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सेनापति और संत की कहानी: महानता ऊंचे कद से नहीं, बल्कि अच्छे ज्ञान से आती है

एक लोक कथा के अनुसार मगध नामक राज्य में एक बार बहुत बड़े संत आते हैं और इस राज्य के राजा अपने सेनापति को आज्ञा देते हैं कि वो सम्मान के साथ संत को उनके महल में लाए और संत को लाने के लिए उनका रथ लेकर जाए हैं। राजा की आज्ञा मिलने के बाद सेनापति राजा के विशाल रथ को लेकर संत को लाने के लिए निकल पड़ता हैं। कुछ ही दूरी जाने के बाद सेनापति अपने राज्य के लोगों से पता करता है कि संत किस जगह पर रुके हुए हैं। राज्य के लोग उनको बताते हैं कि संत राज्य के सबसे बड़े पीपले के पेड़ के नीचे बैठे हुए हैं। जिसके बाद सेनापति राजा के रथ को लेकर पीपल के पेड़ की और प्रस्थान करता है। पीपल के पेड़ के पास संत को देख सेनापति उनसे मिलते हैं और उन्हें राजा का संदेश देते हुए कहते हैं  कि आपको राजा ने महल में बुलाया है। मैं आपको लेने के लिए आया हूं। सेनापति की बात सुनकर संत उनके साथ चलने को तैयार हो जाते हैं।

सेनापति संत को कहता है कि आप इस रथ पर चढ़ जाएं। लेकिन संत का कद काफी छोटा होता है और उन्हें रथ पर चढ़ने में काफी दिक्कत होने लगती हैं। जिसके चलते सेनापति संत को गोदी में उठाकर रथ पर चढ़ा देते हैं। रास्ते में सेनापति को संत के छोटे से कद को देखकर हंसी आने लगती है। सेनापति को हंसता देख संत समझ जाता है कि ये उनके कद को देखकर हंस रहा है। संत सेनापति से पूछते हैं कि तुम इतना क्यों हंस रहे हैं? सेनापति हंसते हुए कहता है कि आपका कद बेहद ही छोटा है और हमारे राजा का कद काफी बड़ा है। जब आप उनसे मिलेंगे तो मैं ये सोच रहा हूं कि आपको हम किसी चीज के ऊपर खड़ा करें ताकि आप राजा की बराबरी कर सकें। सेनापति की ये बात सुनने के बाद संत ने उन्हें कुछ नहीं कहा और चुप चाप रथ पर बैठे रहे। वहीं जैसे ही संत महल में पहुंचे तो राजा उनको देख दौड़े हुआ उनके पास आए और उनके चरणों में आकर बैठ गए। राजा को संत के चरणों में बैठा देख सेनापति हैरान हो गया। राजा ने संत की खूब अच्छे से सेवा की और फिर सेनापति को कहा कि वो संत को छोड़ आएं। राजा की आज्ञा का पालन करते हुए सेनापति संत को वापस से पीपल के पेड़ के पास छोड़ने के लिए निकल पड़ते हैं। रास्ते में संत सेनापति से कहता है कि मैं राजा की किसी तरह से बराबरी कर सकूंगा तुम ये सोच कर हंस रहे थे। लेकिन देखों तुम्हें कुछ करना ही नहीं पड़ा और राजा और मैं एक ही बराबरी पर आकर बात करने लगे। संत की ये बात सुनकर सेनापति को अपनी गलती है एहसास हुआ और वो समझ गया कि संत का भले ही कद क्यों ना छोटा हो लेकिन उसका औदा काफी बड़ा है और इसी औदे के कारण राजा संत के पैरों में आकर बैठ गए थे।

कहानी से मिली शिक्षा

इंसान को कभी भी कद और रंग-रूप के आधार पर परखना नहीं चाहिए। क्योंकि कई बार यहीं लोग हमसे कई बड़े ज्ञानी होते हैं। इस कथा में जिस तरह से सेनापति ने संत के कद को देखकर उनके ज्ञान के बल को अनदेखा किया उसी तरह से हम लोग भी कई बार अन्य लोगों के कद, रंग-रूप, रहन सहन को देखकर उनके ज्ञान और बल का अनदेखा कर देते हैं।

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