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जब हज़ारों धमाको से दहल गया था भारत का यह शहर.

क्या आप जानते हैं, पाकिस्तान को कारगिल के युद्ध में धूल चटाने के महज साल भर भर बाद दोनो देश एक बार फिर युद्ध की कगार पर आ खड़े हुए थेI कारगिल में पाकिस्तान द्वारा किए गये विश्वास घात के बाद तत्कालीन अटल सरकार ने कड़े कदम उठाते हुए राजस्थान से सटी सीमा पर सेना को तैनात कर दिया थाI उस समय इस युद्ध को लगभग निश्चित माना जा रहा था, आए दिन सीमा के नज़दीकी शहरों में होने वाले “ब्लॅक आउट” अभ्यास में हमें युद्ध के समय बचाव के तरीके सिखाए जाते थेI (जैसे कि रात के किसी समय सबको रेडीओ पर सूचित कर “ब्लॅक आउट” अलर्ट दे दिया जाता था, तो तुरंत ही शहर के लोग घर की सारी बत्तियाँ बंद कर देते थे, सड़कों पर वाहन थम जाते थे और उनकी हेडलाइट बुझा दी जाती थीI– ताकि दुश्मन के विमानों को आबादी का पता ना चल सके)
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उसी दौरान सीमा से लगभग दो सौ किलोमीटर दूर एक भयानक हादसा हुआ, राजस्थान का एक शहर शोलों में धधक उठा थाI लेकिन दुर्भाग्य से इसकी जानकारी बहुत ही कम लोगों को हैI उस समय की भयानकता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि रातों रात पूरा शहर खाली करवा दिया गया थाI शहर के निवासी अपनी जान बचा कर अपना घर बार सब कुछ खुला छोड़, जैसी भी हालत में वो थे, बस भागे जा रहे थेI पूरा सहर खाली हो चुका थाI दहशत का आलम यह था कि किसी चोर ने इस मौके का फ़ायदा उठाने का साहस तक नहीं किया, जहाँ हरेक घर बिना ताले के खुला हुआ थाI
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बीकानेर शहर, पाकिस्तान की सीमा के नज़दीक यह शहर पर्यटकों को विशेष तौर पर आकर्षित करता है और एक विश्व धरोहर के रूप में भी जाना जाता हैI 11 जनवरी 2001, दोपहर के लगभग ढाई बजे, कॉलेज से आकर खाना खाने के बाद झपकी लगी ही थी कि एक जोरदार धमाके ने कानों को सुन्न कर दियाI बीकानेर में जनवरी काफ़ी सर्द होती है इसलिए दोपहर में भी कंबल से नहीं निकला जाता है, कड़ाके की ठंड में लिपटा हुआ बीकानेर, अचानक एक धमाके से दहल उठा थाI लेकिन वह तो बस शुरुवात थी.. उस धमाके के साथ जो धमाको का सिलसिला शुरू हुआ, वह देर रात तक नहीं रुक सका थाI
धमाके के बाद एक सिटी सी सुनाई देती है कुछ देर तक, फिल्मों में देखा था उस दिन जान भी लियाI मा ने चिल्ला कर आवाज़ लगाई, “भाग बेटा भाग”I बनियान और ट्रेकपेंट बस पहने हुए मैने अपने घर से बाहर निकलने में एक पल का समय नहीं लगाया थाI बाहर भगदड़ मची हुई थी, जिसका चेहरा जिस दिशा में था वह उसी दिशा में भागे जा रहा थाI मेरी नज़र आकाश पर थी और किसी लड़ाकू विमान को खोज रही थीI क्योंकि यह वो समय था जब भारत और पाकिस्तान की सेना राजस्थान की सीमा पर आमने सामने खड़ी थीI अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में युद्ध निश्चित माना जा रहा था उन दीनोI मेरे साथ सभी का अनुमान यही था कि युद्ध शुरू हो चुका है और यह धमाके पाकिस्तान के लड़ाकू विमानो द्वारा किए गये हैंI
लेकिन हम ग़लत थेI वहाँ कोई लड़ाकू ज़ेट नहीं थाI कान-फाड़ धमाके सोचने का अवसर नहीं दे रहे थेI अचानक स्थिति और भयानक तब हुई जब बमों के टुकड़े ह्मारे आजू बाजू आकर गिरने लगे और हम उनके बीच रास्ता बनाते हुए भागे जा रहे थेI ईश्वर से प्रार्थना करते हुए, जीने की चाह में पूरी जान लगा कर, बस भागे जा रहे थेI
मेर घर से मात्र 100 मीटर की दूरी पर सेना की छावनी (मिलिटरी एरिया) है, जो लगभग उतनी ही बड़ी है जितना कि बीकानेर शहर है और उसका एक मुख्य गेट मेरे घर से नज़र भी आता था, जहाँ हमेशा सेना के जवान तैनात रहते थेI मैने वहाँ देखा लेकिन वहाँ धुएँ के बादल ही नज़र आएI उनसे ही सही कारण मालूम हो सकने की उम्मीद थी लेकिन उन दहशत के पलों में हँसी आ गई जब देखा कि वो जवान तो हमसे भी आगे निकल चुके हैंI लेकिन शायद वो ग़लत नहीं थे, स्थिति उनके बस से बाहर थी और वो खुद अपने अधिकारियों से संपर्क नहीं कर सकते थेI शहर से बाहर निकलने के साथ हमारा एक समूह बन चुका था जिसमे कुल 40 से 45 लोग थेI इनमे बच्चे और महिलाएँ ही ज़्यादातर थी और पुरुष के नाम पर हम दो तीन लड़के बस थेI

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(लाल रंग में धमाको का केंद्र एवं हरे रंग मे हमारे भागने की दिशा बताई गई है)

भागते हुए सेना के जवानो का पीछा कर मैं जैसे तैसे उन तक पहुँचा और उनसे जानना चाहा कि वह जो कुछ भी हो रहा था, उसकी भयानकता कितनी है और बचने की उम्मीद कितनी हैI धमाके तब तक और भी भीषण और रूह कंपा देने वाले हो चुके थेI

उन्होने जो बतायाI भारत पाकिस्तान के युद्ध के मद्धेनजर, गोला, बारूद और हथियारों का आस्थाई भंडार जो सीमा के समीपवर्ती इलाक़ों में रखा जाता हैI उसके एक बड़े हिस्से ने आग पकड़ ली हैI

युद्ध के समय गोला बारूद की समय पर और जल्दी से जल्दी आपूर्ति के लिए यह आस्थाई भंडार बहुत आवशयक एवं हमेशा सेना की निगरानी में रहते हैंI इस भंडार को ट्रकों में लाद के रखा जाता हैI हज़ारों ट्रॅक बीकानेर से जुड़े हुए मुख्य मार्गों के आस पास डेरा जमाए थे, भारत सरकार ने गोला बारूद आपूर्ति के लिए निजी कंपनियों के ट्रकों की सेवा भी ली थीI सेना की छावनी के भीतर भी जगह अच्छी ख़ासी होती है इस कारण बहुत से ट्रॅक वहाँ भी तैनात कर दिए गये थेI
हमारे घर से महज 500 मीटर की दूरी पर जो ट्रकों का समूह था, धमाके वहाँ से आरंभ हुए थे, जैसा सेना के जवानो ने हमें बताया थाI लेकिन हज़ार सावधानियों के बाद भी उन ट्रकों का बारूद क्यों अचानक प्रलय लाने को उतारू हो गया था इस बात से वो सेना के जवान भी अंजान थेI
अब दहशत का अगला दौर शुरू हुआI ट्रकों में मौजूद वो मिसाइल्स जो पाकिस्तान के साथ उद्ध में काम आने वाली थी, आग उन तक भी जा पहुँची थीI मिसाइल्स हमारे सर के उपर से निकल रही थी और हमारे पास खुद को छिपाने का कोई रास्ता भी नहीं था, छोटी-छोटी झाड़ियाँ थी हमारे आस पास और बस रेत ही रेतI छोटे मिट्टी के टीले थे, हम उनकी ओट लेकर बचने की कोशिश हम कर रहे थेI आसमान में मिसाइल्स का फटना और मिसाइल्स के टुकड़ों को अपने आजू बाजू गिरते हुए हम देख पा रहे थेI शहर का आसमान दिशाहीन मिसाइल्स से भर गया थाI बहुत दूर होने पर भी लपटें हमें नज़र आ रही थीI दिन ढलने से थोड़ा पहले धीरे धीरे सब शांत हो गया, बीच-बीच में एक दो छूट पुट आवाज़ तब भी आ रही थीI अब तक तो इस भयानक रोमांच ने सर्दी महसूस नहीं होने थी लेकिन अब ठंड से कंपकपि छूट रही थी, उपर से दिन ढलने जा रहा थाI हवा की रेगिस्तानी लहरें जान निकाल रही थीI थोड़ी उँची जगह पर हम सभी अपने आशियानो की फिकर में बैठे थेI छावनी के एक दम सामने नई स्कीम में उस समय बहुत सीमित घर थेI अपनी जान के बाद अब चिंता घर की सता रही थी क्योंकि इस blasting के सबसे नज़दीक यही बसावट थीI आवाज़ें थम चुकी थी, चिंता, ठंड, भूख और बच्चों के बारे में सोचकर सब की सहमति से हमने घर लौटने की ठान लीI
हम उठ खड़े हुए स्लो मोशन में और कदम उठा दिया वापस लौटने के लिएI धम्म्म… से एक धमाका हुआ, आसमान में छावनी की और से एक लकड़ी की डंडी हमारी ओर आती दिखी लेकिन वो नज़दीक आने के साथ बड़ी भी होती जा रही थीI हमसे पचास फीट की मात्र दूरी पर वह दस फूटा मिसाइल का खोल ज़मीन में बड़ा सा खड्‍डा कर चुका थाII उसके बाद यहाँ वहाँ ऐसे खोल आ आकर गिरने लगेI हमारा इरादा तुरंत बदल गया और हम फिर से.. “भाग मिल्खा भाग” हो गये थेI
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फिर से धमाके चालू हो गये, यह पिछली बार से अधिक ताकतवर विस्फोट थेI इस बार मिसाइल्स भी बड़ी थीI अब तक अंधेरा घिर आया था लेकिन हम धमाको की रोशनी में थेI दीपावली के समय जिस प्रकार रॉकेट आसमान मे चारो ओर दिखाई देते हैं ठीक वैसे ही हमारे आजू बाजू से मिसाइल्स जा रहे थेI औरते और बच्चे अब रोने लगे थे क्योंकि उस समय किसी को भी अपने बचने की उम्मीद नज़र नहीं आ रही थीI ठंड बहुत अधिक थी, सभी के बदन ठिठुर रहे थेI किसी को स्वेटर या शौल लाने का होश नहीं था जब वो भागे थेI भूख प्यास और थकान के मारे सब लोगों की रफ़्तार धीमी हो चुकी थीI एक दूसरे को सहारा देते हुए हम आगे बढ़े जा रहे थे लेकिन अब हमारे सामने रास्ता भी ख़त्म हो चुका थाI हमारे रास्ते में पानी की एक नहर आ गई थी.. उस ठंड में नहर पार करने का साहस अब किसी में नहीं थाI हाँ यह शुक्र था कि नहर का किनारा ज़मीन से नीचे था और हमें एक बॅंकर जैसा स्थान वहाँ मिल सका थाI हम सभी वहाँ लेट गये और प्रार्थना करने लगेI हम धमाको से शायद कुछ 4 या 5 किलोमीटर दूर आ चुके थे लेकिन उनकी गूँज अब भी बहरा कर देने वाली थीI पूरे शहर में बचाव अभियान जारी था, सरकारी ट्रांसपोर्ट द्वारा लोगों को शहर से बाहर निकाला जा रहा थाI लेकिन यह प्रयास घटना स्थल से दूर रहते हुए ही वो कर रहे थेI जिस दिशा में हम लोग थे वहाँ उनके आने की संभावना ना के बराबर थीI शहर के दूसरी तरफ वाले उस हिस्से को ख़त्म मान चुके थे जहाँ हम रहते थेI मेरे समूह में जीतने भी लोग थे उनका कोई ना कोई घटना के वक्त शहर के दूसरे हिस्सों में थाI किसी का बच्चा स्कूल से नहीं लौटा था और पुरुष तो सभी अपने काम पर गये थेI जीवन के कई पहलू उस दिन नज़र आए थे जो हमें साधारण दिनों में नहीं देखने को मिलते हैंI
इधर उनकी चिंता जो हमारे साथ नहीं थे और हमसे ज़्यादा हमारे अपनो की हमारे लिए चिंता जब पूरा शहर मान चुका था कि हम लोग शायद जिंदा नहीं बचे हैंI हर बड़े धमाके के बाद दिल दहल जाता था की अब कोई गोला मौत बनकर हमपर आ गिरेगाI बुरा हाल बच्चो का था जिनसे धमाको की आवाज़ सहन नहीं हो रही थीI तभी एक ईश्वरीय कृपा हमें प्राप्त हुई.. नहर के उस तरफ सेना के कुछ अधिकारी हमारी तरफ आते हुए नज़र आएI शहर के आस पास आस्थाई रूप से मिलिट्री की कई टुकड़ियाँ भी डेरा डाले हुए थीI उन अधिकारियों में एक को मैं पहचानता था, वह मेरे पिता के दोस्त थे क्योंकि मेरे पिता भी भारतीय सेना में ही थे परंतु इस समय वो बीकानेर शहर में नहीं थेI
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उन्होने तुरंत नहर को पार करने के लिए लकड़ी के फटटो की व्यवस्था की और हमें उस पार पहुँचायाI कुछ गाड़ियाँ उन्होने मँगवा ली थी जिनमें सभी को बिठा कर वो हमें सहकारी अनाज भंडार की तरफ़ ले गये जो वहाँ से कुछ दूरी पर ही थाI उन्होने गोदाम को खुलवा कर सभी को गेहूँ की बोरियों के बीच में बैठा दियाI कुछ कंबल और मिलिट्री कोट की व्यवस्था उन्होने हमारे लिए कर दी थीI कुछ समय के बाद उन्होने खाना भी उपलब्ध करवा दियाI हम अब कुछ हद तक अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहे थे और क्यों ना करें, भारतीय सेना ने अब हमारी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी जो ले ली थीI

रात 9 बजे धमाको में एक बार फिर कमी आ गई थीI सभी लोग चिंतित थे इसलिए हम एक बार अपने घरों को संभालने के लिए जाना चाहते थेI मैने उनसे इस विषय मे सहायता माँगी, पहले तो उन्होने ना जाने की सलाह दी लेकिन फिर वो मान गयेI एक ज़ीप में हम कुल चार लोग जिसमें ड्राइवर भी शामिल था, अपने घरों की तरफ रवाना हुएI घटनास्थल के बिल्कुल करीब से होते हुए हमें जाना थाII खैर हम वहाँ पहुँच गये थेI वहाँ हमने देखा सेना के वही जवान जो पहले भाग खड़े हुए थे अब जिंदा बचे ट्रकों को जो आगज़नी में सुरक्षित बच गये थे, बाहर निकल रहे थेI समय कम था इसलिए ट्रकों को अधिक दूर ना ले जाकर हमारे घरों के आस पास ही खड़ा कर दिया जा रहा थाI उस समय गुस्सा आया था उन पर लेकिन बाद मे अहसास हुआ की दो चार लोग इतने ट्रकों को और कितना दूर ले जा सकते हैंI मेरे घर को कुल सात ट्रकों ने घेर रखा था जो की बारूद से पूरी तरह लदे थेI रात 10 बजे सेना ने स्थिति पर काबू पा लेने की खबर भेज दी थी, हमारी सहयता करने वाले जवानो को धन्यवाद कहकर हम अपने आशियानो में लौट तो आए थे लेकिन वह पूरी रात हमने आँखो में निकाल दी थी क्योंकि एक आध धमाके पूरी रात होते रहे थेI डर था कोई चिंगारी उस बारूद को ना छू जाए जिसके बीच में हम दुबके हुए हैंI
सभी खबरिया चॅनेल वहाँ से कोसों दूर थे, मोबाइल का चलन भी इतना अधिक तब नहीं था इसलिए यह घटना आज भी केवल उन लोगों की यादों में जिंदा है जिन्होने वो पल जिए थेI लेकिन यह कोई ईश्वरीय चमत्कार ही था कि इतने बड़े कांड के बाद भी महज 2 या 3 मौतें हुई थी, जिनमे से दो की मौत धमाको के कारण हृदयघात से हुई थीI
भारत की ताक़त को देखते हुए, घबराकर पाकिस्तान अपने नरम रुख़ पर आ गया था इस कारण वह युद्ध तो टल गया लेकिन हम एक युद्ध देख चुके थेI जिंदगी और मौत के बीच युद्ध… जिंदगी जीत गई थीI

यह षड्यंत्र था या दुर्घटना इस बारे में अधिक जानकारी बाहर नहीं आ सकी थी लेकिन इस हादसे में कई सौ ट्रॅक जलकर तबाह हो गये थे और छावनी के भीतर इमारतों को काफ़ी नुकसान पहुँचा थाI अधिकतर मिसाइल ह्मारे उपर से निकल कर दूर इलाक़ों में फटी थी इसलिए भी हम शायद इस हादसे से बच निकले थेI आस पास के इलाक़ो से जिंदा बमों को ढूंडकर उन्हे नष्ट करने में सेना को एक महीना लगा थाI
मान्यता है कि माता करणी की कृपा से बिकनेर उस हादसे में भी सुरक्षित रह पाया थाI माता करनी का मंदिर बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर स्थित है जिसे चूहा मंदिर ने नाम से भी जाना जाता हैI
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मैं ईश्वर का अभारी हूँ कि मैं आज जिंदा हूँ और यह कहानी आप सभी को सुना पा रहा हूँI

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