
ये डीएम ‘साहब’ नहीं ‘सेवक’ हैं, साइकिल से जाते हैं ऑफिस, बच्चों के साथ खाते हैं मिड डे मील
सरकारी सेवा में लगे अफसरों और कर्मचारियों को लोक सेवक कहा जाता है। लेकिन अब तक ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि डीएम, एसपी और दूसरे बड़े सरकारी अफसर अपना रौब अधिक जमाते हैं और लोक सेवा का काम जैसे-तैसे निपटाकर सुविधाओं और विशेषाधिकारों का मजा लेते हैं। लेकिन कुछ अफसर ऐसे भी हैं जो अपने लोक सेवक धर्म का पूरी इमानदारी से पालन करते हैं, और जनता की सेवा के लिए सरकारी सेवा में आने का अपना संकल्प पूरा करते हैं।
ऐसे ही एक बड़े अफसर हैं बिहार के कटियार के जिला अधिकारी उदयन मिश्र जिनका एकमात्र लक्ष्य गरीब जनता की सेवा कर उन्हें ऊपर उठाना और इस तरह देश को ऊपर उठाना है।
कभी साइकिल से ऑफिस, तो कभी चुपचाप बैकबेंचर बन छात्रों के बीच क्लास लेने पहुंच जाने वाले वाले कटिहार के डीएम उदयन मिश्रा की एक और तस्वीर सामने है। जिलाधिकारी उदयन मिश्रा ने गुरुवार को विद्यालयों का औचक निरीक्षण किया। इसी दौरान वे रौतारा के माध्यमिक विद्यालय पहुंचे। वहां बच्चों को खाना परोसा जा रहा था। डीएम ने बच्चों के साथ जमीन पर बैठकर खाना खाया। बच्चों से मिड डे मील को लेकर बातचीत भी की।
एक DM ऐसा भी!
ये कटिहार के डीएम हैं. नीचे जमीन पर बैठ कर स्कूली बच्चों के साथ खाना खाया. उनका खाने का तरीका लोगों को इतना अच्छा लगा कि उनका यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया pic.twitter.com/EyuTsjbJoT— rajeshkumarojha (@rajeshrepoter) May 26, 2022
उन्होंने विद्यालय की प्रधानाध्यापिका उर्मिला देवी से पठन-पाठन, मध्याह्न भोजन, विद्यालय के रखरखाव आदि के संबंध में जानकारी ली। जिलाधिकारी ने कहा कि यह स्कूल का ही नहीं, पूरी पंचायत का निरीक्षण था। पूरे राज्य में यह हर बुधवार और गुरुवार को किया जाता है। स्कूल भ्रमण के क्रम में मिड डे मील का समय हो गया था। बच्चे कतारबद्ध होकर खा रहे थे। उन्होंने बताया कि खाना एक ऐसी चीज है, जिसे देखकर आदमी उसका स्वाद, उसकी गुणवत्ता और स्वच्छता को नहीं समझ सकता है। इसलिए मैंने उसे खाकर भी देखा। खाना बढ़िया और गर्म था। खाने के बाद मैंने बच्चों से भी पूछा। उन्हें भी खाना पसंद आया।
डीएम ने बताया कि हमने 14 बिंदुओं पर निरीक्षण किया। प्रत्येक बुधवार और गुरुवार को इसकी रिपोर्ट आनलाइन सबमिट की जाती है। उन्होंने कहा कि बच्चों की स्थिति अच्छी है, लेकिन स्कूलों में शिक्षकों की संख्या कम थी। वैक्सीनेशन के बारे में भी जानकारी ली गई। पढ़ाई की गुणवत्ता को भी हमने देखा। छोटे बच्चों से बोर्ड पर लिखवा कर देखा गया।