अध्यात्म

जानिए किस दिन है जन्माष्टमी और क्या है और क्या है पूजा करने का सही समय और मुहूर्त

हिंदू धर्म में कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। इन्ही में से कुछ देवी-देवता ऐसे भी हैं, जिनकी पूजा देशभर में की जाती है। इन्ही में से हैं श्रीकृष्ण जी। इनकी पूजा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण में आस्था रखने वाले लोगों के लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का ख़ास महत्व होता है। जानकारी के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 3 सितम्बर को पड़ रही है।

व्रत के पश्चात कर लेना चाहिए पारण:

कई लोग श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन व्रत करते हैं। वो लोग इससे एक दिन पहले केवल एक ही टाइम भोजन करते हैं। व्रत वाले दिन श्रीकृष्ण के भक्त स्नान आदि दैनिक कर्मों से निवृत होने के बाद पूरे दिन उपवास रखते हैं। अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के ख़त्म होने के बाद ही व्रत का पारण का संकल्प लिया जाता है। कई कृष्ण भक्त केवल रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के पश्चात व्रत का पारण कर लेते हैं। संकल्प प्रातःकाल के समय में ही लिया जाता है। संकल्प के साथ ही अहोरात्र का व्रत स्टार्ट हो जाता है।

श्रीकृष्ण के बालरूप की होती है पूजा:

जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा निशीथ समय पर ही की जाती है। वैदिक गणना के अनुसार निशीथ समय अर्धरात्रि का समय होता है। ऐसा माना जाता है कि इसी समय में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस वजह से भक्त निशीथ समय पर श्रीकृष्ण के बालरूप की पूजा पूरे विधि-विधान से करते हैं। जन्माष्टमी तिथि 2 सितम्बर 2018 को रात्रि 8:45 बजे से ही शुरू हो जाएगी। यह तिथि 3 सितम्बर 2018 को सायंकाल 17:19 बजे तक रहेगी। रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत 2 सितम्बर 2018 को रात्रि 8:48 से शुरू होकर 3 सितम्बर 2018 को रात्रि 8:04 तक रहेगा।

निशीथ काल पूजन 2 सितम्बर 2018 को रात्रि 11:57 से 12:48 तक संयोग है। ज़्यादातर जगहों पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी दो दिन मनायी जाती है। जहाँ-जहाँ ऐसा होता है, वहाँ पर पहले दिन जन्माष्टमी स्मार्त सम्प्रदाय के लोग और दूसरे दिन वैष्णव सम्प्रदाय के लोग मनाते हैं। इस साल भी 2 दिन जन्माष्टमी पड़ रही है। इसमें पहली जन्माष्टमी 2 सितम्बर को स्मार्त सम्प्रदाय और दूसरी 3 सितम्बर वैष्णव सम्प्रदाय के लोगों द्वारा मनायी जाएगी। गृहस्थ जीवन का पालन करने वाले लोग वैष्णव सम्प्रदाय के अनुसार जन्माष्टमी मनाते हैं। वहीं साधु-संत लोग स्मार्त सम्प्रदाय के अनुसार जन्माष्टमी मनाते हैं। आपको बता दें जन्माष्टमी की पूजा के लिए वैष्णव और स्मार्त सम्प्रदाय के लोगों के लिए पूजा के अलग-अलग नियम होते हैं।

वैष्णव सम्प्रदाय के लोग उदय तिथि को महत्व देते हैं। उदय तिथि में अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र को महत्व दिया जाता है। ये कभी भी सप्तमी तिथि को जन्माष्टमी नहीं मनाते हैं। वैष्णव सम्प्रदाय के नियमों के अनुसार हिंदू कैलेंडर में जन्माष्टमी का दिन नवमी तिथि पर पड़ता है। स्मार्त समुदाय के लोगों द्वारा भी निशीथ काल को अहटव दिया जाता है। जिस दिन अष्टमी तिथि निशीथ काल के समय व्याप्त होती है, उस दिन को ये महत्व देते हैं। इसमें रोहिणी नक्षत्र को सम्मिलित करने के लिए कुछ नियम जोड़े जाते हैं। स्मार्त सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए हिंदू कैलेंडर में जन्माष्टमी हमेशा सप्तमी या अष्टमी को ही पड़ती है। 3 सितंबर को अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र उड़ाया तिथि में मिल रही हैं, इसलिए वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायियों को इसी दिन जन्माष्टमी मनानी चाहिए।

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