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धर्म से पहले चुनी इंसानियत, रमजान में ‘रोजा’ तोड़ मुस्लिम युवक ने दिया हिंदू को रक्तदान

इस देश में धर्म को लेकर बहुत राजनीति होती हैं. कई बार इन्हें आपस में भड़का कर एक दुसरे के खिलाफ नफरत पैदा करने की कोशिश भी की जाती हैं. लेकिन ऐसा नहीं हैं कि यहाँ हर हिंदू मुस्लिम आपस में लड़ाई झगड़ा करना चाहता हैं. बल्कि हर कोई यही चाहता हैं कि सभी शान्ति के साथ इस समाज में मिलजुल कर रहे. इस सोच की मिसाल के रूप में कई ऐसे किस्से भी देखने और सुनने को मिल जाते हैं जिनमे हिंदू मुस्लिम एकता और भाईचारे की भावना दिखाई देती हैं. इस दुनियां में कुछ लोग ऐसे भी मौजूद हैं जो धर्म के पहले इंसानियत को प्राथमिकता देते हैं. ऐसा ही एक ताजा उदाहरण असम के मंगलडोई में भी देखने को मिला हैं.

जैसा कि आप सभी जानते हैं इस दौरान हमारे मुस्लिम भाई रमजान का त्यौहार मना रहे हैं. 5 मई से 4 जून तक चलने वाले इस पर्व में मुस्लीम व्यक्ति रोजा (उपवास) रखते हैं. हर मुस्लिम के लिए रमजान के माह में रखा रोज़ा बहुत ख़ास होता हैं. वो इसे हर हाल में पूर्ण करने की कोशिश करता हैं. ऐसा ही रोज़ा 26 साल के पनौल्लाह अहमद ने भी रखा था. लेकिन उसने अपने इस रोजे को तब तोड़ दिया जब एक व्यक्ति को जिंदा रहने के लिए रक्त की जरूरत थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अहमद, तपश भगवती का रूममेट हैं. तापस ‘टीम ह्यूमैनिटी’ नाम की एक आर्गेनाईजेशन से जुड़ा हुआ हैं. ये देशभर में ब्लड डोनर को एक दुसरे से जोड़ कर रखती हैं. जब भी किसी व्यक्ति को रक्त की जरूरत होती हैं तो इसके मेंबर उस विशेष ब्लड ग्रुप का डोनर मरीज के लिए ढूंढ निकालते हैं. ऐसे में धेमाजी जिले के रहने वाले रंजन गोगोई को ओ पॉजिटिव ब्लड की सख्त जरूरत थी. हालाँकि लाख कोशिशो के बावजूद उन्हें ये ब्लड ग्रुप नहीं मिल पा रहा था.

तापस भगवती ने बताया कि “5 तारीख को मेरे पास ब्लड रिक्वेस्ट का कॉल आया था. हालाँकि अगले दिन की सुबह तक कई लोगो से संपर्क करने के बावजूद मुझे ओ पॉजिटिव ब्लड डोनर नहीं मिल पाया था. मैंने अहमद से इसलिए नहीं पूछा था क्योंकि उसका रोजा चल रहा था

हालाँकि इसके कुछ दी देर बाद अहमद खुद तपश के पास आया और उसने ब्लड डोनेट करने का ऑफर दिया. इसके पहले उसने अपनी कम्युनिटी के कुछ लोगो से सलाह विमर्श भी किया. उन्होंने कहा कि तुम ब्लड तो डोनेट कर सकते हो लेकिन यदि तुमने ऐसा खाली पेट किया तो तुम बीमार पड़ जाओगे. इसके बाद अहमद ने अपना रोज़ा तोड़ने का फैसला ले लिया.

इस बारे में अहमद ने कहा कि – “रोजा एक धार्मिक विशवास हैं जिसे हम सभी मानते हैं. मैंने इसे तोड़ने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि मुझे इस बात का अहसास हुआ कि मैं रोजा तो अगले दिन भी रख सकता हूँ लेकिन आज यदि मैंने उस मरीज को ब्लड डोनेट नहीं किया तो शायद उसे जिंदा रहने का दूसरा चांस नहीं मिलेगा.

जरा सोचिए यदि हम सभी धर्म के पहले इंसानियत को प्राथमिकता देने लगे तो ये दुनियां स्वर्ग बन जाएगी. और वैसे भी हर धर्म में जरूरतमंदों की मदद करना एक अच्छी बात बतलाई गई हैं.

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