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जितनी सिद्दत से पढ़ता हैं नमाज, उतनी ही लगन से करता हैं रामयाण पाठ

ये बात किसी से छिपी नहीं हैं कि हमारे देश में कई नेता धर्म की राजनीति करते हैं. अपना वोट बैंक बढ़ाने की लालसा से ये लोग हिंदू और मुस्लिम में फूट डालने संबंधित भाषण देते हैं. वहीं समाज में कुछ उपद्रवी तत्व भी ऐसे होते हैं जो धर्म के नाम पर तनाव की स्थिति पैदा करने की कोशिश करते हैं. लेकिन हर किसी की सोच ऐसी नहीं होती हैं. इस देश में कुछ भले इंसान भी हैं जो सभी धर्मों को सामान दृष्टि से देखते और उनका सम्मान भी करते हैं. आज हम आपको दो ऐसे ही व्यक्तियों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने अली और बजरंगबली के बीच में कभी कोई भेदभाव नहीं किया.

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के मिर्जापुर गांव में रहने वाली दो शख्सियतें बाबू खां व अबरार, के बारे में जान आपका दिल ख़ुशी से झूम उठेगा. ये दोनों मस्जिद में नमाज़ भी अदा करते हैं और भोलेनाथ के मंदिर में पूजा भी करते हैं. वे मुस्लिम धर्म के कुरान की आयतें जितनी सिद्दत और लगन के साथ पढ़ते हैं, उन्हें ही उत्साह और साफ़ मन से हिंदू धर्म की रामचरित मानस का पाठ भी करते हैं. इतना ही नहीं शिवपुराण के श्लोक जब ये पढ़ना शुरू करते हैं तो सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. इनका मानना हैं कि सबका इश्वर एक ही हैं. बस उसके रूप अलग हैं. जब एक ही इश्वर ने हम सभी इंसानों की रचना की हैं तो फिर हम इंसान आपस में भेदभाव भला क्यों करे? बाबू खां व अबरार अपने क्षेत्र में सांप्रदायिक सौहार्द की लहर से सबका दिल जित रहे हैं.

खुद के पैसो से बनवाया मंदिर

बाबू खां ने 2013 में अपने स्वयं के पैसो से एक मंदिर का निर्माण भी करवाया था. ये मंदिर सीडीएफ चौकी के समीप स्थित हैं. यहाँ का रास्ता कुछ ज्यादा ही उबड़ खाबड़ हैं. ऐसे में इस रास्ते से गुजरने वाले लोग अक्सर यहाँ से जाने में डरा करते थे. उनके डर को हिम्मत में बदलने के लिए बाबू खां के मन में मंदिर बनाने का विचार आया. ऐसे में सर्वप्रथम उन्होंने लोकल लोगो से इसकी अनुमति ली और फिर करीब 20 गज की जगह पर एक मंदिर बना दिया. इस मंदिर को बनाने में जितना भी पैसा लगा वो बाबू खां ने अपनी जेब से ही दिया. उन्होंने इसे बनाने में कंजूसी भी नहीं की. मसलन इस मंदिर को संगमरमर के पत्थरों से बनाया गया. ये पत्थर और इसे बनाने वाले मजदूर दिली से बुलवाए गए थे.

मिल चुके हैं पुरूस्कार

अपनी इस नेक सोच और अच्छे काम के लिए इन्हें प्रशासन की तरफ से एक या दो नहीं बल्कि तीन बार गंगा जमुनी पुरस्कार भी मिल चुका हैं. बाबू खां के दिन की शुरुआत सुबह नमाज पढ़ने से होती हैं. इसके बाद वो सीधा मंदिर आते हैं और शिवजी की पूजा आराधना करते हैं. मंदिर के पुजारी की जिम्मेदारी अबरार ने संभाल रखी हैं. इसके अलावा बाबू खां के पांच बेटे और तीन बेटियां भी मंदिर की देख रेख का काम करते हैं. इस मंदिर में सभी हिंदू पूजाओं और अनुष्ठानो का पालन किया जाता हैं. अबरार को तो शिव पुराण की पूर्ण जानकारी भी हैं.

बाबू खां का कहना हैं कि इस दुनियां में इंसानियत से बड़ा कुछ नहीं हैं. ऐसे में हमें अली और बजरंगबली में भी कोई भेदभाव की भावना नहीं रखना चाहिए. यदि देश के सभी लोगो की सोच ऐसी हो जाए तो यक़ीनन ये दुनियां स्वर्ग बन जाएगी.

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