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किन लोगों को आती है 100 वर्षों से पहले मृत्यु, जानिए क्या लिखा है शास्त्रों में

कहते हैं जब इंसान का जन्म होता है तो उसी के साथ उसकी मृत्यु तय हो जाती है और मृत्यु जीवन का अटल सत्य है. पृथ्वी पर जन्म लेने वाला हर इंसान मृत्यु के आगोश में जाता ही है और जन्म के बाद का ये शाश्वत सत्य है. ये जानते हुए भी कि एक ना एक दिन मृत्यु आनी ही है फिर भी इंसान आपस में लड़ता-भिड़ता है और संपत्ति के लिए अपना का गला घोंट देता है. मृत्यु के बाद हर इंसान अपना सबकुछ छोड़ कर चला जाता है फिर वो अमीर हो या फिर गरीब इंसान हो लेकिन फिर भी लोगों अपने शरीर, धन और हुनर का अहंकार भरा होता है. ये बात तो सभी जानते हैं कि हर इंसान की मृत्यु अलग-अलग निर्धारित की गई है लेकिन कुछ लोग हैं जो 100 वर्षों तक जिंदा रहते हैं और कुछ लोगों को इससे पहले ही मृत्य़ु आ जाती है. मगर क्या आप ये जानते हैं कि किन लोगों को आती है 100 वर्षों से पहले मृत्यु ? आज के इस आर्टिकल में हम आपको यही बताएंगे.

किन लोगों को आती है 100 वर्षों से पहले मृत्यु

जन्म और मृत्यु की जोड़ी इंसान की किस्मत में पहले ही लिख दी जाती है और जिस दिन इंसान अपनी मां के पेट में आता है तभी से उसकी मृत्यु निर्धारित कर दी जाती है. फिर समय आने पर उस इंसान की मृत्यु होनी ही है जिसे खुद भगवान भी नहीं टाल सकते और इस बारे में किसी को कुछ पता भी नहीं होता. महाभारत में धृतराष्ट्र ने परमज्ञानी से जब पूछाकि हम कैसे कर्म करें कि मृत्यु कल्याणी आने में देर करें और ये टलती ही जाए. विदुर ने उनके इस सवाल के जवाब में कहा, ”जिन व्यक्ति में अभिमान, अधिक बोलना, त्याग की कमी, अपना ही पेट पालने की चिंता, स्वार्थ और मित्र द्रोही जैसे अवगुण होते हैं तो उन्हें जल्दी ही मृत्यु आती है. ये ऐसे 6 तेज तलवार से जल्दी ही उस मनुष्य का वध कर देती है. मनुष्य या जीव को मृत्यु ने मारने में कठिनाई बताई है लेकिन अगर किसी मनुष्य में ये सारी बातें नहीं है तो उनकी मृत्यु जल्दी ही हो जाती है.

मृत्यु के लिए कही गई हैं ये बातें

मृत्यु को लेकर बहुत से लोगों ने अलग-अलग बात कही है. जिनमें से प्रसिद्ध संत तिरुवल्लुवर ने कहा है कि ‘यह सोचना कि अमुक वस्तु सदा बनी रहेगी, यह सबसे बड़ा अज्ञान है. जिस तरह से पंछी अनपे घोंसले को त्याग कर उड़ जाता है उसी तरह आत्मा भी इस शरीर को त्याग कर चली जाती है.’

इनके अलावा संत कबीर ने कहा है कि ‘वैद्द, धनवंतरि मरि गया, अमर भया नहीं कोय’ धनवंतरि जैसा वैद्द शायद ही कोई जन्मा हो. जब उसे इस मृत्यु से कोई नहीं बचा पाया तो कहना ही क्या. इनके कहने का तात्पर्य ये है कि इस जग में आए सभी लोगों को जाना होता है.’

श्रीमद्भागवत गीता में भी कहा गया है कि ‘मृत्युश्ररति मदभयात्’. हमारा चिंतक कहता है, ‘मृत्यु को चाहे जितना भयानक और कठोर समझा जाए ये भगवान द्वारा विधान से अनुशासित है. वह अनुशासन के नियम से ये एक पग भी इधर-उधर नहीं हो सकती. क्योंकि ये पूर्ण सत्य है.’

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