अध्यात्म

संत कबीर के दोहे और उनके स्पष्ट अर्थ!

संत कबीर दास का जन्म लहरतारा में साल 1440 में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. संत कबीर ने काशी घाट के रामानंद जी के चरण स्पर्श करने के बाद उन्हें अपना गुरु माना. पेशे से कबीर जी जुलाहे का काम करते थे. हालांकि वह पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन इसके बावजूद भी वह युग के सबसे बड़े समाज सुधारक बने. संत कबीर दास की शादी लोई से हुई. संत कबीर ने हिंदू मुसलमान दोनों जातियों को एक साथ बांधने का पूरा प्रयास किया और धर्म के झूठे आडंबरों का विरोध किया. संत कबीर ने कई रचनाएं लिखी इनकी वाणी आज भी हर घर में गूंजती है. आज के इस आर्टिकल में हम आपको संत कबीर के दोहे और उनके शाब्दिक अर्थ बताने जा रहे हैं.

दोहा(Dohe)-

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ॥

अर्थ: इस दौरे में संत कबीर दास जी कहते हैं कि अगर हमारे सम्मुख गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हो जाएं तो आप किसके चरण स्पर्श पहले करेंगे? कबीर जी के अनुसार हमें ज्ञान की प्राप्ति गुरु से होती है और गुरु ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताता है इसलिए गुरु को भगवान से भी ऊपर माना जाता है और हर शिष्य को अपने गुरु को चरण जरूर स्पष्ट करने चाहिए.

दोहा(Dohe)-

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान |
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ||

अर्थ: कबीर के दोहे के अनुसार अगर मनुष्य शरीर जहर से भरा हुआ है तो गुरु उस जहर में अमृत का काम करता है. अगर अपने गुरु के चरणों में शीश झुकाने से वह जहर निकल जाए तो इससे अच्छी बात और कोई नहीं हो सकती.

दोहा(Dohe)-

सब धइसरती काजग करू, लेखनी सब वनराज |
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ||

अर्थ:इस कबीर के दोहे में उन्होंने बताया कि अगर वह धरती के बराबर बड़ा कागज बना ले, दुनिया के सभी वृक्षों को कलम बना लें और सात समुद्रों को अपनी कलम की स्याही बना ले तो भी गुरु के गुणों को लिखना असंभव है.

दोहा(Dohe)-

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये |
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ||

अर्थ: संत कबीर जी फरमाते हैं कि हर एक इंसान को मीठी बोली बोलनी चाहिए क्योंकि सुनने वाले को भी मीठी वाणी बहुत अच्छी लगती है. मीठी भाषा बोलने से दूसरे लोगों को सुख पहुंचता है साथ ही खुद को भी आनंद का अनुभव होता है.

दोहा(Dohe)-

बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ||

अर्थ: इस कबीर के दोहे में कबीर जी ने खजूर के पेड़ की निंदा की है और बताया है कि ऐसा पेड़ किस काम का जो किसी को फल तो दूर बल्कि छाया भी नहीं दे सकता? कबीर जी के अनुसार अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो आपके बड़े होने का कोई फायदा नहीं.

दोहा(Dohe)-

निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें |
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ||

अर्थ: कबीर दास जी के अनुसार जो लोग दूसरों की निंदा रखते हैं उनसे आपको दोस्ती जरूर रखनी चाहिए. क्योंकि वह लोग आपके साथ रहकर आपकी बुराइयां समय-समय पर गिनाते रहेंगे और आप उन गलतियों का आसानी से सुधार कर सकेंगे.

Back to top button