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इन कारणों से शिव चालीसा का पाठ करते ही नापाक हो जायेगा ताजमहल

विश्व के सातवें अजूबे में शामिल आगरा का ताजमहल पूरे देश का गौरव है.. विदेशों से जब लोग यहां घूमने आते हैं तो उनकी सबसे मनपसंद जगह ताजमहल ही होती है। कह सकते हैं कि ये भारतीयों की पहचान है और ऐसे में इसे किसी धर्म विशेष की ज़ागीर नही समझते बल्कि पूरे देश के संस्कृति का हिस्सा माना जाता है। लेकिन फिर भी कई बार धार्मिक सम्प्रदायिकता की आंच से ये ऐतिहासिक इमारत झुलस ही जाती है और ऐसा ही कुछ बीते दिनों में भी हुआ है जब ताजमहल परिसर में शिव चालीसा के पाठ करने से विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई । विवाद इतना गहराया कि ताजमहल के अस्तित्व पर ही सवाल उठाए गए ..ऐसे में ये सोचने की बात है कि क्या वास्तव में ताजमहल परिसर में शिव चालीसा का पाठ करने से वो नापाक हो सकता है?

हाल ही में देश में असहिष्णुता का सवाल उठाया जा रहा था .. देश के इस राजनीतिक मुद्दे पर बौद्धिक वर्ग से लेकर कला और सिनेमा के नामी लोगों ने खूब आवाज उठायी .. हर तरफ से यही आवाज रही थी कि देश, हिन्दुत्व की विचारधारा से प्रेरित होकर दूसरे धर्मों के लिए असहिष्ण हो रहा है लेकिन वास्तव में सोचने वाली बात तो ये है कि क्या सचमुच हमारा देश में ऐसा है भी। क्योंकि यहां तो हर धर्म विशेष की संस्कृति को उतना ही महत्व दिया जाता है और अगर ऐसा नही होता तो शायद ताजमहल को उतनी प्रमुखता भी नही दी जाती । चलिए पहले बात कर लेते हैं उस विवाद की जिसके वजह से ताजमहल के नापाक होने की बात कही गई।

दरअसल अक्टूबर के महीने में हिन्दु युवा वाहिनी के कुछ सदस्यों ने ताजमहल परिसर में शिव चालीसा पाठ करनी चाही लेकिन परिसर मॆं मौजूद सुरक्षा बलों द्वारा ऐसा करने से रोक ला गया और फिर ये घटना मुद्दा बन गई । एक तरफ जहां मुस्लिम धर्म गुरूओं का कहना है कि ऐसा करने से ताजमहल परिसपर नापाक हो जाएगा वहीं हिन्दुवादी संस्थाएं कह रहीं हैं या तो ताजमहल में नमाज पर रोक लगे या फिर शिव चालिसा पढने की भी इजाजत दी जाए। गौरतलब है कि ताजमहल परिसर हर शुक्रवार को नमाज की वजह से बंद रखा जाता है। ऐसे आरएसएस की इतिहास विंग का कहना है कि जबकि ताजमहल एक राष्ट्रीय संपत्ति है, तो उसे धर्म विशेष के स्थल के रूप में इस्तेमाल करने की इजाजत क्यों दी जाती है ।

वैसे ये बात काफी हद तक अपने आप में विचारणीय है कि एक राष्ट्रीय स्थल को कैसे किसी धर्म विशेष से जोड़ा जा सकता है .. इसे तो धार्मिक एकता की मिसाल माना जाता है फिर इसको लेकर ऐसी सोच क्यों .. दरअसल ऐसा करने के पीछे कुछ कारण जो कि सभी आम नागरिको को जानना और समझना जरूरी है।

1 पहला कारण तो ये है कि अगर ताजमहल परिसर में शिव चालीसा होगी तो इससे नफरत की राजनीति खत्म हो जाएगी इसलिए शिव चालीसा ताजमहल में नहीं हो सकती है।

2 इसका दूसरा कारण ये है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं चाहती कि हिन्दू-मुस्लिम एकता भारत में हो और इसलिए ऐसी बाते कही जा रही हैं कि शिव चालीसा से ताजमहल नापाक होगा।

3 वहीं तीसरा कारण है कि अगर देश मे हिन्दू मुस्लिम एकता हो गई तो फिर चुनाव में राजनीति किस के नाम पर की जाएगी। वास्तव में ये राजनीति की विसात है जिसके लिए ताजमहल में शिव चालीसा का पाठ होने से ताजमहल नापाक हो ही जायेगा।

 

 

 

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