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प्रोफेसर से लेकर Ph.D. तक 70% साधु-संत है पढ़े-लिखे, IIT-IIM जैसे कॉलेजों में देते हैं लेक्चर

इस समय प्रयागराज में कुंभ-2019 की खूब धूम है और देश-विदेश से लोग डुबकी लगाने आ रहे हैं और इस महाउत्सव की शोभा को बढ़ा रहे हैं. कुंभ-2019 का ये दूसरा शाही स्नान सोमवार को हुआ और इस दिन मौनी अमावस्या थी. 5 जनवरी, 2019 को पहले शाही स्नान से शुरु हुआ कुंभ मेला जो 4 मार्च तक चलेगी और ये दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन को यूनेस्को ने भी मान्यता दी है. यहां पर सभी अनपढ़ या आम लोग नहीं बल्कि कोई है प्रोफेसर तो किसी को है वकालत में महारत हासिल, ऐसे में इन साधुओं को हल्के मे नहीं ले बल्कि जान लीजिए इनके बारे में कुछ बातें.

कोई है प्रोफेसर तो किसी को है वकालत में महारत हासिल

दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में आने वाले साधु और अखाड़े बहुत ही खास तरह से आकर्षण का केंद्र होते हैं. इनमें से निरंजनी अखाड़ा, जिसमें करीब 70 प्रतिशत साधु-संत ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है. इनमें से डॉक्टर्स, लॉ एक्सपर्ट, प्रोफेसर, संस्कृत के विद्वान और आचार्य भी शामिल हैं. इस अखाड़े के महेशानंद गिरी ज्योग्राफी के प्रोफेसर हैं और दूसरे साधु बालकानंद जी डॉक्टर और पूर्णानंद लॉ एक्सपर्ट और संस्कृत के विद्वान हैं.संत स्वामी आनंदगिरी नेट क्वालिफाइड हैं और आईआईटी खड़गपुर, आईआईएम शिलॉन्ग में लेक्चर भी दे चुके हैं. इस समय बनारस से पीएचडी कर रहे हैं और संत आशुतोष पुरी नेट क्वालिफाइड होकर पीएचडी कर रहे हैं.

इस अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी का कहना है कि निरंजनी अखाड़ा इलाहाबाद-हरिद्वार में पांच स्कूल-कॉलेज बनवा रहा है. हरिद्वार में एक संस्कृत कॉलेज भी है जिसका मैनेजमेंट और कई दूसरी व्यवस्थाएं संत संभालते हैं और समय-समय पर छात्रों को पढ़ाई भी करवाते हैं. अखाड़े में 150 में से 100 से ज्यादा महामंडलेश्वर और 1500 में से 1100 संत-महंत उच्च शिक्षा प्राप्त किए हैं.

बहुत ज्यादा फेमस है निरंजनी अखाड़ा

अपनी किताब सनातन संस्कृति का महापर्व सिंहस्थ में सिद्धार्थ शंकर गौतम ने लिखा है कि निरंजनी अखाड़े की स्थापना साल 904 में गुजरात के मांडवी में हुई थी लेकिन इतिहासकार जदुनाथ सरकार इसे साल 1904 बताते हैं. प्रमाणों के मुताबिक स्थापना विक्रम संवत 960 में हुई थी. सभी अखाड़ों में निरंदनी अखाड़ा सबसे फेमस है और इसमें सबसे ज्यादा क्वालिफाइड साधु-संत हैं, जो शैव परंपरा को मानने वाले हैं और जटा भी रखते हैं. इस अखाड़े के इष्टदेव कार्तिकेय हैं जो देव के सेनापति हैं. इसका इतिहास डूंगरपुर रियासत के राजगुरु मोहनानंद के समय से मिलता आ रहा है.

शालिग्राम श्रीवास्तव ने अपनी फेमस किताब प्रयाग प्रदीप में बताया है कि इनका स्थान दारागंज है. हरिद्वार, काशी, त्र्यंबक, ओंकार, उज्जैन, उदयपुर और बगलामुखी जैसी जगहों पर इनके भव्य आश्रम बने हैं. महंत अजि गिरि, मौनमौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर इस अखाड़े की नींव रखी थी.

ऐसा माना जाता है कि 13 प्रमुख अखाड़ों में से 7 की स्थापना खुद शंकराचार्य ने की और ये अखाड़े महानिर्वाणी, निरंजनी, जूना, अटल, आवाहन, अग्नि और आनंद है. इनका उद्देश्य हिंदू मंदिरों और लोगों को आक्रमकारियं से बचाना रहा है और इन सभी अखाड़ों में सबसे बड़ा अखाड़ा जूना अखाड़ा है. इसके बाद निरंजनी और महानिर्वाणी अखाड़े का नाम आता है जिनके अध्यक्ष श्री महंत और अखाड़ों के प्रमुख आचार्य महामंडलेश्वर के रूप में मानते हैं.

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