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कोई मजदूर का बेटा तो रिक्से वाले का, इन 7 बच्चों ने गरीबी से लड़कर बोर्ड में गाड़े झंडे

यह सत्य है कि जीवन में कई ऐसे मामले हैं जहां मजदूरों के बच्चे गरीबी के कारण कठिनाइयों का सामना करते हैं। हालांकि, इन बच्चों में से कई ने अपने संघर्ष और मेहनत के बावजूद बोर्ड परीक्षा में सफलता हासिल की है। यह उनके परिवार के लिए गर्व की बात है और इससे दूसरे गरीब बच्चों को प्रेरित होने का भी अवसर मिलता है। इस तरह की कहानियां हमें समाज में संघर्ष के महत्व को समझने और सामरिक परिस्थितियों के बावजूद संघर्ष करने की प्रेरणा देती हैं।

यूपी बोर्ड के रिजल्ट के साथ ही, लाखों बच्चों के भाग्य का फैसला हुआ। इसमें कुछ दुखी हुए और कुछ खुश हुए। हालांकि, कुछ कहानियां ऐसी भी हैं जिनमें सफलता के साथ-साथ संघर्ष की कठिनाइयों का भी जिक्र होता है। ये कहानियां अन्य बच्चों को प्रेरित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन छात्रों के लिए, जिन्होंने यूपी बोर्ड की परीक्षा में सफलता प्राप्त की, यह सिर्फ़ लिखित परीक्षा ही नहीं थी, उन्हें न केवल पढ़ना पड़ा बल्कि अपने कठिन परिस्थितियों से लड़ना भी पड़ा।

इनमें से कुछ बच्चे फुटपाथ पर बनी झोपड़ी में रहते हैं, जबकि कुछ के पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। इन बच्चों के लिए यहां तक पहुंचना और आगे बढ़ना आसान नहीं है। चलिए, हम इन होनहार बच्चों के संघर्ष की कहानियों को जानते हैं।

रोशनी
रोशनी झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली छात्रा हैं और उन्होंने दसवीं कक्षा में 82.5% अंक प्राप्त किए हैं। उनके परिवार में उनकी मां, एक बहन और एक भाई हैं। उनकी मां लोगों के कपड़े प्रेस करके गुजारा करती हैं। हालांकि, रोशनी और उनकी बहन अंजली इन सभी मामलों को अलग रखकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे रही हैं। अंजली ने भी 2022 में दसवीं कक्षा में 82% अंक प्राप्त किए थे।

अनुराधा
अनुराधा एक साधारण परिवार से आती हैं और उनके पिता रामचंद्र कपड़ों की फेरी लगाकर अपने परिवार का गुजारा कर रहे हैं। वे अपने इसी काम से अपनी बेटी अनुराधा सहित दो और बच्चों को भी पढ़ा रहे हैं। अनुराधा ने अपनी मेहनत के दम पर इंटरमीडिएट कक्षा में 500 में से 482 अंक प्राप्त किए हैं, जिससे उनके पिता रामचंद्र बेहद खुश हैं।

अंकिता बरनवाल
कादीपुर में स्थित सूरापुर के निवासी परशुराम बरनवाल ऑटो चालक के रूप में काम करते हैं। वह अपने परिवार का आर्थिक सहारा ऑटो चलाकर प्रदान करते हैं। गरीबी के बावजूद, उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया है। उनकी बेटी अंकिता बरनवाल ने भी अपने माता-पिता को निराश नहीं किया है। उन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा में 97.17 प्रतिशत अंक प्राप्त करके पूरे यूपी में छठवां स्थान हासिल किया है।

रजत
रिपोर्ट के मुताबिक, रजत का बचपन फुटपाथ पर बनी झोपड़ी में बिता। उनके परिवार में केवल उनकी मां ही काम करके आय कमाती हैं। उनकी मां की आय से ही परिवार का पेट भरा जाए यही बहुत बड़ी बात है, पढ़ाई-लिखाई बहुत दूर की चीज़ है। हालांकि, इसके बावजूद रजत ने मन लगाकर पढ़ाई की और 10वीं कक्षा में 85% अंक प्राप्त किए। यहां यह भी बताना चाहेंगे कि रजत की मां लोगों के घरों में झाड़ू-पोंछा करती हैं और उन्हें पालतू करने के साथ-साथ रजत की पढ़ाई और पति के इलाज के खर्च का भी सामर्थ्य हैं। रजत के पिता लकवा से प्रभावित हैं।

निखिल कुमार
निखिल कुमार, मेरठ के निवासी के पिता टीकम सिंह दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। पूरे दिन मेहनत कर के चंद रुपए कमाने वाले टीकम सिंह के इस मेहनती बेटे ने अपने इंटरमीडिएट (12वीं कक्षा) में 88% अंक प्राप्त किए हैं। निखिल का बड़ा भाई विकास कुमार भी 2018 में स्कूल के टॉपर्स की सूची में थे। निखिल और उनके बड़े भाई विकास ने सामाजिक मंच पर अपने पिता के नाम को ऊँचा किया है और उनका नाम रोशन किया है।

तनिश
तनिश, सदर के सनातन धर्म इंटर कॉलेज के छात्र हैं। उन्होंने इंटरमीडिएट (12वीं कक्षा) में 91 प्रतिशत अंक प्राप्त करके अपने स्कूल के टॉपर की प्रतिष्ठा प्राप्त की है। उनके पिता संजय पाल आबूलेन स्थित हार्डवेयर की दुकान में हेल्पर के काम करते हैं । तनिश, मोदीपुरम के निवासी, अपने भविष्य में इंजीनियर बनने की इच्छा रखते हैं और इसलिए वे मेहनत कर रहे हैं।

समाज में स्थिति को परिवर्तित किया जा सकता है। यह छात्रों को सामरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाने और उन्हें उच्चतम शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए आवश्यक है। समाज को इसमें सहयोग करना चाहिए, जैसे कि आर्थिक सहायता, छात्रवृत्ति, निःशुल्क शिक्षा सुविधाएं और शिक्षा के लिए संबंधित संस्थाओं का समर्थन करके। इससे समाज में गरीबी से आने वाले छात्रों को स्वतंत्रता, उच्चतम स्तर की शिक्षा और अवसरों के समान दायित्व मिलेगा। इस प्रकार, हम समाज को सामरिक और आर्थिक रूप से उन्नति की ओर प्रगति कराने में सहायता करेंगे।

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