अध्यात्म

जानें वट पूर्णिमा के व्रत की कथा और पूजा की विधि

वट पूर्णिमा का व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन आता है और इस दिन महिलाएं वट के वृक्ष की पूजा करती हैं और व्रत रखती हैं। वट पूर्णिमा के व्रत को सावित्री व्रत के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो महिला ये व्रत रखती हैं उन महिलाओं के पति की आयु बढ़ जाती है और संतान की प्राप्ति होती है। इस साल ये व्रत जून महीने की 16 तारीख को आ रहा है।

वट सावित्री के व्रत से जुड़ी कथा

वट पूर्णिमा का व्रत विवाहित औरतों द्वारा रखा जाता है और इस व्रत से एक कथा भी जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मद्र देश के राजा अश्वपति की कोई भी संतान नहीं थी और संतान प्राप्ति के लिए राजा ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर एक यज्ञ किया। इस यज्ञ के तहत राजा ने हर दिन एक लाख आहुतियां अग्नि में डालीं। ये यज्ञ 18 दिनों तक चला और इस यज्ञ के आखिरी दिन मां सावित्री देवी ने प्रकट होकर राजा को कन्या प्राप्ति का आर्शीवाद दिया। जिसके बाद सावित्री देवी ने स्वयं राजा के घर जन्म लिया और राजा ने अपनी बेटी का नाम सावित्री रखा दिया। जब सावित्री बड़ी हुई तो उन्होंने साल्व देश के राजा द्युमत्सेन के बेटे सत्यवान से विवाह करने की इच्छा जाहिर की। लेकिन सत्यवान से उनका राज्य छीन लिया गया था और वो गरीब हो चुके थे। हालांकि सत्यवान ज्ञानी थे और इसी वजह से सावित्री के पिता इन दोनों की शादी के लिए राजी हो गए। वहीं जब सावित्री और सत्यवान के विवाह की खबर नारद मुनि को लगी तो नारद मुनि ने सावित्री को ये विवाह ना करने की सलाह दी और सावित्री से कहा कि अगर वो सत्यवान से विवाह कर लेते हैं, तो शादी के कुछ समय बाद ही उनके पति की मृत्यु हो जाएगी। सावित्री सत्यवान से बेहद ही प्यार किया करती थी। इसलिए उन्होंने सत्यवान से शादी करने के अपने फैसले को नहीं बदला और सत्यवान से विवाह कर लिया। विवाह करने के बाद सावित्री ने घोर तपस्या की ताकि वो अपने पति की रक्षा कर सकें।

वहीं एक दिन सत्यवान और सावित्री जंगल में लकड़ी काटने गए और उस दौरान सत्यवान की तबीयत खराब हो गई और वो बेहोश हो गए। सत्यवान को बेहोश देखकर सावित्री व्याकुल हो गई।

तभी दक्षिण दिशा से यमराज आए और वो सत्यवान के प्राण लेने लगे। यमराज को सत्यवान के प्राण ले जाते देख सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी। यमराज ने सावित्री को काफी समझाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं मानी। सावित्री की निष्ठा देखकर यमराज ने सत्यवान के प्राण वापस कर दिए।

क्या किया जाता है  वट पूर्णिमा के व्रत में

वट पूर्णिमा के व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है और निर्जला उपवास रखा जाता है। इस दिन महिलाएं सुबह उठकर स्नान करती है और फिर वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती है। पूजा करते हुए सबसे पहले पेड़ पर जल अर्पित किया जाता है, फिर पेड़ के पास बैठकर सावित्री और सत्यवान की कथा पढ़ी जाती है। कथा पूरी पढ़ने के बाद पेड़ की परिक्रमा की जाती है और लाल रंग का धागा पेड़ पर बाधा जाता है।

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