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भारत का वो अनोखा शहर, जहां नहीं चलती कोई सरकार और ना ही चलता है पैसा

इस दुनिया में अजूबों की कोई कमी नहीं है और ना ही कमी है चमत्कारों की जो कहीं पर भी और कभी हो जाया करता है। कभी कभी ऐसा भी देखने को मिल जाता है कुछ ऐसा जो हमारे सामने और हर किसी के सामने बिलकुल सामान्य सा दिखता है मगर होता है कुछ ऐसा जिसकी कल्पना कर पाना काफी हद तक मुश्किल हो जाता है। कुछ इसी तरह से आज हम आपको भारत के ही एक ऐसे शहर के बारे में बताने जा रहे है जो दिखने में तो काफी हद तक सामान्य है मगर यहाँ की कुछ ऐसी खासियत है जिसकी वजह से ये हमेशा ही चर्चा मे रहता है। असले में आपको बता दें की भारत का ये शहर अपने सामाजिक व्यवस्था के लिए पुरे विश्व में जाना जाता है, जहां दुनिया के किसी भी कोने से किसी भी जाती धर्म के लोग आकर बस सकते है और यहाँ रहने के लिए आपको कोई भी पैसा खर्च करने की जरूरत नही है।

क्या है ओरोविल शहर की खासियत

हम बात कर रहे है “ओरोविल” शहर की जिसकी स्थापना श्री ऑरोबिन्दो सोसाइटी की एक परियोजना के अंतर्गत 28 फरवरी 1968 को मीरा रिचर्ड ( जिन्हें प्यार से लोग “माँ” बुलाते थे ) के द्वारा दक्षिण भारत में पांडीचेरी के पास तमिलनाडु राज्य के विलुप्पुरम जिले में किया गया और इसके खास बात ये रही की इसके उद्घाटन समारोह में कुल 124 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था जो की अपने आप में भी काफी बड़ी बात है। आपकी जानकार के लिए बताते चलें की इस शहर के बीचो बीच एक मातृमंदिर भी स्थित है जिसका अपना सौर उर्जा संयन्त्र है और ये यह चारो तरफ से बागानों से घिरा हुआ है। बता दें कि इस जगह को सिटी ऑफ डॉन भी कहते है जिसका मतलब होता है भोर का शहर।

आपको यह जानकार भी काफी ज्यादा हैरानी हो सकती है की इस मन्दिर में किसी भी धर्म के देवी देवता की पूजा नही होती बल्कि यह जगह यहाँ के लोगो के लिए शांति के कुछ क्षण बिताने के लिए बनाया गया है जहां कई राज्यों से कई अलग अलग देशों के लोग आते हैं और योग आदि के जरिये अपना तन और मन स्वस्थ रखते है। बता दें की यहाँ करीब 50,000 लोंगो को बसाने की योजना थी मगर आज तत्काल में यहाँ इस शहर में सिर्फ 2,007 लोग ही रहते है जिसमे में 1,553 वयस्क है और 454 अवयस्क रहते है और खास बात तो ये हैं की ये सभी 44 अलग अलग देशों से आये हुए लोग है जिनमे से 836 भारतीय मूल के हैं।

आपकी जानकारी के लिए बताते चलें की इसके वास्तुकार रोजर ऐंगर थे जो अपने आप में भव्य है, यहाँ पर अपना रिसर्च इंस्टिट्यूट, फार्म हाउस और रेस्टुरेंट है और सिर्फ यही तक इसकी खासियत नही ख़तम होती है इस शहर का अपना ईमेल नेटवर्क भी है। ओरोविल की अर्थव्यवस्था अपने आप में नायब है, कागज के नोटों के बदले यहाँ के निवासियों को अपने केन्द्रीय खाते से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए एक खाता संख्या दिया जाता है, यहाँ की व्यवसायिक इकाईयां अपने लाभ का लगभग कुछ प्रतिशत हिस्सा यहाँ की केन्द्रीय निधि में दान स्वरुप देकर आर्थिक विकास में अपना योगदान देती है। मुख्यत: यहाँ के लघु उद्योगों में लेखन सामग्री और अगरबत्तियों का उत्पादन होता है जिसे पांडीचेरी स्थित ओरोविल के अपने दूकान से ख़रीदा जा सकता है, यह उत्पाद भारत ही नही बल्कि विदेशो में भी उपलब्ध है।

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