अध्यात्म

जानिए चामुंडा देवी शक्ति पीठ का रहस्य जहाँ देवी माँ ने किया था चंड और मुंड दानवों का अंत

वैसे तो भारत मे लाखो मंदिर या ज्योतिर्लिंग स्थित है मगर कुछ ऐसी देव भूमि है जहां आपको ऐसे स्थान देखने को मिलेगा जिसके बारे में जानने के लिए हम और आप सभी काफी ज्यादा उत्सुक रहते हैं। ऐसा ही एक स्थान भारत में हैं और यह स्थान हिमाचल प्रदेश मे स्थित है, बता दें की इस स्थान को वैसे तो देवी देवताओ के निवास स्थान के रूप मे जाना जाता है मगर आपकी जानकारी के लिए बताते चलें की भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्थित राज्य हिमाचल प्रदेश में कई हजार से भी ज्यादा मंदिर है और सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि यहाँ पर आपको कई सारे आकर्षक दृश्य भी देखने को मिलते है।

कुछ इसी तरह के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है यहाँ मौजूद मंदिरो मे से एक कुछ अलग और खास मंदिर जिसे हम सभी चामुंडा देवी मंदिर के नाम से जानते है। आपको बता दें की यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के राज्य कांगड़ा जिला मे स्थित है और यहां पर आकर श्रद्धालु अपने भावना और श्रद्धा के साथ चढ़ावा चढ़ाते है। जैसा की बताया जाता है इस मंदिर को 51 शक्तिपीठ में से एक पीठ का दर्जा दिया गया है।

क्या है चामुंडा देवी शक्ति पीठ का रहस्य

बात करें चामुंडा देवी मदिर की तो आपको बता दे की यहां पर आने वाले लोग देश के दूर दराज इलाकों से अपनी मन्नतें लेकर माता रानी के दर्शन के लिए आते है और उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। ऐसा माना जाता है कि शक्तिपीठ चामुंडा देवी मंदिर में ‘शिव और शक्ति’ दोनों का वास है, जब भगवान शिव और जालंधर राक्षस के बीच युद्ध हुआ तब इसी स्थान को ‘रुद्र चामुंडा’ कहा गया था। इसीलिए आज इस मंदिर को ‘रुद्र चामुंडा’ के नाम से भी जाना जाता है।

आपकी जानकरी के लिए यह भी बता दें की चामुंडा देवी के मंदिर के पास भगवान महादेव शिव जी विराजमान है जो कि नन्दिकेश्वर के नाम भी जाने जाते है। यह मंदिर बाणगंगा नदी के किनारे पर स्थित है, जैसा की उल्लेखित है चामुंडा देवी का मंदिर बहुत ही पुराना और अपए आप में यह एक धार्मिक महत्व भी रखता है तथा एक सर्वे के अनुसार ऐसा बताया जाता है की ये मंदिर तकरीबन 16वीं सदी का हो सकता है। आपको यह भी बता दें की पुराणों मे व्याखा है की ज़ब राक्षस चण्ड और मुंड दोनों देवी दुर्गा से युद्ध हुआ था वह इसी स्थान पर आये थे, जिसके बाद देवी दुर्गा माँ काली का रूद्र रूप लेके उनका वध कर दिया था।

ऐसा बताया जाता है की इस युद्ध को करने के लिए भगवती कोशिकी ने अपने भृकुटि से देवी चंडिका को उत्पत्ति किया था चण्ड मुंड का वध करने का कार्य दिया था बहुत दिनो तक भीषड़ युद्ध हुआ और माँ चंडिका ने चण्ड और मुंड का संगार कर दिया था। वध करने के बाद उपहार स्वरुप चण्ड मुंड का सर उपहार स्वरुप देवी कोशिकी को दिया, देवी कोशिकी प्रसन्न हो कर आर्शीवाद दिया की आज से यह जगह माँ चंडिका के नाम से जाना जायेगा तब से ये मंदिर प्रशिद्ध है। इस मंदिर की प्र्सिद्धि पूरे देश में है और लोग यहाँ पर बहुत हुई श्रद्धा के साथ आते हैं।

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