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एक मुट्ठी चावल से शुरू हुआ था इस अद्भुत बैंक का सफ़र,आज मिल रहा है हजारों महिलाओं को इससे रोजगार

बिलासपुर: सूझ-बूझ और संगठित प्रयास से किया गया कोई भी काम कहीं ना कहीं एक मिशाल बन जाता है। ऐसी ही कुछ महिलाओं ने मिलकर समाज के सामने एक उदहारण पेश किया है। आज हम आपको एक ऐसे बैंक के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसनें एक इतिहास रचने का काम किया है। छतीसगढ़ के बिलासपुर का यह बैंक नारी सशक्तिकरण को समर्पित एक शानदार प्रयास है। मेहनत-मजदूरी करने वाली कुछ महिलाओं ने मिलकर छोटी बचत का सपना देखा था जो आज एक बड़े बैंक का रूप ले चुका है।

आपको जानकर काफी हैरानी होगी कि आज इस बैंक की पूंजी कुल साढ़े तीन करोड़ रूपये है। यह बैंक महिलाओं द्वारा संचालित किया जाता है और इस बैंक में लगभग 10 हजार महिलाओं के खाते हैं। यह बैंक वंचित वर्ग की महिलाओं को रोजगार मुहैया कराने का काम करता है। सखी बैंक की शुरुआत एक मुट्ठी चावल से हुई थी। बिलासपुर जिले के मस्तूरी ब्लॉक के मस्तूरी, पाली, इटवा, वेदपरसदा, सरगवां, डोढ़की, कोहरौदा, पेंड्री, हिर्री समेत अन्य गांवों में महिला सशक्तीकरण की मानो जैसे बयार चल पड़ी है। नारी शक्ति संघ के बैनर तले कुछ गरीब वर्ग की महिलाओं ने वह कर दिखाया है जो किसी सरकारी एजेंसी को करने में सालों लग जाते हैं।

इस बैंक की शुरुआत 1986 में एक मुट्ठी चावल से की थी। महिलाओं ने नारी शक्ति संघ बनाकर इसकी शुरुआत की थी। समूह की हर महिला को चावल इकठ्ठा करने के लिए एक मीती की हांड़ी दी गयी थी। हर रोज उस महिला को इस हांड़ी में एक मुट्ठी चावल डालना था। जब महीने के अंत में यह हांडी भर जाती थी तो उसे समूह के पास जमा करना होता था। शीरे-शीरे ऐसे ही चावल का ढेर लगता गया। इसे चावल बैंक के नाम से भी जाना जाता था। नारी शक्ति संघ के नाम से एक बैंक खता भी खोला गया। चावल को बेचकर जो पैसे मिलते थे उसे इसी खाते में जमा किया जाता था।

धीरे-धीरे 17 महिला समूह एक साथ जुड़ गए। एक समूह में 25 महिलाओं को रखा जाता था। बैंक बनाने के बाद नारी शक्ति संघ ने मस्तूरी ब्लॉक में 33 स्वयंसेवी समूहों की स्थापना की गयी। हर समूह में 25 महिलाओं को रखा जाता था। बैंक ने इस महिलाओं को अपना खर्च सँभालने और स्वरोजगार का प्रशिक्षण देना शुरू किया। इसके बाद हर समूह को मामूली ब्याज पर 25 हजार रूपये लों दिया जाने लगा। सखी बैंक की संचालिका हेमलता साहू ने बताया कि 33 समूहों की हर महिला आज स्वावलंबी है, साथ ही गाँव की वंचित महिलाओं को भी रोजगार दे रही है।

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