आखिर क्या होता है ‘नोटा’ ? जानिए इसके बारे में हर वो बात जो आप नहीं जानते
लोकसभा चुनाव-2019 शुरु हो चुके हैं और देश की जनता तीन हिस्सों में बंट गई है. कुछ बीजेपी की सरकार चाहते हैं और कुछ कांग्रेस की लेकिन इनमें जो सबसे अलग है वो ‘नोटा’ है. आज सोशल मीडिया के दौर में इस शब्द का प्रयोग ज्यादा लोग करने लगे हैं. देश की उपस्थित और उम्मीदवार सरकार को नापसंद करने वालों में ये अत्यधिक रूप से दिखाई पड़ रहा है कि लोग नोटा पर वोट दे दें जिसके बारे में अक्सर लोग बातें तो करते हैं लेकिन इसके पीछे की सच्चाई और ये किस बारे में इसके बारे में शायद ही कोई पूर्णरूप से जानते हों. आखिर क्या होता है ‘नोटा’ ? इसके बारे में आपको जरूर जानना चाहिए अगर आप भी नोटा देने की तैयारी में हैं तो.
आखिर क्या होता है ‘नोटा’ ?
बीते कुछ सालों में हर चुनाव के दौरान आप नोटा वर्ड ज्यादा सुनते होंगे. हो सकता है आप खुद या आपका कोई जानने वाला नोटा का इस्तेमाल करता हो, लेकिन ये किस चिड़िया का नाम है ये आपको शायद पता ना हो. मगर आपके लिए हम लाए हैं, आप जाने कि आखिर ये नोटा होता क्या है ?
1. सबसे पहले साल 2009 में चुनाव आयोग के मन में ये विचार आया कि मतदान की प्रक्रिया में नोटा को भी शामिल किया जाए. उस समय यूपीए सरकार ने इसका विरोध किया था जिसके बाद पीयूसीएल ने अदालत में याचिका डाली थी. साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाते हुए चुनाव आयोग को निर्देश दिये कि ईवीएम पर नोटा यानी नन ऑफ द अबव का विकल्प रखा जाए.
2. दिसंबर, 2013 में ही दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तिसगढ़ में हुए विधानसभा चुनावों में पहली बार नोटा का इस्तेमाल किया गया था. कुल मतदान में नोटा का हिस्सा 1.5 फीसदी ही रहा, करीब 15 लाख लोगों ने नोटा का विकल्प चुना था. मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा 5.9 लाख लोगों ने नोटा का इस्तेमाल किया था.
3. साल 2014 में हुए आम चुनाव में करीब 60 लाख लोगों ने नोटा का विकल्प चुना था और ये कुल वोट 1.1 फीसदी रहा था. इसमें दिलचस्प बात ये थी कि सीपीआई और जदयू जैसे दलों का वोट शेयर नोटा से कम रहा और तमिलनाडु की नीलरिरी सीट पर नोटा को 46,559 वोट मिले थे जो तीसरे स्थान पर रहा. इसी सीट में मौजूद सांसद और डीएमके उम्मीदवार ए राजा भी मैदान में आए लेकिन हार गए.
4. ईवीएम में आखिरी विकप्ल नोटा का होता है, जो मशीन के अंत में पाया जाता है. अगर ऊपर दिए सभी उम्मीदवारों को आप खारिज करते हैं तो नोटा का बटन दबा सकते हैं लेकिन अपना वोट खाली नहीं छोड़ें. इसे एक क्रॉस चिन्ह की तरह दर्शाया जाता है और इस चिन्ह को राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान अहमदाबाद ने बनाया है.
5. अगर नोटा को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं तो नतीजों पर कुछ असर नहीं पड़ता है. मान लीजिए अगर उम्मीदवार ए को 50 हजार वोट मिलते हैं, उम्मीदवारर बी को 43 हजार वोट मिलते हैं, उम्मीदवार सी को 35 हजार और नोटा को 52 हजार वोट मिलते हैं तो इस सूरत में उम्मीदवार एक को ही विजय ठहराया जाता है. नोटा मतदान का ये बताने का अधिकार होता है कि वो चुनाव में खड़े किसी उम्मीदवार को पसंद नहीं करता.
6. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में ये देखा गया कि कई सीटों पर नोटा का अंतर जीत के अंतर से ज्यादा था यानी हारने वाले उम्मीदवार जीत भी सकते थे अगर नोटा पर पड़े वोट उनके हक में आ जाते. इसका सीधाद मतलब ये है कि नतीजे पलट भी सकते हैं साल 2014 में भी यूपी की संभल सीट पर 7,658 वोट नोटा को मिले जबकि जीतने वाले भाजपा उम्मीदवार सत्यपाल सैनी महज 5, 174 वोट जीत सके थे.