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भाई की जान बचाने के लिए बहन ने किया लिवर डोनेट, कहा-गोद में खिलाया है ऐसे कैसे कुछ होने देती

कहते हैं दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता भाई और बहन का होता है। एक मां की दो औलादें होने के नाते यही हमारे सबसे अच्छे दोस्त बन जाते हैं और फिर जब बात जान देने की आती है तो दोनों डट जाते हैं। कुछ ऐसा ही प्यार देखने को मिला मध्यप्रदेश के एक शहर में, जहां पर एक बहन ने अपने छोटे भाई केलिए प्यार की मिसाल कायम की। भाई की जान बचाने के लिए बहन ने किया लिवर डोनेट, इसके बाद बताया कि ऐसा बिना सोचे समझे कैसे कर दिया।

भाई की जान बचाने के लिए बहन ने किया लिवर डोनेट

मध्य प्रदेश के भोपाल में जाह्नवी ने एक बहन के फर्ज को बखूबी निभाया और रक्षाबंधन से ठीक एक महीने पहले अपने भाई को नई जिंदगी का तोहफा दे डाला। भोपाल के आकृति इको सिटी निवासी जाह्नवी दुबे (41) ने अपने 26 साल के भाई जयेंद्र पाठक को गंभीर बीमारी से बचाया है। जयेंद्र पिछले करीब 10 दिनों से बुखार में तप रहा था और लोग इसे अन्य बुखार समझ रहे थे और डॉक्टर्स भी उसकी बीमारी पकड़ नहीं पा रहे थे। अब उनके बचने की संभावना बिल्कुल नहीं रही तो डॉक्टर्स ने बताया कि उसका 90 प्रतिशत लिवर डैमेज हो चुका है और उनका बचना नामुमकिन है। यह बात जाह्नवी और उनकी पति प्रवीण और बेटे प्रचीश को पता चली तो सभी घबरा गए। डॉक्टर्स ने बताया कि 10 फीसदी ही इन्हें बचाया जा सकता है फिर जाह्नवी को ये 10 प्रतिशत ही सुनाई दिया और वो अपने भाई को दिल्ली ले आई। यहां डॉक्टर्स ने कहा कि अगर उनका लिवर ट्रांसप्लांट करा दिया जाए तो जान बच सकती है।

प्रवीण ने बताया, ”14 जुलाई को मैं जाह्नवी औऱ मेरा जबलपुर के लिए रवाना हुए। जाह्नवी ने रास्ते भर एक ही बात कही कि मैंने उसे गोद में खिलाया है वो मुझसे 15 साल छोटा है और उसे किसी कीमत पर जाने नहीं दूंगी। मैं उसे लिवर दूंगी और हम जब जबलपुर पहुंचे तो दोपहर करीब 12.30 पर एयर एंबुलेंस से हम लोग दिल्ली रवाना हुए।” वो भाई का लिवर ट्रांसप्लांट कराना चाहती थी प्रवीण ने आगे बताया कि 15 जुलाई को सुबह जाह्नवी और उनके भाई का ऑपरेशन होना था, जबलपुर से कोई फ्लाइट नहीं थी तो मैं बेटे के साथ ट्रेन से दिल्ली रवाना हुआ।

रिस्क लेकर बचा ली भाई की जान

जाह्नवी के पति ने आगे बताया, ”डॉक्टर्स को जाह्नवी के ऑपरेशन की प्रक्रिया सुरु करने से पहले पति की सहमति चाहिए थी। अस्पताल के सीनियर डॉक्टर्स ने मुझे फोन किया और बताया कि इस ऑपरेशन में मेरी पत्नी की जान भी जा सकती है क्या मैं इसके लिए तैयार हूं ? मैंने कहा हां मैं तैयारी हूं। फिर डॉर्टर्स ने बताया कि इस सर्जरी के 13 तरह के खतरनाक रिस्क हैं डॉक्टर्स मुझे सारी जानकारी देने लगे। मैंने इंकार कर दिया और कहा मुझे ईश्वर पर पूरा भरोसा है आप ऑपरेशन कीजिए। ऐसे में जाह्नवी ने ओटी से ही एक डॉक्टर के फोन से मुझे फोन किया। वो बोली कि वो मुझसे और बेटे से मिलना चाहती थी लेकिन ट्रेन लेट हो गई। उसने मुझसे बात की और ऑपरेशन शुरु होने के एक घंटे बाद मैं वहां पहुंचा। 13 घंटे अस्पताल की लॉबी में बैठा रहा और सोमवार रात करीब 9.30 बजे ऑपरेशन खत्म हुआ।”

जाह्नवी के पति ने आगे बताया, ”मैंने जाह्नवी को दूर से देखा लेकिन बच्चे अंदर जाने नहीं दिया। प्राचीश भी डरा था वह मंगलवार को मां से मिल पाया। गुरुवार को प्राचीश का पेपर था इसलिए उसे बुधवार को फ्लाइट से भोपाल भेज दिया और पेपर दिलाने के बाद हम शनिवार को फिर दिल्ली आ गए। जयेंद्र और जाह्नवी दोनों खतरे से बाहर हैं और 15 दिन बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। मेरी शादी को 16 साल हो गए हैं और जब जाह्नवी ने लिवर डोनेट की बात कही तो मैं डर गया था लेकिन मैंने उसके निर्णय का सम्मान किया और आज उन दोनों को ठीक देखकर अच्छा लग रहा है। मुझे अपनी पत्ती की जिंदादिली पर गर्व है कि वो अपने भाई को बेटे की तरह प्यार करती है।”

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