राजनीति

स्विस बैंकों में काला धन रखने वालों की खैर नहीं, भारत-स्विस समझौते के बाद खुले नए रास्ते

नई दिल्ली: भारत एक विकासशील देश है। यहाँ की लगभग 68 प्रतिशत जनता आज भी कृषि कार्यों के ऊपर ही निर्भर है। भारत की प्रति व्यक्ति आय कई विकासशील देशों की अपेक्षा बहुत कम है। यहाँ पर भी वही सब समस्याएँ देखने को मिलती हैं, जो हर विकासशील देश में देखने को मिलती हैं। भारत में गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार के अलावा काला धन भी एक बहुत बड़ी समस्या बना हुआ है। काले धन की वजह से भारत का समुचित रूप से विकास नहीं हो पा रहा है।

भारत का अरबों रुपया काले धन के रूप में स्विस बैंकों में जमा है। पिछले साल 8 नवम्बर की रात को पीएम मोदी ने काले धन पर वॉर करते हुए 500 और 1000 जैसे बड़े नोटों को बंद कर दिया था। उनका सोचना था कि इससे देश के अन्दर काला धन रखने वालों में खलबली मच जाएगी। जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। आम जनता परेशान हुई और काला धन रखने वाले किसी तरह से अपने काले पैसे को सफ़ेद करने में कामयाब हो गए। भारत सरकार लगातार इस प्रयास में रही है कि विदेशों में जमा काले धन को कैसे वापस लाया जाये।

इस दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए भारत सरकार ने स्वीटजरलैंड के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। गुरुवार को किये गए इस समझौते के बाद अगले साल 1 जनवरी से कर सम्बन्धी सूचनाएं अपने आप साझा की जा सकेंगी। आपको बता दें यह जानकारी केन्द्रीय प्रत्यक्ष बोर्ड (सीबीडीटी) ने दी है। सीबीडीटी ने कहा, ‘स्विटजरलैंड में संसदीय प्रक्रिया पूरी होने और समझौते पर हस्ताक्षर होने के साथ ही दोनों देश सूचनाएं ऑटोमैटिक साझा कर सकेंगे। दोनों देशों के बीच यह समझौता 1 जनवरी 2018 से प्रभावी हो जाएगा।‘

आयकर विभाग के लिए नीति निर्माण करने वाले संकाय ने कहा कि, ‘सीबीडीटी अध्यक्ष सुशील चंद्र और स्विटजरलैंड के भारत में राजदूत एंड्रेआस बाउम ने नई दिल्ली के नार्थ ब्लॉक में समझौते पर हस्ताक्षर किए।‘ जानकारी के लिए आपको बता दें सूचनाओं के ऑटोमैटिक अदान-प्रदान के लागू होने संबंधी संयुक्त घोषणा पत्र पर पिछले महीने ही हस्ताक्षर किये गए थे। इसमें कहा गया था कि दोनों देश वैश्विक मानकों को मानते हुए अगले साल 2018 से डाटा जमा करना शुरू कर देंगे। भारत ने आंकड़े की गोपनीयता की रक्षा करने का भी वादा किया है।

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