अध्यात्म

हवन करते वक्त क्यों बोला जाता है “स्वाहा”, जानिए इस शब्द का अर्थ और महत्व

न्यूज़ट्रेंड वेब डेस्क: हम अपने जीवन में बहुत से ऐसे काम करते हैं, जिनके बारे में और उनके अर्थ के बारे में हमें पता नहीं होता है। बात करें हिंदू धर्म की तो इसमें कोई भी शुभ कार्य करने से पहले उसका मुहुर्त निकाला जाता है, इसी के साथ हवन करना भी शुभ माना जाता है। जब भी कोई नए कार्य की शुरूआत करते हैं तो पहले हवन किया जाता है।

शादी विवाह हो या फिर पूजा इत्यादि जैसा कोई भी कार्य इस तरह के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में हवन का विशेष महत्व होता है और इसे जरूरी भी माना गया है। आपने भी हवन किया होगा। हवन करते वक्त हवन सामग्री को उंगलियों की मदद से हवन कुंड में प्रज्वलित किया जाता है। हवन के वक्त पंडित मंत्रोच्चारण करते हैं और स्वाहा करते हुए हवन सामग्री को अग्नि में अर्पित करते हैं। लेकिन आपने कभी सोचा है कि अग्नि में हवन सामग्री अर्पित करते वक्त बोले जाने वाले शब्द स्वाहा का क्या अर्थ होता है। आखिर क्यों हमेशा स्वाहा शब्द ही बोला जाता है। इसका मतलब क्या होता है? नहीं सोचा है ना तो अब आपको ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि हम आपको आज अपने इस लेख में स्वाहा क्यों बोला जाता है और इसका क्या अर्थ होता है ये सब बताएंगे।

ज्योतिष के अनुसार स्वाहा का मतलब होता है सही रीति के अनुसार किसी भी वस्तु को उसके सही स्ठान और प्रिय तक सुरक्षित तरीके से पहुंचाना। इसी के साथ अग्नि देवता की पत्नी का नाम स्वाहा है। इसलिए हवन सामग्री को अग्नि में अर्पित करते वक्त स्वाहा शब्द बोला जाता है, ताकि स्वाहा नाम का उच्चारण करके उनके पति से उन्हें मिलवाया जाए। ऐसा कहा जाता है कि देवता हवन स्वीकार तभी करते हैं जब अग्नि के द्वारा और स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाये।

वहीं स्वाहा शब्द पर भगवान श्रीकृष्ण का आर्शीवाद भी है और वरदान भी। एक बार श्रीकृष्ण ने कहा था कि केवल स्वाहा शब्द के माध्यम से ही देवता हविष्य को ग्रहण कर पायेंगे। इसलिए ही हवन करते वक्त इस शब्द का उच्चारण जोर से किया जाता है ताकि देवताओं को उनका पसंदीदा भोग पहुंच सके और सभा कार्य मंगलपूर्वक हो जाएं।

यही वजह है कि हवन में आहुति देते वक़्त स्वाहा शब्द का इस्तेमाल करते है। बिना स्वाहा कहे यज्ञ में समाहित की गई हवन सामग्री देवताओ तक नहीं पहुँचती है। बता दें कि हवन में आहुति देते समय अपने सीधे हाथ की मध्यमा और अनामिक उंगलियों पर हवन सामग्री लेनी चाहिए और अंगूठे की सहायता से ही हवन सामग्री को अग्रिन में छोड़ा जाना चाहिए। इसी के साथ अग्नि में आहुति हमेशा झुक कर ही देनी चाहिए।

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