
ढाई साल बाद फिर अपने पुराने आशियाने में पहुंचे सिंधिया, 39 साल रहे थे, फिर छिन गया था बंगला
बीजेपी ज्वाइन करने के बाद ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य का एक और सपना पूरा हो गया है। ज्योतिरादित्य को दिल्ली में अपना वो पुराना बंगला फिर मिल गया है जिसमें उन्होंने बचपन से जवानी तक 39 साल गुजारे थे। 27, सफदरजंग रोड का यह बंगला उनके पिता माधव राव सिंधिया के समय से उनके परिवार के पास था लेकिन ढाई साल पहले उन्हें भारी मन से इस बंगले को छोड़ना पड़ा था। क्या है इस बंगले से उनके परिवार का भावनात्मक रिश्ता आपको आगे बताते हैं।
माधव राव को अलॉट हुआ था बंगला
42 साल पहले उनके पिता माधवराव को ये बंगला आवंटित हुआ था। ज्योतिरादित्य ने बचपन में इस बंगले में एंट्री की थी। इसके साथ उनके माता-पिता की खुशनुमा यादें जुड़ी हैं। अपने पिता माधवराव सिंधिया के साथ उन्होंने राजनीति की एबीसीडी यहीं सीखी। यहां सियासी बैठकों का सिलसिला चलता रहता था। 2001 में हवाई हादसे में पिता के असामयिक निधन के बाद सियासत की कमान अचानक ज्योतिरादित्य के कंधों पर आ पड़ी। तब इस बंगले में उन्होंने सियासत के जो गुर सीखे थे, वे उनके काम आए।
ज्योतिरादित्य का राजनीतिक जीवन यहीं शुरू हुआ
2001 में जब उनके पिता माधवराव सिंधिया की मृत्यु हुई, उसके बाद सिंधिया ने इसी बंगले में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ली थी। राजनीति में यह पहला मौका था, जब सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने किसी के घर पहुंचकर उसे कांग्रेस में शामिल कराया। इस बंगले के लॉन में पूरा आयोजन हुआ था, जिसमें कांग्रेस के दिग्गज नेता शामिल हुए थे।
उसके बाद सिंधिया अपनी परंपरागत सीट से उपचुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुंचे थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया अपना हर जन्म दिन इसी बंगले में मनाते थे। वे कहीं भी रहे हों, लेकिन एक जनवरी को अपने जन्मदिन पर उनका यहां आना तय रहता था।
ऐसे छिन गया बगंला
मोदी लहर से ज्योतिरादित्य भी नहीं बच सके थे। कांग्रेस में रहते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में वह हार गए थे। इस पर उनको वह बंगला भी भारी मन से छोड़ना पड़ा था।
दोबारा हुआ अलॉट
2020 में कांग्रेस छोड़कर BJP जॉइन करनेवाले ज्योतिरादित्य को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ये बंगला दोबारा आवंटित हुआ। लेकिन, कब्जा पाने में उनको आठ महीने लग गए। पिछले साल जुलाई में 27, सफदरजंग रोड का ये बंगला सिंधिया को आवंटित हुआ था। तब पूर्व शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक इसमें रह रहे थे।
BJP में शामिल होने के बाद जब सिंधिया को राज्यसभा का सांसद चुना गया, उस समय ही उन्हें दिल्ली में 3 बंगलों में से किसी एक को चुनने का ऑप्शन दिया गया था। तब उन्होंने निजी आवास आनंद लोक में ही रहना मुनासिब समझा और अपने इमोशनल बंगले को पाने के लिए प्रयास जारी रखा।
बंगले से है भावनात्मक लगाव
बचपन से लेकर लगभग 39 साल तक ज्योतिरादित्य के इसी बंगले में बीते। 2001 में प्लेन क्रैश में जब माधवराव सिंधिया का निधन हुआ, तब उनकी अंतिम यात्रा इसी बंगले से निकली थी। इसलिए भी ज्योतिरादित्य को इस बंगले से लगाव है। लगभग दो दशक तक उनके पिता का दिल्ली दरबार इसी बंगले में लगता था। मध्य प्रदेश से लेकर दूसरे राज्यों के बड़े नेताओं का इस बंगले में आना-जाना लगा रहता था।
ज्योतिरादित्य जब तक इस बंगले में रहे, तब तक अपने पिता की नेम प्लेट नहीं हटवाई। जब तत्कालीन शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को यह बंगला आवंटित हुआ, तभी माधवराव सिंधिया की नेमप्लेट हटी। हालांकि, अब बंगले के बाहर किसी की नेम प्लेट नहीं है।