बॉलीवुड

निधन से पहले शशि कपूर ने किये थे ये काम, अब खुल रहे हैं उन से जुड़े ये सारे राज़

बीते सोमवार को शशि कपूर जी हम सभी को अलविदा कह गए. उनके जाने से फिल्म जगत तो क्या दुनिया भर की आखें नम हो गईं. शशि कपूर जी का फेमस डायलॉग ‘मेरे पास मां है’ आज भी सभी को याद है और आने वाले वक़्त में भी याद रहेगा. शशि कपूर जी काफी समय से बीमार चल रहे थे. 4 दिसंबर के दिन उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली. आज हम आपको शशि कपूर की जिंदगी से जुड़े कुछ ऐसे पहलुओं से रूबरू कराने जा रहे हैं जिनके बारे में शायद ही आपको पता हो.

शशि कपूर इकलौते ऐसे शख्स हैं जिन्होंने भारतीय से नहीं बल्कि एक अंग्रेज़ से शादी रचाई थी. उनकी पत्नी का नाम जेनिफर केंडल था. जेनिफ़र और शशि कपूर के तीन बच्चे हैं जिनका नाम कुणाल कपूर, करण कपूर और संजना कपूर हैं.

आपको शायद मालूम न हो, शशि कपूर ने महज़ 4 साल की उम्र से ही एक्टिंग करना शुरू कर दिया था. उन्होंने एक प्रसिद्ध नाटक में भी काम किया था जिसका नाम ‘शकुंतला’ था. अब तक तीन नेशनल अवार्ड शशि कपूर के नाम है. लेकिन नब्बे के दशक के अंतिम वर्षों में उन्होंने बॉलीवुड से दूरी बना ली.

शशि कपूर जी ने अपनी फिल्मों से कश्मीर का ज़िक्र कर के उसे और भी ज्यादा खूबसूरत बना दिया. फिल्मों के जरिये उन्होंने कश्मीर की वादियों को बखूबी लोगों के सामने पेश किया. इस बात का ज़िक्र बहुत सारे लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि देते समय भी किया था.

एक्टिंग में लोहा मनवाने के बाद शशि कपूर जी ने प्रोड्यूसर बनने का फैसला किया. प्रोड्यूसर के तौर पर कमाए अपने सारे पैसे उन्होंने श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी और गिरीश कर्नाड जैसे निर्देशकों के साथ मिलकर सामाजिक सरोकार की फिल्में बनाने पर खर्च किये.

शशि कपूर अपने काम के प्रति बहुत गंभीर थे. जैसे टैक्सी में बैठते ही मीटर डाउन कर दिया जाता है ठीक वैसे ही शशि कपूर सुबह आठ बजे ही काम पर निकल जाया करते थे और रात को 2-3 बजे तक अलग-अलग सेट्स पर अलग-अलग फिल्मों की शूटिंग करके वापस आया करते थे. इस वजह से उनके भाईयों ने उनका नाम ‘टैक्सी’ रख दिया था.

शशि कपूर जी को राजकीय सम्मान के साथ विदा किया गया. उन्हें तिरंगे में लपेटकर और तोपों की सलामी के साथ अंतिम विदाई दी गई. लेकिन बहुत लोगों को इसका कारण समझ नहीं आया. दरअसल, शशि कपूर जी साल 2011 और 2015 में पद्मभूषण और दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं. जिन लोगों को देश के ये सबसे बड़े पुरस्कार मिलते हैं उन्हें राजकीय सम्मान के साथ विदा किया जाता है.

शशि कपूर जी ने ’36 चौरंगी लेन’ नामक एक फिल्म प्रोड्यूस की थी. उनकी यह फिल्म भारत की तरफ से ऑस्कर के लिए गई. फिल्म को ऑस्कर मिलना लगभग तय था तभी निर्णायक मंडल के एक सदस्य ने फिल्म का अंग्रेजी भाषा में बने होने का विरोध किया. उनके अनुसार भारत से ऑस्कर के लिए आई फिल्म भारतीय भाषा में होनी चाहिए. टेक्निकल प्रॉब्लम की वजह से यह फिल्म ऑस्कर नहीं जीत पायी और यही शशि कपूर के जीवन का सबसे कड़वा सच बन कर रह गया. बॉलीवुड एक इतिहास बनाने से चूक गया.

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