अध्यात्म

भूलकर भी कभी इन 5 के विषय में बुरा ना सोचें, इन का बुरा सोचते ही आप विनाश को आमंत्रित करते हैं

सभी धर्मों में अंहिसा का महत्व बताया गया है… हिन्दु धर्म के साथ साथ बुद्ध, जैन और इसाई धर्म में अंहिसा का मार्ग ही धर्म का मार्ग बताया गया है । लेकिन अंहिसा के मार्ग पर चलने के लिए ये समझना आवश्यक है कि अहिंसा का अर्थ केवल किसी को शारीरिक रूप से नुकसान ना पहुंचाना ही नहीं है, बल्कि किसी भी व्यक्ति को अपने मन, वचन और कर्म से भी कोई दुख ना देना अहिंसा है। पर अक्सर हमसे ये गलतियां हो जाती हैं.. हम कर्म से भलें ही किसी का अहित नही करते हैं पर सोच में दुर्भावना रखते हैं। लेकिन शास्त्रों में व्यक्ति के इस व्यवहार को नियन्त्रित करन की बात कही गयी है। श्रीमद्भागवत गीता में एक श्लोक को जरिए निम्न 5 के विरूद्ध किसी भी प्रकार की हिंसा को निषेध बताया गया है।

यदा देवेषु वेदेषु गोषु विप्रेषु साधुषु। धर्मो मयि च विद्वेषः स वा आशु विनश्यित।।

इस श्लोक का अर्थ है, जो मनुष्य देवताओं, वेदों, गौ, ब्राह्मण-साधु को नुकसान पहुंचाता है या फिर धार्मिक कार्यों के विरुद्ध सोचता है, उसका नुकसान उसी क्षण होना शुरू हो जाता है, उसका नाश जल्द ही हो जाता है।

देव गण

देवता हमेशा से पूज्यनीय है.. इनके स्तुति से मानव जाति का कल्याण होता है..ऐसे में इनके बारे में बुरा सोचना मात्र भी अहितकर होता है। रावण और दुसरे असुर इसके उदाहरण हैं जिन्होनें देवताओं को अपमानित कर अपने विनाश को स्वयं ही आमन्त्रित किया और एक दुखद अंत को प्राप्त हुए।

वेद

वेद और धर्म शास्त्र हमें श्रेष्ठ जीवन और धर्म का मार्ग निर्देशित करते हैं ..जिनका पालन कर व्यक्ति ना सिर्फ अपने जीवन को सफल बनाता है बल्कि उसे जीवनमृत्यु की चक्र से भी मुक्ति का मार्ग मिलता है। लेकिन अगर इन्ही वेदों का अनादर किया जाए , इनका उलंघन किया जाए तो निश्चित रूप से व्यकित को हानि मिलेगी ।

गाय

हिन्दु धर्म में गाय को माँ का पद्वी दी गयी है…गौ माता के रूप में लोग गाय की पूजा करते हैं। दुध रूपी अमृत से जीवों को पोषण आहार देने वाली गाय सभी के लिए आदर योग्य है ..इसकी मन वचन से सेवा करना मानव के लिए कल्याणकारी बताया गया है और इसीलिए गाय के खिलाफ होने वाली हिंसा को हिन्दु धर्म में पाप की संज्ञा दी गई है।

ब्राह्मण-साधु

ब्राह्मण या साधुसंतो का कार्य लोगों को ज्ञान का मार्ग बताना है। आम जन जब अपने सांसारिक जीवन में व्यस्त रहते हैं तब साधु संत जन ज्ञान अर्जित करते हैं और प्राप्त ज्ञान को लोगों में बांटते हैं .. इसलिए आमजन के लिए इनका स्थान सदैव ऊंचा होता है..ऐसे में लोगों को हमेशा इनके प्रति श्रद्धा की भावना रखनी चाहिए और भूलकर भी इनका अपमान या अहित नही करना चाहिए।

 

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