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अपने अगले जन्म में इंसान बनेंगे या जानवर, इस तरह से आसानी से कर सकते हैं मालूम, जानें

पुनर्जन्म: हिंदू धर्म हो यह कोई अन्य धर्म सभी जगह कर्म को प्रधानता दी गयी है। लगभग सभी धर्म में कहा जाता है कि इंसान को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है। केवल यही नहीं इंसान को उसके कर्मों के हिसाब से ही स्वर्ग और नर्क की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही कई धर्म ग्रंथों में पुनर्जन्म से जुड़ी मान्यताओं और कहानियों के बारे में भी बताया गया है। इसके अनुसार हर व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका पुनर्जन्म होता है।

कर्मों के आधार पर दुबारा जन्म लेता है इंसान योनि में:

इन्ही धर्म ग्रंथों के आधार पर पुनर्जन्म के रहस्यों के बारे में समझा जा सकता है। इसमें यह बातें साफ़-साफ़ बताई गयी हैं कि कौन सा कर्म करने पर इंसान को कौन सी योनि में जन्म लेना पड़ता है। इंसान कर्मों के आधार पर ही दुबारा इंसान योनि में जन्म लेता है, अन्यथा किसी और योनि में। ज़्यादा बुरे कर्म करने वालों को किस योनि में जन्म लेना पड़ता है, इसके बारे में भी बताया गया है। आज हम आपको पुनर्जन्म के बारे में अलग-अलग धर्म-ग्रंथों में लिखी गयी बातों के बारे में बताने जा रहे हैं।

अलग-अलग धर्म-ग्रंथों के हिसाब से पुनर्जन्म की अवधारणा:

*- कठोपनिषद के अनुसार:

श्लोक:

योनिमन्ये प्रपघन्ते शरीरत्वाय देहिन:।
स्थाणुमन्येनुसंयन्ति यथाकर्म यथाश्रुतम्।।

अर्थ:

इसमें कहा गया है कि संसार के प्रत्येक जीव को उसके कर्म और ज्ञान के आधार पर ही अलग-अलग योनियों में जन्म लेना पड़ता है। इसी के आधार पर कुछ जीवों को पुनर्जन्म तो किसी को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

*- महाभारत के वनपर्व के अनुसार:

श्लोक:

शुभै: प्रयोगैर्देवत्वं व्यामिश्रैर्मानुषो भवेत्।

अर्थ:

इसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति शुभ कार्य करता है तो उसे देव योनि में जन्म लेना पड़ता है। लेकिन अगर मनुष्य के कर्मों में पाप-पुण्य बराबर-बराबर हों तो उसे पुनः मनुष्य की योनि में जन्म लेना पड़ता है।

*- पतंजलि योगसूत्र के अनुसार:

श्लोक:

क्लेशमूल: कर्माशयो दृष्टादृष्ट जन्मनेदनीय:।
सतिमूले तदिपाको जात्यामुर्भोगा:।।

अर्थ:

पतंजलि योगसूत्र के अनुसार अगर किसी व्यक्ति के पिछले जन्म में अच्छे कर्म होते हैं तो उसे उत्तम योनि, आयु और योग की प्राप्ति होती है। इसके अनुसार जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उके ज्ञान और कर्म उसकी आत्मा के साथ ही चले जाते हैं और उसी के आधार पर अगले जन्म में उसे योनि की प्राप्ति होती है।

*- योगवशिष्ठ के अनुसार:

श्लोक:

एहिकं प्रोक्तनं वापि कर्म यदचित्तं स्फुरन्।
पौरूषोसो परो यत्नो न कदाचन निष्फल:।।

अर्थ:

किसी भी व्यक्ति को उसके पुनर्जन्म और इस जन्म के किए गए कर्मों का फल ज़रूर मिलता है। किसी भी जन्म में किए गए कर्म कभी बेकार नहीं जाते हैं।

*- श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार:

श्लोक:

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भाव भावित:।।

अर्थ:

ऐसा कहा गया है कि मरते समय हर व्यक्ति उसी चीज़ को याद करता है जो उसके मन में चलती रहती हैं। मरते समय वह जिस भी भाव के बारे में सोचता है अगले जन्म में वह व्यक्ति उसी भाव के साथ पैदा होता है।

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