अध्यात्म

प्रेम और भक्ति का दूसरा नाम थी मीरा, जानिये कैसे और क्यूँ दिया गया था उनको जहर!

दर्द की मारी वन-वन डोलू वैध मिला नही कोय, मीरा के प्रभु पीर मिटे जब वैध सवारियां होए”

जब कभी भी कोई भक्त ये प्रश्न करता है की उसे प्रभु से कैसी भक्ति करनी चाहिए तो उसे उसे यही जवाब दिया जाता है कि भक्ति करनी हो तो ऐसी भक्ति करो जैसे मीरा ने कृष्णा से की. बहुत ही कम लोग जानते हैं कि मीरा कैसे कृष्ण की भक्ति में लीन हो गयी थी. कैसे शुरुआत हुई मीरा की इस भक्ति की और क्यूँ दिया गया था मीरा को ज़हर जाने इस कहानी में.

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मीरा बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लीन थी :

मीरा का जन्म 1498 में राजस्थान में हुआ था. उनके पिता का नाम रतन सिंह और माता का नाम वीर कुमारी था. बचपन में ही उनकी माँ की मृत्यु हो गयी थी. उनका पालन पोषण उनके दादा ने किया था. मीरा बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लीन थी. उनकी ये बात उनके घरवालों को बिलकुल पसंद नहीं थी क्यूंकि उनके घर वाले तलूजा भवानी के पूजक थे, जो की माता पार्वती का ही एक रूप है.

बचपन में ही उनका विवाह चित्तौरगढ़ के राजाभोज के साथ कर दिया गया था. 1521 में राजाभोज की मृत्यु हो गयी, राणा सांग मीरा के ससुर थे, वो मीरा की कृष्णा भक्ति के बड़े प्रसंशक थे पर दुर्भाग्यवश बाबर के साथ युद्ध में उनकी भी मृत्यु हो गयी थी.

राणा सांगा के बाद उनका देवर विक्रमादित्य चित्तौरगढ़ का राजा बना. वो मीरा की कृष्णभक्ति को सही नहीं मानता था. उसने मीरा को मारने के लिए प्रसाद में जहर मिला कर मीरा को पीने को दिया. ये जानते हुए भी की प्रासद में ज़हर है मीरा ने प्रसाद ग्रहण कर लिया और राजा से बोली “हे मेवाड़ ना राणा जहर तो पिधा छे जाणी जाणी,नथी रे पिधा म्हे अजाणी”( राणाजी मैं सब जानती थी कि आपने मुझे जहर दिया है फिर भी उसको पिया, ऐसा नहीं है की मैंने अनजाने में जहर पिया हो, और फिर बताया कि उसने जानते बुझते हुए जहर पिया क्योकि मेरे को जहर से बचाने के लिए तो गिरधर जरूर मिलेंगे). इसी प्रेम और भक्ति का दूसरा नाम मीरा है.

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