। यही सुखी जीवन जीने का मूल मंत्र है। अपने गुरु जी की बात सुनकर शिष्यों को समझ आ गया कि चाहे वक्त अच्छा हो या बुरा इंसान को हमेशा शांत ही रहना चाहिए।