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जिस अलाउद्दीन खिलजी के लिए बवाल मचा हैं, उसके साथ यहां लोग सेल्फी ले रहे हैं

संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ को लेकर सस्पेंस बरकरार है। कि करोड़ों की लागत से बनी फिल्म का क्या होगा। लेकिन क्या किसी को बता है, जिस अलाउद्दीन खिलजी को लेकर सब देशभक्ती और पद्मावती को मां का दर्जा दे रहे हैं वो दिल्ली की धरती पर एकांत में आराम से सो रहा है। सैकड़ों सालों से वो यहीं है, रोजाना हजारों लोग उसके पास से गुजर जाते हैं लेकिन किसी की नजर नहीं जाती। उसकी कब्र के करीब से लोगों का हुजूम खामोशी से गुजर जाता है. कब्र के चारों ओर लोग खड़े होकर सेल्फी लेने में मशगूल हैं लेकिन किसी को खबर नहीं कि वो सामने ही अलाउद्दीन खिलजी अपनी कब्र में सोया हुआ है, जिसे आज की शैतान की नजर से देखा जा रहा है।

यहां है अलाउद्दीन की कब्र

दिल्ली से जब हरियाणा की ओर जाते हैं, तभी दक्षिणी दिल्ली में इलाका है महरौली और यहीं कुतुब मीनार है. ममलुक वंश के कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस विशाल मीनार को बनवाया था। कुतुब मीनार को देखने देश विदेश से लाखों लोग आते हैं। कुतुब मीनार से सटे परिसर में ‘अलाउद्दीन खिलजी का मदरसा’ है. जहां उसको सैकड़ों साल पहले दफनाया गया था। लेकिन आज लोग उसके इतिहास को तो जानने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन किसी को नहीं पता की वो वहां खामोशी से सोया है।

अलाउद्दीन ने खुद बनवाई थी मकबरे की जगह

मदरसे के बाहर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने एक पत्थर लगा रखा है, जिस पर लिखा है, ‘ये चतुर्भुजीय अहाता जो ऊंची दीवारों से घिरा है, यह मूल रूप से एक मदरसा था जिसका प्रवेश द्वार पश्चिम में है. इसका निर्माण पारंपरिक तालीम देने के लिए अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) द्वारा करवाया गया था. अहाते के दक्षिणी हिस्से के बीच में शायद खिलजी का मकबरा है. मदरसे के साथ ही मकबरे के चलन का यह हिंदुस्तान में पहला नमूना है. यह शायद सलजुकियान रवायत से मुत्तासिर है.

कब्र पर चढ़कर लोग खींचाते हैं सेल्फी

लोग हमेशा की तरह कुतुब मीनार को देखने आते हैं तो उस जगह भी जाते हैं। उनकी नजर इस चबूतरे पर पड़ती है तो लोग चढ़कर फोटो खिंचवाते हैं। कोई सेल्फी लेता है तो कोई घंटो इसमें बैठकर आराम से बातों में मसगूल हो जाता है।

यहां था उसका महल, ऐसी है हालत

इतिहासकार बताते हैं कि खिलजी ऐसा शासक था जिसने वस्तुओं के दाम तय किए थे, कालाबाजारी और साहूकारों की लूट-खसोट बंद करवाई थी। घोड़ों को दागने की प्रथा उसी की देन हैं। अलाउद्दीन खिलजी ने अक्तूबर, 1296 में अपने चाचा जलालुद्दीन की गले लगाकर उसकी हत्या कर दी थी। विश्वासघात करके खुद को सुल्तान घोषित कर दिया था। दिल्ली में स्थित बलबन के लालमहल में अपना राज्याभिषेक करवाया था। जो आज निजामुद्दीन बस्ती इलाके में कहीं खो चुका है। बलबन का यह लाल महल भी ढह चुका है. घनी बस्ती के बीच लाल महल के निशान ढूंढ पाना मुश्किल है.

अलाउद्दीन की ऐसी हुई थी हालत

अलाउद्दीन खिलजी भारत में प्रसिद्ध था और खिलजी खुद को द्वितीय एलेग्जेंडर कहता था। अंतिम दिनों में अलाउद्दीन खिलजी का जीवन दर्दभरा था। अलाउद्दीन का बुढ़ापा बेकदरी में गुजरा, कमजोर हो चुके अलाउद्दीन को किनारे कर उसके कमांडर मलिक काफूर ने पूरा साम्राज्य हथिया लिया। जिससे अलाउद्दीन को बड़ा झटका लगा, और वो अवसाद में चला गया। काफी दिनों तक ऐसे ही जीने के बाद उसकी मौत हो गई। अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के चार साल के भीतर ही खिलजी साम्राज्य का पतन हो गया था। अलाउद्दीन के छोटे बेटे शहाबुद्दीन को उनके तीसरे बेटे मुबारक शाह ने गद्दी से उतार दिया था लेकिन बाद में नसीरुद्दीन ने उनकी हत्या कर दी थी।

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